Atmadharma magazine - Ank 002
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
आत्मधर्म
वर्ष १ लुं अंक २ पोष २०
दर महिनानी शुद २ ना प्रगट थाय छे.
शरू थता नवा महिनाथी ज ग्राहक थई शकाय छे.
वार्षिक लवाजम रूा. २–८–० छुटक नकल ४ आना. परदेशनुं वा. ल. ३–२–० ग्राहको तरफथी सूचना आव्या
वगर नवा के जूना ग्राहकोने वी. पी. करवामां आवतुं नथी.
लवाजम पूरूं थये लवाजम पूरूं थयानी स्लीप छेल्ला अंकमां चोंटाडी ग्राहकने जाण करवामां आवे छे.
ग्राहक तरीके चालु रहेनारे कां तो मनी–ओर्डरथी लवाजम मोकली आपवुं अथवा वी. पी. थी लवाजम वसुल
करवानी सूचना लखी जणाववी.
म. ओ. के वी. पी. करवानी सूचना नहि आवे तो ग्राहक तरीके चालु रहेवा नथी ईच्छता एम समजी मासिक
मोकलवुं बंध करवामां आवशे.
नमुनानी नकल मफत मोकलवामां आवती नथी. माटे नमुनानी नकल मंगावनारे चार आनानी टिकिटो मोकलवी.
सरनामानो फेरफार अमोने तुरत जणाववो के जेथी नवो अंक नवा सरनामे मोकलावी शकाय.
ग्राहकोए पत्रवहेवार करती वखते पोतानो ग्राहक नंबर अवश्य जणाववा विनंति छे.
वर्षना कोई पण महिनाथी ग्राहको नोंधवामां आवता होवाथी, महिना करतां अंकना पूंठा उपर मोटा अक्षरे
छापवामां आवता संख्यांकनी ज गणतरी राखवामां आवे छे. जेटलामां अंकथी लवाजम भरवामां आवे ते अंकथी
गणीने बार अंक ग्राहकोने मोकलवामां आवे छे. एटले, ग्राहकोए पण महिनानी नहि पण अंकोनी संख्यानी ज
गणतरी राखवी.
सोल एजन्ट शिष्ट साहित्य भंडार – विजयावाडी, मोटा आंकडिया काठियावाड
अनेकान्त धर्म सर्वज्ञनो मत अनेकान्त छे.
अनेकान्त=एक वस्तुमां वस्तुपणानी नीपजावनारी परस्पर विरुद्ध बे शक्तिओनुं प्रकाशवुं ते अनेकान्त छे.
(समयसार पा. ४८८) अथवा बीजी रीते अनेकांतनुं स्वरूप कहीए तो बे विरोध शक्तिओने प्रकाशे अने वस्तुने
सिद्ध करे ते अनेकांत छे.
भगवाने बे नय कह्या छे.
१–निश्चयनय–२–व्यवहारनय निश्चयनय–ते स्वभाव आश्रित छे, व्यवहारनय ते पराश्रित–निमित्त आश्रित छे.
ते बन्नेने जाणीने निश्चय स्वभावना आश्रये पराश्रित व्यवहारनो निषेध ते अनेकांत छे. पण
(१) कोईवार स्वभावथी धर्म थाय अने कोईवार व्यवहारथी पण धर्म थाय एम कहेवुं ते अनेकांत नथी
एकांत छे,
(२) स्वभावथी लाभ थाय अने कोई देव, गुरु, शास्त्र पण धर्म करावी दीये एम मान्युं तेणे बे तत्त्वो एक
मान्या–अर्थात् एकांतवाद मान्यो छे.
व्यवहार अने निश्चय बन्ने नय छे खरा, पण तेमां एकने (व्यवहारने) मात्र ‘छे’ एम जाणवुं, अने बीजा
(निश्चय) ने आदरणीय मानी तेनो आश्रय करवो ते ज अनेकांत छे. आत्मानुं स्वरूप अनेकांत छे.
स्वभावे शुध्ध नित्य; पर्याये अशुध्ध अनित्य तेमां पर्याय उपर द्रष्टि ते व्यवहार छे, अने स्वभाव उपर द्रष्टि
ते निश्चय छे, बन्नेने मानीने निश्चयने आदरवो ते अनेकांत छे. अने ते निश्चय स्वभावना जोरे ज धर्म थाय छे.
(पूज्य सद्गुरुदेवना ता. १४–१२–४३ ना व्याख्यान उपरथी.
क्षमा :– ‘आत्मधर्म’ नो बीजो अंक बहु ज मोडो प्रगट थाय छे. परंतु टाईपो, रजीस्टर नंबर तथा ब्लोक
वगेरेनी तैयारीमां अनिवार्य ढील थई छे, ते बदल ग्राहक बंधुओ दरगुजर करशे एवी आशा छे. प्रकाशक
समाचार :– ता. ७ डिसेम्बर १९४३ थी ता. १२ सुधी राजकोट मुकामे रामकृष्ण आश्रम तरफथी बधा धर्मोनी
परिषद भरवामां आवेल हती, तेमां जैन धर्म उपरना विचारो दर्शाववा आ संस्थाना प्रमुखःश्री रामजी
माणेकचंद दोशीने आमंत्रण आपवामां आव्युं हतुं अने ते परिषदमां तेमणे ते विषय उपर पोताना विचारो
जणाव्या हता, ते प्रसंगे तेमणे पोतानुं भाषण लेखीत तैयार करेलुं हतुं. ते आ पत्रमां अनुकूळता प्रमाणे
प्रसिद्ध करवामां आवशे.
मुद्रक:– चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय विजयावाडी, मोटा आंकडिया. काठियावाड.
प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्याय ट्रस्ट सोनगढ, वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, दिनकर निवास विजयावाडी,
मोटा आंकडिया, काठियावाड.