धर्म विषे आदर नथी. ते जीव धर्म स्नेह, प्रशस्त रागनो निरोध पापमां टकीने करनारो छे. सत् धर्मनी उन्नति
ईच्छता नथी. तेथी ते पापी जीव छे. जे मुमुक्षु छे तेने यथा योग्य विवेक होय. परमार्थ अने परमार्थभूत
वहेवार तथा निमित्तभूतव्यहवार तेने जेम छे तेम जाणे. हित अहित, हेय उपादेय बराबर समजे अने भक्ति
विनय, सत्समागम वैराग्य वगेरे ज्यां जेम घटे तेम विवेक करे. वीतरागी पवित्र तत्त्वनी द्रष्टि होय अने भुंडा
रागनी
आव्या विना न रहे; जो परमार्थने पाम्यो हो तो आत्मानी पवित्र वीतराग दशामां ठरी जा. पण ज्यां लगी
अप्रशस्त राग संसारनो प्रेम छे अने साचा परमार्थने अनुकुळ निमित्तनो अनादर (अनुत्साह) राखे ए तो
महा अज्ञानता छे. कोई एकांत द्रष्टि पकडीने देहादि क्रिया कांडमां अटक्या छे. कोई साचा निमित्तने निषेधवामां
निंदा करवामां, कोई मननी धारणामां कर्म भावमां अटक्या छे. लोकोने भूलवाना स्थान ज्यां त्यां घणा छे.
अनादिथी उंधी द्रष्टि ज्ञाननी (सत् स्वरूपनी) विराधना अने साची परीक्षानो अभाव तेथी धर्मघेला जीवोने
ठामठाम उंधुं समजावनारानो योग सांपडे छे. पोतानी सगवडता राखवी छे, पोतानी निंदा थाय ए गोठतुं
नथी, अने सुपात्र मुनि के कोई साधर्मी भाईनी सेवामां भाग केम लेतो नथी तथा वीतराग धर्मनी
प्रभावनानी निंदा थती केम गोठे छे? माटे धर्मनी रुचि होय त्यां संसारनो देहादिनो अशुभ राग छोडवा माटे
शुभ परिणाम करवानी ना पाडी नथी, कारणके सत्नी रुचि होय तेने प्रशस्त राग थया विना रहेशे नहि. छतां
ते रागनो राग नथी. वळी परमार्थ मोक्षमार्गमां (आत्मधर्ममां) शुभ भाव
निषेधरूप अबंधभाव ऊभो राखे तो वळी धर्मात्माने अधुरूं चारित्र छे, त्यां लगी निश्चय स्वरूपना लक्षे धर्मनी
पंभावनाना भावो थाय छे. पण शुभ परिणामथी तथा देहनी क्रियाथी धर्म मानतो नथी. छतां अकषायना लक्षे
तीव्र कषाय टाळवानो पुरुषार्थ ते अकषायमां जवा माटे निमित्त छे, तेम जाणे छे. माटे पुरुषार्थने पोतानो
माने छे. वळी कोई निश्चय स्वरूपना अनुभव विना मात्र देव, गुरु, धर्मनी भक्ति देहादि क्रिया वगेरे व्यवहार
धर्मने ज उपादेय माने, जोगनी क्रियाथी साधन माने अने पुण्य परिणाममां रोकाई जाय तो साचो पुरुषार्थ
नथी. निश्चयना लक्ष विना मंद कषाय ते वास्तविक मंद कषाय (एटले प्रशस्त राग) नथी. छतां जेने
स्वानुभव दशा प्राप्त नथी, तेने आ शुभ भाव छोडी अशुभमां जवुं एम कोई शास्त्रमां कह्युं नथी. देव, गुरु,
धर्म ए त्रणे वीतराग स्वरूप छे. तेनो परमार्थ ग्रहीने स्वतत्त्व संबंधी रुचि वधारे; साचुं समजवानो पुरुषार्थ
थतां साथे शुभ परिणामना विकल्प अने शुभ निमित्त आवे ज. तेनो निषेध करे अने संसारना अशुभ
रागादिमां वर्ते तेने पात्रता (ऊंच भूमिका) जोईती नथी. अशुभ आचारनो आदर करीने जशे कया? तेने
पवित्र धर्मनी रुचि ज नथी. देहादि संसार राखवानी रुचि छे. २प०००) नुं मकान करवुं होय तो बराबर
व्यवस्था राखवाना भाव करे, टाईमनी काळजी राखे, जाते पण देखरेख राखे. मजुर वगेरे शुं करे छे? कांकरी
सारी छे? चुनो चीकणो नहि होय तो आ हजीरो (मकान) वहेलो पडी जशे. एना पाया मजबूत अने उंडा
करवा वगेरे काळजी (रुचि) राखे पण मारा सत् स्वरूपनी श्रद्धाना पायानुं शुं? पवित्र देव, गुरु, धर्मनी
भक्ति, प्रभावनामां, भक्ति वडे आदर कर्यो नथी तो मरीने क्यां उतारा करशे? सत् देव, सत् गुरु, सत् धर्मनी
भक्ति प्रभावनाना निमित्तो मेळववा प्रत्ये अरुचि राखनारा आरंभ समारंभना बहाना बतावे छे अने
पोताना घेर लग्न आदि प्रसंगमां ते रुचि राखे छे. तेनो अर्थ भुंडा रागनी रुचि छे. ईष्ट निमित्तोनी शोभा
(देव, गुरु, धर्मनी प्रभावना) भक्ति ए प्रशस्त राग छे. ने परमार्थे होय छे. पण हजु हुं कोण छुं, केवडो छुं
तेनुं ज्ञान नथी. ते शुभनो निषेध करीने जाशे क्यां? जेने स्वरूपनी द्रष्टि थाय तेने रागनी दिशा बदलाया विना
न रहे. कारण के साधक दशा छे त्यां लगी राग थई जाय. पवित्र जिन शासननी शोभा