उपदेश शा माटे आपो छो? तथा जो पुरुषार्थथी बने छे तो सर्व उपदेश सांभळे छे छतां तेमां कोई पुरुषार्थ करी
शके छे तथा कोई नथी करी शकतां तेनुं शुं कारण?
उत्तर–एक कार्य थवामां अनेक कारणो मळे छे. मोक्षनो उपाय बने छे त्यां तो पूर्वोक्त त्रणे कारणो मळे
थयुं तेज भवितव्य. वळी कर्मनां उपशमादिक छे ते तो पुद्गलनी शक्ति छे तेनो कर्ता हर्ता आत्मा नथी, तथा
पुरुषार्थ पूर्वक उद्यम करवामां आवे छे ते आत्मानुं पोतानुं कार्य छे, माटे आत्माने पुरुषार्थ पूर्वक उद्यम करवानो
उपदेश आपीए छीए. हवे आ आत्मा जे कारणथी कार्यसिद्धि अवश्य थाय ते कारणरूप उद्यम करे त्यां तो अन्य
थाय ते कारण रूप उद्यम करे तो त्यां अन्य कारण मळे तो कार्य सिद्धि थाय न मळे तो न थाय, हवे जिनमतमां
जे मोक्षनो उपाय कह्यो छे तेनाथी तो मोक्ष अवश्य थाय ज. माटे जे जीव श्री जिनेश्वरना उपदेश अनुसार
पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करे छे. तेने तो काळलब्धि वा भवितव्य पण थई चुक्यां तथा कर्मना उपशमादि
थयां छे त्यारे तो ते आवो उपाय करे छे, माटे जे पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करे छे तेने तो सर्वकारणो मळे
छे, अने अवश्य मोक्षनी प्राप्ति थाय छे; एवो निश्चय करवो. तथा जे जीव पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करतो
नथी तेने तो काळलब्धि अने भवितव्य पण नथी, अने कर्मना उपशमादि थयां नथी तेथी ते उपाय पण करतो
नथी माटे जे पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करतो नथी तेने तो कोई पण कारण मळतां नथी तथा तेथी मोक्षनी
प्राप्ति पण थती नथी, एवो निश्चय करवो. वळी तुं कहे छे के––उपदेश तो सर्व सांभळे छे, छतां कोई मोक्षनो
पुरुषार्थ करे छे ते तो मोक्षनो उपाय करी शके छे. पण जे पुरुषार्थ नथी करतो ते मोक्षनो उपाय करी शकतो
नथी. उपदेश तो शिक्षा मात्र छे, पण फळ तो जेवो पुरुषार्थ करे तेवुं आवे.
रीते सिद्ध थाय? ए तो एक भ्रम छे.
उत्तर––साचा उपदेशथी निर्णय करतां भ्रम दूर थाय छे, आ तेवो पुरुषार्थ करतो नथी के जेथी भ्रम दूर
उपशमादि थतां भ्रम दूर थई जाय छे. कारण के निर्णय करतां परिणामोनी विशुद्धता थवाथी मोहनो स्थिति–
अनुभाग पण घटे छे.