: ५४ : आत्मधर्म : फागण : २००० :
तमो तो कहो छो के आ वात में कीधी माटे साची मानवी ए तो गुलामी दशा कहेवाय, –अने हुं तो
स्वतंत्रतानो उपासक छुं, माटे तमारी वातनी पूरे पूरी तुलना करी, परीक्षा करी सत्य लागे तो ज
हुं ग्रहण करीश–नहीं तो फरी पूछीश. (विज्ञानिक रीते) धर्मद्रष्टिनो हुं अभ्यासी थवा मागुं छुं.
बीजो मित्र:– तमारी जिज्ञासा अनुमोदनने पात्र छे. संसारी काम परीक्षा वगर करवामां आवतां नथी, तो
पछी धर्मना सिद्धांतो–तुलना कर्या वगर ग्रहण करी लेवां ते डहापण तो नथी पण भगवाननी
आज्ञा विरुद्ध छे. वखत घणो थयो छे, एटले हवे फरी मळीशुं त्यारे आ विषय विशेष चर्चीशुं–
(बंने मित्रो जुदा पडया)
प्रसंग बीजो (बन्ने मित्रो फरी मळे छे.)
पहेलो मित्र:– आपणो विषय आजे आपणे आगळ चलावशुं?
बीजो मित्र:– भले, में तमोने ‘स्ववश’ शब्दनो अर्थ कह्यो हतो अने जणाव्युं हतुं के तेनो अर्थ पोताना
आत्माने वश एवो थाय छे. जे जीव आत्माने ज न ओळखे ते स्ववश होय ज क्यांथी? ए
देखीतुं छे के जे पोताना आत्माने ओळखतो न होय ते मिथ्या भावने वश होय ज. तेने
तत्त्वनी यथार्थ खबर नथी, तेथी मिथ्या (ऊंधी) मान्यता पोताना स्वरूपनी तेने होय ज.
एटले तेनुं कोई कार्य ‘स्ववश’ छे ज नहीं. तेनुं दरेक कार्य मिथ्याभावने वश होवाथी ते
‘परवश’ छे. ऊंधी मान्यताने वश थवुं ते ज मोटामां मोटुं ‘परवश’ पणुं छे. आ स्वरूप न
समजाय त्यां सुधी ‘परवश’ पणुं मटे नहीं, अने तेथी सम्यक् उपवास के तप थाय नहीं.
पहेलो मित्र:– त्यारे प्रश्न ए छे के जे माणस आत्मानुं स्वरूप यथार्थ न जाणतो होय ते उपवास करे तो तेनुं
शुं फळ आवे?
बीजो मित्र:– फळनो आधार आत्माना–परिणाम उपर छे, तेथी जो उपवास करवामां मंदकषाय होय–
शुभभाव होय तो पुण्य बंधाय, अने अशुभभाव होय तो पाप बंधाय. पण एटलुं लक्षमां
राखवानुं छे के पुण्य अने पाप एवा जे भेद पडे छे ते बहारना संयोगो भविष्यमां जीवने मळे
तेमां भेद होवाथी पडे छे, पण आत्मानो निज गुण–दर्शन ज्ञान चारित्र [एटले के साची
मान्यता, साचा ज्ञान अने साची स्थिरता] तो शुभ अने अशुभ भाव बन्नेमां हणाय छे.
पहेलो मित्र:– उपवास करवामां अशुभ भाव होय खरो?
बीजो मित्र:– हा. कोईने होय खरो; जेम के एक माणसने खबर पडी, के उपवास करनाराने लाणी आपवानी
छे, तेने एवो भाव आव्यो के आपणे उपवास करीए तो लाणी मळशे, अने धर्मी पण कहेवाशुं.
एवा भावथी जे उपवास करे तेने अशुभभाव छे के केम ते तमे ज कहो.
पहेलो मित्र:– बराबर केमके तेणे तो लोभने पोष्यो. उपवास धर्म माटे नहीं, पण परिग्रह अने आबरू
वधारवा कर्यो, माटे ते अशुभ भाव छे. त्यारे प्रश्न ए ऊठे छे के एक दिवस उपवास कर्यो तेथी
आहार न लीधो तेनुं शुं फळ?
बीजो मित्र:– आहार तो पर वस्तु छे. पर वस्तुना संयोग के वियोगथी धर्म के अधर्म–लाभ के नुकसान कंई
थतुं नथी. पोताना परिणामथी ज लाभ नुकसान थाय छे.
पहेलो मित्र:– भगवाने श्रावकने चार आवश्यक क्रिया ‘दान–शियल तप अने भाव’ कही छे, तो पछी तेनुं केम?
बीजो मित्र:– भगवाने श्रावक कोने कह्यो छे, ए तमे जाणो छो?
पहेलो मित्र:– में ते संबंधे कांई निर्णय कर्यो नथी. पण बीजाओ पासेथी सांभळ्युं छे के आपणे जैन कुटुंबमां
जन्म्या छीए, भगवान महावीरने मानीए छीए जैन संघमां छईए अने भगवाने कह्युं ते
सत्य एम मानीए छीए तेथी श्रावक तो छईए.
बीजो मित्र:– जे तमे सांभळ्युं छे. एवुं में पण नानपणमां उपदेशको पासेथी सांभळ्युं हतुं, पण ते मान्यता
भूल भरेली छे एम सुक्ष्म आत्मज्ञानी उपदेशकनो उपदेश सांभळता मने जणायुं. लोको तमे
कहो छो तेने श्रावक कहे छे ए खरूं, पण वीतराग तो कहे छे के, पोताना आत्माना यथार्थ
स्वरूपनी समजण थई होय अने तेवी समजण पूर्वक परावलंबननो राग गृहस्थ अवस्थामां
यथाशक्ति अंशे छोडे ते श्रावक कहेवाय. बीजाने नाम श्रावक कहेवामां वांधो नथी.
पहेलो मित्र:– पण जैन कुटुंबमां जन्म्या तेनुं शुं?