Atmadharma magazine - Ank 004
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २००० : आत्मधर्म : ५३ :
बे मित्रो
वच्चे गंभीर संवाद
लेखक :– दोशी रामजीभाई माणेकचंद
पहेलो मित्र:– आपणे आगळ सम्यक् तप संबंधे चर्चा करी हती त्यारे नीचेना विषयो तेमां आव्या हता:–
(१) आपणी छती शक्तिए आहारादि आपणे छोडीए ते स्ववशे छोडया कहेवाय के केम?
(२) अस्ति अने नास्तिनुं स्वरूप समज्या वगर जीवनुं स्वरूप यथार्थ समजाय नहीं.
(३) सम्यग्द्रष्टिने ज यथार्थ तप होय छे.
(४) तत्त्वनी वात प्रतिपादन थाय त्यारे तेनो बधे पडखेथी विचार करी निर्णय करे तो ज
धर्मनुं यथार्थ स्वरूप समजाय.
(प) निमित्त नैमित्तिक संबंध समजवो जोईए.
(६) शास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति जाणवी जोईए.
आ विषयोमांथी पहेलां विषय संबंधी वधारे स्पष्टतानी जरूर छे, एम में जणाव्युं हतुं.
में ते संबंधे केटलाक विचारो कर्या छे, तो पण तमारी साथे चर्चा थाय तो विशेष चोखवट थाय
एम मानुं छुं; माटे तमे संमत हो तो आपणे ते विषय हाथ धरीए.
बीजो मित्र:– तमे आ बाबतमां रस लई विचार करो छो माटे तमारे जे पूछवुं होय ते खुशीथी पूछो.
पहेलो मित्र:– आपणने रोटला–पाणी बधुं मळ्‌युं छे, अने आपणे रोटला पाणी छती शक्तिए छोडीए तो ते
स्ववशे छोडया केम न कहेवाय?
बीजो मित्र:– तमे एम कहेवा मागो छो के आपणे आहार लेवा धारता होईए अने बीजुं कोई अडचण
नांखे अने आहार न लई शकीए तो परवशे आहार छोड्यो कहेवाय; पण आपणने आहारनी
सगवड होय, शरीर सारुं होय अने आहार एक दिवस न लेवानो नियम लईए तो स्ववशे
आहार न लीधो कहेवाय ए वात बराबर छे.
पहेलो मित्र:– हा. बराबर हुं तेमज कहेवा मांगुं छुं, चोवीश कलाक आहार नहीं लेवानुं नक्की करीए, जैनधर्मी
कुटुंबमां जन्म्या होईए, धर्म स्थाने जई, गुरु पासेथी बाधा लईए तो उपवास कर्यो कहेवाय
छे; अने तेने लोको तप अने निर्जरा कहे छे. घणा उपवास करनारने लोको तपस्वी कहे छे; ते
बधुं स्ववशे थतुं होवाथी निर्जरा थाय एम घणा माने छे.
में ते संबंधमां कोई विचार करेलो नथी. हवे ते संबंधे मनन करी, हुं निर्णय करवा मांगुं
छुं माटे ‘स्ववशे’ शुं कहेवाय ते तमे जणावो.
बीजो मित्र:– जुओ भाई, तमे कहो छो तेवा उपवासो अने नियमो तो दरेक संप्रदायमां थाय छे, पण तेने
तो निर्जरा न थाय एम तमे आगळ कहेता हता, तो पछी जैन धर्मी कुटुंबमां आपणे जन्म्या
अने तेवा उपवास करीए तो तप निर्जरा थाय एम मानवुं ए न्याय विरुद्ध छे.
पहेलो मित्र:– ए वात बराबर छे. एवी मान्यता तो न्याय विरुद्ध छे, माटे खरुं स्वरूप जणावो.
बीजो मित्र:– जुओ भाई! ‘स्ववश’ शब्द स्व+वशनो बनेलो छे. ‘स्व’ नो अर्थ पोते छे, अने पोते ते
आत्मा छे. माटे आत्माने प्रथम ओळखे, ते ज पोताने ‘वश’ वर्ती शके. तेथी सिद्ध थयुं के
आत्मज्ञानीने ज सम्यक् तप होई शके. आत्माने ओळखे नहीं, ओळखवानो प्रयत्न करे नहीं;
तेने सम्यक् उपवास के तप केम होई शके. आत्माने ओळखता न होय तेणे मंद कषायना हेतुथी
उपवास न करवो एम अहीं कहेवानो हेतु नथी; तीव्र कषाय ने बदले मंद कषाय ए तो ओछो
विकार छे, तेथी तेनो निषेध करी तीव्र कषाय करो अने गृद्धीपणुं वधारो एम कहेवानो हेतु होई
शके ज नहीं. आतो मंद कषायना भावने धर्म न मानवो–एटले ऊंधा अभिप्रायने–ऊंधी
मान्यताने फेरवी साची मान्यता करवा माटे आ कहेवाय छे.
पहेलो मित्र:– शुभभाव छोडी पापभाव करवानुं अगर तो गृध्धीपणुं वधारी आहारमां लीन थई अशुभमां
जवानुं तमे कहो ए तो बने ज केम? तमे जे कहेशो ते उपर हुं सुक्ष्मताथी मनन करीश एटली
तमने खातरी आपुं छुं, वळी