Atmadharma magazine - Ank 003
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्मना पांच नवा ग्राहकोना
नाम मोकली आपशो?
“आत्मधर्म” ना ग्राहकोने विनति
आत्मधर्म मासिक संबंधे तमारो दरेक
पत्र व्यवहार ग्राहक नंबर सहित
मोटा आंकडिया करशोजी.
मोक्षना साधनमां
पुरुषार्थनी मुख्यता
प्रश्न–मोक्षनो उपाय काळलब्धि आवतां भवितव्यानुसार बने छे, के मोहादिकनो उपशमादि थतां बने छे,
के पोताना पुरुषार्थ पूर्वक उद्यम करता बने छे? ते कहो. जो पहेलांं बे कारणो मळतां बने छे तो तमे अमने
उपदेश शा माटे आपो छो? तथा जो पुरुषार्थथी बने छे तो सर्व उपदेश सांभळे छे छतां तेमां कोई पुरुषार्थ करी
शके छे तथा कोई नथी करी शकतां तेनुं शुं कारण?
मोक्ष साधनमां पुरुषार्थनी मुख्यता
उत्तर–एक कार्य थवामां अनेक कारणो मळे छे. मोक्षनो उपाय बने छे त्यां तो पूर्वोक्त त्रणे कारणो मळे
छे. तथा नथी बनतो त्यां ए त्रणे कारणो नथी मळता, पूर्वोक्त त्रण कारण कह्या तेमां काळलब्धि तथा जे कार्य
थयुं तेज भवितव्य. वळी कर्मनां उपशमादिक छे ते तो पुद्गलनी शक्ति छे तेनो कर्ता हर्ता आत्मा नथी, तथा
पुरुषार्थ पूर्वक उद्यम करवामां आवे छे ते आत्मानुं पोतानुं कार्य छे, माटे आत्माने पुरुषार्थ पूर्वक उद्यम करवानो
उपदेश आपीए छीए. हवे आ आत्मा जे कारणथी कार्यसिद्धि अवश्य थाय ते कारणरूप उद्यम करे त्यां तो अन्य
कारणो अवश्य मळे ज अने कार्यनी सिद्धि पण अवश्य थाय ज तथा जे कारणथी कार्य सिद्धि थाय अथवा न पण
थाय ते कारण रूप उद्यम करे तो त्यां अन्य कारण मळे तो कार्य सिद्धि थाय न मळे तो न थाय, हवे जिनमतमां
जे मोक्षनो उपाय कह्यो छे तेनाथी तो मोक्ष अवश्य थाय ज. माटे जे जीव श्री जिनेश्वरना उपदेश अनुसार
पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करे छे. तेने तो काळलब्धि वा भवितव्य पण थई चुक्यां तथा कर्मना उपशमादि
थयां छे त्यारे तो ते आवो उपाय करे छे, माटे जे पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करे छे तेने तो सर्वकारणो मळे
छे, अने अवश्य मोक्षनी प्राप्ति थाय छे; एवो निश्चय करवो. तथा जे जीव पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करतो
नथी तेने तो काळलब्धि अने भवितव्य पण नथी, अने कर्मना उपशमादि थयां नथी तेथी ते उपाय पण करतो
नथी माटे जे पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करतो नथी तेने तो कोई पण कारण मळतां नथी तथा तेथी मोक्षनी
प्राप्ति पण थती नथी, एवो निश्चय करवो. वळी तुं कहे छे के––उपदेश तो सर्व सांभळे छे, छतां कोई मोक्षनो
उपाय करी शके छे अने कोई नथी करी शकता तेनुं शुं कारण? तेनुं कारण आ छे के–जे उपदेश सांभळीने
पुरुषार्थ करे छे ते तो मोक्षनो उपाय करी शके छे. पण जे पुरुषार्थ नथी करतो ते मोक्षनो उपाय करी शकतो
नथी. उपदेश तो शिक्षा मात्र छे, पण फळ तो जेवो पुरुषार्थ करे तेवुं आवे.
प्रश्न––द्रव्यलिंगीमुनि मोक्षना अर्थे गृहस्थपणुं छोडी तपश्चरणादि करे छे त्यां तेणे पुरुषार्थ तो कर्यो छतां
कार्य सिद्ध न थयुं. माटे पुरुषार्थ करवाथी तो कांई सिद्धि नथी.
उत्तर––अन्यथा पुरुषार्थ करी फळ ईच्छे पण तेथी केवी रीते फळसिद्धि थाय? तपश्चरणादि व्यवहार
साधनमां अनुरागी थई प्रवर्तवानुं फळ तो शास्त्रमां शुभबंध कह्युं छे, अने आ तेनाथी मोक्ष ईच्छे छे ते केवी
रीते सिद्ध थाय? ए तो एक भ्रम छे.
प्रश्न––ए भ्रमनुं कारण पण कोई कर्म ज छे, पुरुषार्थ शुं करे?
उत्तर––साचा उपदेशथी निर्णय करतां भ्रम दूर थाय छे, आ तेवो पुरुषार्थ करतो नथी के जेथी भ्रम दूर
थाय अने तेथी ज भ्रम रहे छे. पण निर्णय करवानो पुरुषार्थ करे तो भ्रमनुं कारण जे मोह कर्म तेनो पण
उपशमादि थतां भ्रम दूर थई जाय छे. कारण के निर्णय करतां परिणामोनी विशुद्धता थवाथी मोहनो स्थिति–
अनुभाग पण घटे छे.
(मोक्षमार्ग प्रकाशक)