Atmadharma magazine - Ank 001
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 13

background image
: मागशर : २००० आत्मधर्म : ७:
* सभामां अध्यात्मोपदेश *
कोई जीव कहे छे के, द्रव्यानुयोग (शुद्धात्मानो अधिकार होय एवां शास्त्रो) मां व्रत, संयमादि व्यवहारधर्मनुं
हीनपणुं प्रगट कर्युं छे. सम्यग्द्रष्टिना विषय भोगादिने निर्जरानां कारण कह्यां छे. ईत्यादि कथन सांभळी जीव स्वच्छंदी
बनी पुण्य छोडी पापमां प्रवर्तशे तेथी तेने वांचवा–सांभळवा योग्य नथी. तेने कहीए छीए के:–
जेम साकर खातां गधेडुं मरी जाय तेथी कांई मनुष्य तो साकर खावी न छोडे. तेम कोई विपरीत बुद्धि जीव
अध्यात्म गं्रथो सांभळी स्वच्छंदी थाय तेथी कांई विवेकी जीव तो अध्यात्म ग्रंथोनो अभ्यास न छोडे. हा! एटलुं करे के
जेने स्वच्छंदी थवानो ठेकाणे ठेकाणे निषेध करवामां आवे छे, तेथी जे तेने बराबर सांभळे छे ते तो स्वच्छंदी थतो नथी.
छतां कोई एकाद वात सांभळी पोताना अभिप्रायथी स्वच्छंदी थाय तो त्यां ग्रंथनो दोष नथी पण ते जीवनो दोष छे. वळी
जो जूठी, दोषी कल्पना वडे अध्यात्मशास्त्रोना वाचन–श्रवणनो निषेध करवामां आवे तो मोक्ष मार्गनो मूळ उपदेश तो त्यां
ज छे. एटले तेनो निषेध करतां मोक्ष मार्गनो निषेध थाय छे. जेम मेघवृष्टि थतां घणां जीवोनुं कल्याण थाय छे, छतां
कोईने उलटुं नुकसान थाय तो तेनी मुख्यता करी मेघनो निषेध न करवो, तेम सभामां अध्यात्म उपदेश थतां घणां जीवोने
मोक्षमार्गनी प्राप्ति थाय छे. छतां कोई ऊलटो पापमां प्रवर्ते तो तेनी मुख्यता करी अध्यात्म शास्त्रोनो तो निषेध न करवो.
बीजुं अध्यात्म ग्रंथोथी कोई स्वच्छंदी थाय ते तो पहेलांं मिथ्याद्रष्टि हतो, अने आजे पण मिथ्याद्रष्टि ज रह्यो.
हा! एटलुं ज नुकसान थाय के तेने सुगति न थतां कुगति थाय वळी अध्यात्मोपदेश न थतां घणां जीवोने मोक्षमार्गनी
प्राप्तिनो अभाव थाय छे. एटले तेथी तो घणां जीवोनुं बूरुं थाय छे माटे अध्यात्म उपदेशनो निषेध करवो योग्य नथी.
नीचली दशावाळाने कयो उपदेश योग्य?
शंका:–द्रव्यानुयोगरूप अध्यात्म उपदेश छे ते उत्कृष्ट छे, अने ते उच्च दशाने प्राप्त होय तेने ज कार्यकारी छे.
पण नीचली दशा वाळाओने तो व्रत संयमादिनो ज उपदेश आपवो योग्य छे.
सम्यग्दर्शना निवासना छ पद.
१. ‘आत्मा’ छे.
२. ‘आत्मा’ वस्तु तरीके नित्य छे. पण त्रिकाळ टकी अवस्था द्रष्टिए समये समये पोते पोतानी अवस्था बदले छे.
३. आत्मा निज कर्म शुद्धा–शुध्ध भावनो कर्ता छे. ४. आत्मा पोताना शुध्धा–शुध्ध भावनो भोक्ता छे.
५. आत्मानी संपूर्ण शुध्ध अवस्था [मोक्ष] पोते प्रगट करी शके छे.
६. अज्ञान [मिथ्यात्व] अने रागद्वेषनी निवृत्ति ए मोक्षनो उपाय छे.
आ छ महा प्रवचनोनुं निरंतर संशोधन करजो. श्रीमद् राजचंद्र
समाधान:–जिन मतमां तो एवी परिपाटी छे के पहेलांं सम्यक्त्व होय पछी व्रत होय. हवे सम्यक्त्व तो
स्वपरनुं श्रध्धान थतां थाय छे. तथा ते श्रद्धान द्रव्यानुयोगनो अभ्यास करतां थाय छे; माटे पहेलां द्रव्यानुयोग
अनुसार श्रद्धान करी सम्यग्द्रष्टि थाय अने त्यार पछी चरणानुयोग अनुसार व्रतादि धारण करी व्रती थाय. ए प्रमाणे
मुख्यपणे तो नीचली दशामां ज द्रव्यानुयोग कार्यकारी छे. तथा गौणपणे जेने मोक्षमार्गनी प्राप्ति थती न जणाय तेने
पहेलांं कोई व्रतादिनो उपदेश आपवामां आवे छे. माटे उच्च दशावाळाने अध्यात्म उपदेश अभ्यास करवा योग्य छे
एम जाणी नीचली दशावाळाओए त्यांथी पराङमुख थवुं योग्य नथी.
नीचली दशावाळाने ते स्वरूप भासे के केम?
शंका:–ऊंचा उपदेशनुं स्वरूप तो नीचली दशावाळाने भासे नहि.
समाधान:–अन्य तो अनेक प्रकारमां चतुराई जाणे छे, अने अहीं मूर्खता प्रगट करे छे ते योग्य नथी. अभ्यास
करतां स्वरूप बराबर भासे छे. तथा पोतानी बुध्धि अनुसार थोडुं घणुं भासे छे, परंतु सर्वथा निरुद्यमी थवाने पोषण
करीए तो जिनमार्गना द्वेषी थवा जेवुं छे.
आ निकृष्ट काळे ते उपदेशनी मुख्यता योग्य छे?
शंका:–आ काळ निष्कृष्ट (अधम) छे माटे उत्कृष्ट अध्यात्मना उपदेशनी मुख्यता करवी योग्य नथी.
समाधान:–आ काळ साक्षात् मोक्ष थवानी अपेक्षाए निकृष्ट छे, पण आत्मानुभव आदि वडे सम्यक्त्वादि होवानी
आ काळमां मना नथी, माटे आत्मानुभवादि अर्थे द्रव्यानुयोगनो अभ्यास अवश्य करवो. मोक्ष पाहुडमां पण कह्युं छे के:–
अज्जवि तिरयणसुध्धा अप्पा झाएवि लहइइंदत्तं।
लोयंतिय देवतं तत्थ चुआणिव्वुदि जंति।।
अर्थ:–आ पंचमकाळमां पण जे जीव सम्यक्दर्शन ज्ञान, चारित्रनी शुध्धिए संयुक्त होय ते आत्माने ध्यावी
ईन्द्रपद तथा लोकान्तिक देवपद पामे छे. वळी त्यांथी आवी निर्वाण पामे छे.
माटे आ काळमां पण द्रव्यानुयोगनो उपदेश मुख्य जरूरी छे. मोक्षमार्ग प्रकाशक