: ३६ : आत्मधर्म माह : २०००
(३) धर्मास्तिकाय:– एक ज द्रव्य छे, अमूर्तिक छे. जीव पुद्गल गति करे तेने उदासीन निमित्त छे.
(४) अधर्मास्तिकाय:– एक ज द्रव्य छे. जीव पुद्गल गति करतां अटकी स्थिर थाय तेने उदासीन
निमित्त छे.
(प) काळ:– लोक प्रमाण असंख्यात द्रव्य छे. ते बधां द्रव्योने वर्तनामां निमित्त छे.
(६) आकाश:– द्रव्य एक छे, तेना बे विभाग छे. (१) लोकाकाश जेमां आ छए द्रव्य जोवामां आवे
छे. (२) अलोकाकाश जेमां एक आकाश ज छे; तेमां लोकाकाश बधाने क्षेत्रावगाहपणे छे.
तेमां नां. २ थी ६ सुधी बधां अचेतन द्रव्यो छे, एटले तेने सुख––दुःख नथी. जीव द्रव्य जेनी संख्या
अनंत छे तेनुं लक्षण चेतन छे. जीवनो एक विभाग सिद्ध छे. तेमणे संपूर्ण पवित्रता प्राप्त करी होवाथी संपूर्ण
सुखी छे; बाकी रह्या संसारी जीव तेना पण बे विभाग छे. [१] केवळी [२] छद्मस्थ– [अपूर्ण ज्ञानवाळा]
तेमां जे केवळी छे ते संपूर्ण सुखी छे, केमके तेमणे पोताना स्वरूपनी भ्रमणा टाळी संपूर्ण राग–द्वेषनो नाश कर्यो
छे, अने तेने परिणामे संपूर्ण ज्ञान अने सुख प्रगट कर्यां छे. बाकी रह्या ‘छद्मस्थ’ तेमना संबंधे अहीं जणाववा
जरूर छे, केमके सर्व जीव सुखने ईच्छे छे अने ते सुख शाश्वत रहे तेम ईच्छे छे, छतां तेने शाश्वत सुख मळतुं
नथी. माटे दुःख थवानुं शुं कारण छे अने शाश्वत सुख शी रीते प्राप्त थाय ते अहीं जणाववामां आवशे.
जीव अनादिथी शरीरने पोतानुं माने छे, अने तेथी दुःखी थाय छे, तेने पोताना स्वरूपनी भ्रमणा जो
टळे तो ज दुःख टळे अने शाश्वत सुख प्रगटे. सुख जीवनो पोतानो गुण छे. तेथी सुख जीवमां ज होई शके. पण
जीव पोतानुं स्वरूप समजतो नहीं होवाथी ज्यां सुधी भ्रमणा न टळे त्यां सुधी ते दुःखी ज रहे छे, अने परनी
सगवडताने सुख माने छे. तेथी जीवे पोतानुं स्वरूप समजवुं जोईए. पोतानुं स्वरूप समजवामां पोता सिवाय
पर (बीजी) वस्तुओ (द्रव्यो) शुं छे ते समजवुं जोईए; पोताने समजतां, पोतानी भ्रमणा रूप अवस्थानुं शुं
कारण छे, अने ते विकारी अवस्था टळी अविकारी अवस्था केम प्रगटे; आत्मा परनुं कांई करी शके के केम, पर–
आत्मानुं कांई करी शके के केम? ए वगेरे यथार्थपणे समजवुं जोईए.
उपरना विषयो जैनशास्त्रोमां अनेक द्रष्टिथी अने विस्तारथी समजाववामां आव्या छे. ते बधा अहीं
कही शकाय नहीं, तेथी तेना मूळभूत थोडा सिद्धांतो नीचे आपवामां आवे छे:–
[१] [.]
अर्थ:– द्रव्यनुं लक्षण सत्ता (होवापणुं Existence) छे.
[२] [.]
अर्थ:– नवी अवस्था प्रगटवी, जूनी अवस्था टळी जवी अने वस्तुपणे टकी रहे ते सत् कहेवाय छे, दरेक
वस्तुनुं कायम पणुं (Permancy) टकीने तेनी अवस्था बदले छे. (with a change) कोईपण वस्तुनो
सर्वथा नाश थतो नथी, मात्र तेनुं रूपांतर थाय छे. (No substance is destroyed, every substance
changes its form.)
[३] गुण पर्यय वद्र द्रव्यम् (अध्याय प सूत्र ३८ श्री तत्त्वार्थ सूत्र)
अर्थ:– द्रव्य गुण अने पर्याय वाळुं होय छे. एटले के जगतमां कोई पण वस्तु तेना गुण अने ते गुणोनी
अवस्था वगरनुं होतुं नथी. (Every substance has it' s qualities and condition)
[४] द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः अध्याय प सूत्र ४१ श्री तत्त्वार्थ सूत्र)
अर्थ:– जे द्रव्यने नित्य आश्रित रहे अने पोते गुणोथी रहित होय ते गुण छे. बीजा शब्दोमां––जे
द्रव्यना सर्व भागमां अने सर्व अवस्थामां रहे ते ‘गुण’ छे.
[५] तम्दावःपरिणामः (अध्याय प सूत्र ४२ श्री तत्त्वार्थ सूत्र)
अर्थ:– गुणोनुं भावरूप परिणाम [ते पर्याय] छे.
[६] उपयोगो लक्षणं (अध्याय २ सूत्र ८ श्री तत्त्वार्थ सूत्र)
अर्थ:– जीवनुं लक्षण उपयोग [बोधरूप–ज्ञानरूप–व्यापार] छे.