Atmadharma magazine - Ank 003
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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माह : २००० आत्मधर्म : ३५ :
तारीख ७ मी डिसेम्बर १९४३ थी ता. १२ सुधी राजकोट मुकामे रामकृष्ण आश्रम
तरफथी बधा धर्मोनी परिषद भरवामां आवेली हती, तेमां जैनधर्म उपरना विचारो
दर्शाववा श्री रामजी माणेकचंद दोशीने आमंत्रण आपवामां आव्युं हतुं. ते वखते तेओए
जे व्याख्यान आपेलुं ते अहीं रजु करवामां आवेल छे.
जैनधर्म
लेखक: – रामजीभाई माणेकचंद दोशी
आ विषयने नीचेना पांच विभागोमां वहेंचवाथी समजवानुं स्पष्ट थशे.
(१) ‘जैनधर्म’ ए पदनो अर्थ.
(२) जैनतत्त्व संक्षेप.
(३) जैन शास्त्रोनी कथन पद्धति. (४) जैन दर्शननुं अनादि अनंतपणुं.
(प) सौराष्ट्रनो जैन धर्म प्रत्येनो फाळो.
१ जैनधर्म ए पदनो अर्थ.
‘जैनधर्म’ ए बे शब्दोनुं बनेलुं एक पद (Phraze) छे. ‘वत्थु सहावो धम्मो’ तेनुं संस्कृत वाक्य
‘वस्तु स्वभाव: धर्म:’ जीव स्वतंत्र स्वयंसिद्ध ज्ञानमय वस्तु छे, तेथी ‘जीवनो स्वभाव ते धर्म’ एवो ‘धर्म’
शब्दनो अहीं अर्थ थाय छे. ए धर्मनी पहेलांं ‘जैन’ विशेषण लगाडवामां आवेल छे. ‘जैननो’ अर्थ
‘जितनारो’ एवो थाय छे; ए उपरथी सिद्ध थाय छे के पोतानो स्वभाव (धर्म) प्रगट करवामां कंईक जीतवानुं
होय छे, जो जीतवानुं न होय तो ‘जैन’ एवो शब्द बने नहीं. जे जीतवानुं छे ते जीवनी अनादिथी पोते पोषेली
पोताना स्वरूपनी भ्रमणा–ऊंधी मान्यता छे ते, अने ते भ्रमणाना कारणे थती पर वस्तु प्रत्येनी ईष्ट–
अनिष्टपणानी कल्पना जीवे जीतवानां छे. जे पोताना दोषोने जीतवानां छे तेने मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान अने
मिथ्याचारित्र ए नामथी ओळखवामां आवे छे. ते दोषोने जीतनारो आत्मानो जे स्वभाव ते ‘जैनधर्म’ छे.
‘जैनधर्म’ ते कोई संप्रदाय के वाडो होई शके नहीं, केमके आत्मानुं (पोतानुं) शुद्ध स्वरूप ते जैनधर्म छे.
(आत्मा अने जीव एक ज अर्थमां जैन शास्त्रोमां वापरवामां आवे छे.)
उपरनो अर्थ करवाथी फलित थयुं के आत्मा पोताना दोषने टाळे अने पूर्ण पवित्रता (वीतरागता)
प्रगट करे तेनुं नाम आत्मानो स्वभाव एटले के जैन धर्म छे; तेथी जे आत्माओ वीतरागता प्राप्त करे तेओ
संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करी शके.
आ संबंधमां श्रीमद् राजचंद्र कहे छे के:– –
‘जीव एक अखंड द्रव्य होवाथी, तेनुं ज्ञान सामर्थ्य संपूर्ण छे. संपूर्ण वीतराग थाय ते संपूर्ण सर्वज्ञ थाय.’
. त्त् क्ष
(१) अनंत आकाश छे. (२) तेमां जड–चेतनात्मक विश्व रह्युं छे. (३) विश्व मर्यादा बे अमूर्त द्रव्यथी
छे. जेने धर्मास्तिकाय–अधर्मास्तिकाय एवी संज्ञा छे. (४) जीव अने परमाणु पुद्गल ए बे द्रव्यो एक क्षेत्रेथी
बीजे क्षेत्रे जई शके छे. (प) सर्वद्रव्य द्रव्यपणे शाश्वत छे. (६) अनंत जीव छे. (७) अनंतानंत परमाणु पुद्गल
छे. (८) धर्मास्तिकाय एक छे. (९) अधर्मास्तिकाय एक छे. (१०) काळद्रव्य असंख्यात (काळाणु) छे. (११)
विश्व प्रमाण क्षेत्रावगाह करी शके एवो एकेक जीव छे. (श्रीमद् राजचंद्र आवृत्ति प ता. २२७–२२८)
उपर जे तत्त्व संक्षेपमां जणाव्युं तेमां आ जगतमां छ द्रव्यो (द्रव्य=अनंत गुणोनो त्रिकाळी अखंड
पिंड) छे, एम जणाव्युं ते नीचे प्रमाणे छे.
(१) जीव अनंत:– तेनुं लक्षण ज्ञान छे. तेना बे विभाग छे. संसारी अने सिद्ध. (जे ज्ञान स्वरूप दशा
पाम्या छे, ते अने सर्व दोषोथी मुक्त थया ते.)
(२) पुद्गल अनंतानंत:– तेना बे विभाग छे. परमाणु अने स्कंध (Molecules) बन्ने अनंतानंत
छे, तेना विशेष गुण स्पर्श, रस, गंध, वर्ण छे. तेने मूर्तिक पण कहेवामां आवे छे.