: ८: आत्मधर्म २००० : मागशर :
मोक्षनी क्रिया
प्रकरण १ ल
ज्ञान क्रियाभ्याम् मोक्षः भाग–१
१:–प्रकरणने मथाळुं आपेलुं सूत्र बहु नानुं छे, पण तेनो अर्थ सामान्य माणसो के जेओ पोते धर्मी होवानुं
माने छे, तेओ मोटे भागे समजता नथी, तेथी अहीं लखवामां आवे छे.
२:–क्रिया शब्दना अर्थ नीचे प्रमाणे छे.
[१] आत्मा के पुदगलनुं एक आकाश प्रदेशथी बीजा आकाश प्रदेशमां गमन ते क्रिया; आ व्याख्या
राजवार्तिकमां नीचे प्रमाणे आपी छे:–
उमय निमित्तापेक्षः पर्याय विशेषो द्रव्यस्य देशांतर प्राप्ति हेतुंः क्रियाः।। १।।
अर्थ:–उभयनिमित्त एटले अभ्यंतर अने बाह्य कारणो द्वारा जे द्रव्यने एक देशथी बीजा देशनी प्राप्ति थाय छे.
एवी विशेष पर्याय [अवस्था] नुं नाम क्रिया छे. (जुओ राजवार्तिक अध्याय प सूत्र ७ नीचे पहेली कारिका पानुं
८४] [आ क्रियाने मोक्ष साथे संबंध नथी.]
[२] क्रियानो बीजो अर्थ परिणति छे; श्री समयसारमां कलश ५१ मां क्रियानो अर्थ नीचे प्रमाणे आप्यो छे.
यः परिणमति सकर्ता यः परिणाभो भवे तु तत्कर्म।
या परिणतिः कियासा त्रयमपि भिन्न न वस्तुतया।। ५१।।
अर्थ:–जे परिणमे छे ते कर्ता छे. [परिणमनारनुं] जे परिणाम छे ते कर्म छे, अने जे परिणति छे ते क्रिया छे;
ए त्रणेय वस्तुपणे भिन्न नथी. ५१. (जुओ गुजराती समयसार पानुं. १२६.)
[३] आत्माना तथाविध परिणाम ते जीवनी क्रिया; केमके सर्व द्रव्योनां परिणाम लक्षण ते क्रिया छे; आत्माना
परिणाम ते आत्मानी क्रिया होवाथी जीवमयी क्रिया ते कहेवाय छे; जे द्रव्यनी जे परिणामरूप क्रिया छे तेनाथी ते द्रव्य तन्मय छे:
ए कारणे जीव पण तन्मय होवाथी ते जीवमयी क्रिया ते जीवनी (आत्मानी) क्रिया छे. [जुओ श्री प्रवचनसार पानुं–१७१–
१७२ संस्कृत तथा हिंदी टीका.] आत्मा अने जीव ए एक ज अर्थमां वपराय छे. तेथी ते पर्यायवाचक शब्दो छे.
श्रीमद् राजचंद्रजी पण तेम ज नीचेना शब्दोमां कहे छे:– ‘सर्व पदार्थ अर्थ क्रियासंपन्न छे, कंईने कंई परिणाम क्रिया
सहित ज सर्व पदार्थ जोवामां आवे छे; आत्मा पण क्रियासंपन्न छे.’ (जुओ श्री सर्वसामान्य प्रतिक्रमण आवश्यक पानुं–९.)
३:–क्रिया शब्दना अर्थ उपर कह्या ते उपरथी नीचे मुजब सिध्धांतो मुकरर थाय छे.
(१) दरेक द्रव्यनुं परिणाम ते क्रिया होवाथी अने द्रव्यो छ प्रकारना होवाथी नीचेनी छ क्रिया थई.
अ. जीवनी क्रिया, ते चैतन्य क्रिया [शुद्ध; शुभ, अशुभ]
ब. पुद्गलनी क्रिया एटले एक पुद्गलथी मांडीने अनंतानंत पुद्गलोनी थती क्रिया, ते पौद्गलिक क्रिया, शरीर
पुद्गल होवाथी तेनी क्रिया ते जड क्रिया छे.
क. धर्मास्तिकायनुं परिणमन ते धर्मास्तिकायनी क्रिया. ड. अधर्मास्तिकायनुं परिणमन ते अधर्मास्तिकायनी क्रिया.
इ. आकाशनुं परिणमन ते आकाशनी क्रिया. फ. काळद्रव्यनुं परिणमन ते काळनी क्रिया.
[आ बधी क्रियाओ मोक्षनी क्रिया नथी.]
(२) जीव अने पुद्गलनुं आकाशना एक क्षेत्रमांथी बीजा क्षेत्रमां गमन ते गमन क्रिया.
४:–मोक्ष जीवनो थाय छे, तेथी जीवनी क्रिया वडे मोक्ष थाय; जीवनी क्रिया शुध्ध अगर अशुद्ध एम बे प्रकारे छे,
तेमांथी जीवनी शुध्ध क्रिया वडे मोक्ष थाय, अने अशुध्ध क्रिया वडे संसार थाय; माटे अहीं जीवनी शुद्ध क्रिया एवो अर्थ लेवो.
५:–ज्ञाननो अर्थ ‘सम्यग्ज्ञान’ थाय छे, अने क्रियानो अर्थ ‘शुद्धात्म अनुभव क्रिया’ थाय छे; ए बाबतमां
नीचे मुजब समयसार नाटकमां कह्युं छे.
[दोहा]
शुध्धात्म अनुभौ क्रिया, शुद्ध ग्यान दिग दौर मुक्ति–पंथ साधन यहै वाग्जाल सब और. ।। १२६।।
(सर्व विशुद्धि द्वार)
सम्यक्दर्शन, शुध्ध ज्ञान अने शुध्धात्म अनुभव क्रिया ए मोक्षनो मार्ग अने साधन छे. बीजुं बधुं वाग्जाळ छे. १२६.
आ उपरथी साबित थयुं के ‘क्रिया’ नो अर्थ आ जगाए ज्ञानमां स्थिरता एटले के शुद्धात्म अनुभव क्रिया छे; शुभ–अशुभ
भाव क्रिया के शरीरनी क्रिया नहि. उत्तराध्यनसूत्रना मोक्षमार्ग अध्यायनी गाथा २५ मां पण तेम ज कह्युं छे, ते नीचे प्रमाणे छे.
दंसण नाण चरिते, तव विणह सच्च सहिई गुत्तीसु।
जो किरिआ भाव रुइ, सो खलु किरिया रुइ नाम।। २५।।
(नोट:– ‘सच्च’ शब्द ‘सत्’ ‘च’ नो बनेलो छे. सत्नो अर्थ भूतार्थ, परमार्थ, यथार्थ, सत्य, सम्यक्,