Atmadharma magazine - Ank 003
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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He who does
not regard Punya
(virtue or good
deeds)and papa
(evil or bed deeds)
as equal, such a
one being under
the influence of
Moha (ignorance or
illusion) will wander
in the samsara for a
long time and
remain unhappy.
Parmatma Prakash
माह : २००० आत्मधर्म : ३१ :
शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
आत्मधर्म
स्तवन
रग. ख्यल.
मैं नेमिजीका बंदा, मैं साहिबजी का बंदा. । मैं नेमिजी। टेक
नैन चकोर दरसको तरसै, स्वामी पुनम चंदा. ,, १
छ हों दरबमें सार बतायो, आतम आनंद कंदा
ताको अनुभव नितप्रति करते, नासे सब दुःख दंदा. ,, २
देत धरम उपदेश भविक प्रति, ईच्छा नाहिं करंदा;
रागरोष मद मोह नहीं, नहीं क्रोध लोभ छल छंदा. ,, ३
जाको जस कहि शके न कयों ही, ईन्द्र फनिंद्र नरिंदा;
सुमरन भजनसार है द्यानत, अवर बात सब फंदा. ,, ४
जिनेन्द्र स्तवन मंजरी पानुं – ३८७ स्तवन नं. – ३७१
अर्थ–हुं भगवान नेमिनाथनो दास
छुं. भगवाननो दास छुं. मारी द्रष्टि चकोर
पक्षीनी माफक आपना दर्शन माटे तलसे छे.
आप पुनमना चंद्र जेवा पूर्ण छो–१
छ द्रव्योमां सार आत्मा आनंद कंद
छे, एम आपे बताव्युं, तेनो अनुभव
नित्य करतां–सर्वे दुःख अने द्वंद्वनो नाश
थाय छे. ––२
आप ईच्छा करता नथी तो पण
भव्य जीवने धर्मनो उपदेश आपो छो.
आपने राग, द्वेष, मद अने मोह नथी; तेम
क्रोध, कपट, लोभ, छळ के स्वच्छंद नथी. –३
आपना गुणईन्द्र, फनिन्द्र के नरेन्द्र
कोई गाई शके नहीं, आपनुं वीतरागतानुं
स्मरण तेज भजननो सार छे, बाकी बधी
वात फंद छे, एम द्यानतरामजी कहे छे. –४