Atmadharma magazine - Ank 002
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4 of 17

background image
शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
वर्ष १: : अंक २
पोष : : २०००
श्री जिनवाणी – स्तवन
[शांति जीनेश्वर साचो साहीब × + + ए राग]
महिमा है अगम जिनागमकी, महिमा हैं अगम जिनागमकी ।। टेक।।
जाहि सुनत जनभिन्न पिछानी, हम चिनमूरति आतमकी. महिमा. ।। ।।
रागादिक दुःखकारन जाने त्याग बुद्धि दीनी भ्रमकी महिमा–
ज्ञान जोती जागी उर अंतर रुचि बाढी पुनि शम दमकी महिमा– –
।। ।।
कर्म बंधकी भई निर्जरा कारण परंपराक्रमकी महिमा–
भागर्चांदि शव लालच लाग्यो, पहुंच नहीं है जहुं जमकी महिमा– –
।। ।।
(जिनेन्द्र स्तवन मंजरी पानुं ३६० स्तवन–३३८)
अर्थ– जैन आगमनी अगम्य महिमा छे. में
तेने सांभळी ने हुं (चिनमूरति (ज्ञानमूर्ति) आत्मा
सर्वथी भिन्न छुं एम समज्यो. १
भ्रमणा रूप बुद्धि हती तेने त्यागी रागादिकने
दुःखनां कारण जाण्या. तेथी मारा अंतरमां ज्ञान
ज्योति जागी. स्वरूपनी रुचि वृद्धि पामी
[सम्यग्दर्शन ज्ञानपूर्वक] शम [शुध्ध चारित्र]
प्रगट्युं, अने तेथी विभावी भावनुं दमन थयुं. २
परम पुरुषार्थना कारणे कर्मबंधनी निर्जरा
थई. ज्यां मरण पहोंची शके नहीं त्यांनी एटले शीव
[मोक्ष] अभिलाषा थई एम भागचंद्रजी कहे छे. ३