: ५८ : आत्मधर्म : फागण : २००० :
शाश्वत सुख जोईतुं होय तेने ज्ञान केवुं होय?
निर्जरानो अधिकार चाले छे एटले के साचुं सुख केम मळे अने साचा सुखनो उपाय करवावाळानां ज्ञान
अने श्रद्धा केवां होय तथा जेने संसारिक सुख रुचतुं होय तेनां ज्ञान अने मान्यता केवां होय? जेने संसारनुं–
ईन्द्रियादिनुं सुख रुचे छे तेने चोराशीना दुःख रुचे छे अने जेने संसार सुखनी रुचि नथी पण स्वभावनुं खरुं
शाश्वत सुख रुचे छे तेनी ओळखाण अने ज्ञान केवां होय तेनो प्रथम निर्णय जोईए. कारण के कया सुखनी
रुचि छे ते जाणवुं जोईए.
पुण्य भावनी रुचि न होय
अमारे संसारनुं सुख जोईतुं नथी. अमे खरुं सुख लेवा माटे त्यागी थया छीए एम घणा मानी बेठा
छे. पण खरेखर साचा सुखनी रुचि छे के नहीं तेनुं लक्षण समजवुं पडशे. जे भावे संसारना सुख मळे ते
भावनी रुचि पण खरा सुखना ईच्छनारने होय नहीं. राज्यादि बधा संसार सुखना निमित्त छे, तेनी पण
रुचि होय नहीं. जेणे जडमां सुख न मान्युं होय तेनी मान्यता केवी होय? के जे पुण्य भावे स्वर्गादि तथा आ
स्त्री, पैसादि मळे छे ते पुण्य भावनी पण रुचि न होय. जेने पुण्यनी रुचि छे तेने संसारनी रुचि छे.
जडमां क्यांय साचुं सुख नथी, बीजे क्यांय छे अने ते आत्मामां ज छे. तेथी जेने सुखनी प्रीति छे तेने
आत्मानी रुचि थवी जोईए. पुद्गलमां क्यांय आत्मानुं सुख नथी, मात्र ऊंधी मान्यताथी मान्युं छे. शरीर, मकान,
स्त्री, पैसा वगेरेमां साचुं सुख नथी. आत्मानुं सुख परमां नथी ज. छतां परमां मान्युं छे ते मान्यतानी भूल छे;
तेने साची वात समजाणी नथी. जो साची वात समजाय तो संसारनी अनुकूळतामां पण सुख बुद्धि थाय नहीं. जे
कारणथी संसारनी अनुकूळता मळे छे ते पुण्य छे. पापभावथी प्रतिकूळता मळे अने पुण्य भावथी अनुकूळता मळे
ते संसारनी अनुकूळतानी जेने रुचि छे तेने पुण्यनी रुचि छे, अने जेने पुण्यनी रुचि छे तेने संसारनी रुचि छे,
जेने आत्माना ज्ञान श्रद्धानी रुचि छे तेने आत्मानी रुचि छे, अने तेने ज खरा सुखनी रुचि छे.
प्रथम तो पुण्यनी रुचि छे के आत्मानी? तेनुं ज्ञान कर्या वगर नीवेडा आवशे नहीं. जो पुण्यभावनी
रुचि होय तो समजवुं के तेनी ज्ञान अने श्रद्धामां भूल छे. जेने आत्मानी रुचि होय तेने पुण्यनी रुचि न होय.
धर्मीनी रुचि, ज्ञान अने श्रद्धा केवां होय!
हवे धर्मीनी रुचि, ज्ञान अने श्रद्धा केवां होय तथा संसारनुं सुख रुचे छे अर्थात् पुण्यनी रुचि छे तेनी
श्रद्धा अने द्रष्टि केवी होय ते चार गाथा द्वारा कहेवाय छे:–
साचुं सुख केम मळे अने साचा सुखनो उपाय करवावाळानां ज्ञान अने श्रद्धा केवां
होय तथा जेने संसारिक सुख रुचतुं होय तेनां ज्ञान अने मान्यता केवां होय?
जे भावे संसारनासुख मळे ते भावनी रुचि
पण खरा सुखना ईच्छनारने होय नहि
श्री समयसार निर्जरा अधिकार गाथा २२४ थी २२७ उपर परम
पुज्यसद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामीनुं व्याख्यान ता. १४–२–४४
जयम जगतमां को पुरुष वृत्ति निमित्त सेवे भूपने,
तो भूप पण सुख जनक विधविध भोग आपे पुरुषने;।। २२४।।
त्यम जीव पुरुष पण कर्म– रजनुं सुखअरथ सेवन करे,
तो कर्म पण सुखजनक विधविध भोग आपे जीवने।। २२५।।