Atmadharma magazine - Ank 004
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २००० : आत्मधर्म : ५९ :
वळी ते ज नर ज्यम वृत्ति अर्थे भूपने सेवे नहि,
तो भूप पण सुखजनक विधविध भोगने आपे नहि;
।। २२६।।
सद्रष्टिने त्यम विषय अर्थे कर्मरजसेवन नथी,
तो कर्म पण सुखजनक विधविध भोगने देतां नथी.
।। २२७।।
द्रष्टांत:– आ जगतना विषे कोई पुरुष आजीविका अर्थे राजाने सेवे छे, तेनी द्रष्टि एवी छे के, सारां
टाणां आवशे, त्यारे जमणवारमां मिष्ट भोजनना थाळ मळशे, तेथी ते राजानुं सेवन करे छे. तेथी ते राजा पण
तेने सुख उत्पन्न करनारा अनेक प्रकारना भोगो आपे छे. (पण ते सारां नथी एम अहीं कहेवुं छे.)
एवी रीते ते पुरुषनी जेम जे कोई आत्मा पुण्य पापने सुखबुद्धिथी सेवे छे अने ‘आमांथी मने सुख
मळशे’ एम माने छे अर्थात् जेने पौद्गलिक सुखनी रुचि छे तेने पुण्यनी रुचि छे. अने पुण्यनी रुचि वाळो
त्यागी थाय के साधु थाय पण ‘आ क्रिया रागनी छे के राग विनानी छे? दयादि ते शुभ रागनी छे. तथा
हिंसादि तीव्र–रागनी–पापनी छे, ते रागनी क्रियाथी आत्माने लाभ थाय नहि’ एम जेणे रागरहित आत्मानी
श्रद्धा–रुचि नथी ते जे कांई व्रत, तप, दान, पूजा, भक्ति आदि करे छे तेमां मंद कषायथी जे पुण्य थाय ते पुण्यने
ते संसारना सुखने माटे सेवे छे. अर्थात् तेने पुण्यनी रुचि छे. पण पुण्यनुं फळ–संसार सुख भोगववानो जे
भाव ते तो पाप ज छे. पौद्गलिक जडना नाशवान क्षणिक सुखनी रुचि अर्थात् पुण्य भावनी रुचि छे तेने
जडनी रुचि छे, पुण्य–पाप रहित आत्मानी रुचि नथी.
गोलानुं द्रष्टांत अने तेनो सिद्धांत
जेम गोलो राजानी सेवा करे छे तेमां ते निस्पृह नथी, पण मिष्टान्नना भाणांनी रुचि छे तेथी करे छे,
एम जेने पुण्यनी रुचि छे तेने पुण्य–पाप–रहित ज्ञानमूर्ति आत्मानी रुचि नथी, कारणके पुण्य–पापनी बधी
क्रिया आत्माने बंधन छे. जेने आत्माना पवित्र ज्ञानस्वभावनुं भान नथी ते पुण्यनो भाव तेमां सुख मानीने
करे छे. जे भावे पुण्य बंधन थाय ते भावने सारो माने तो समजवुं के तेने जडनी रुचि छे, आत्मानी नथी.
जेने पुण्यनी रुचि छे तेने जडनी रुचि छे
पचास–पचास वर्ष खाधां–पीधां–भोग भोगव्यां, पण तेनाथी सुख आव्युं नहीं, संसारना भोगमां
सुख नथी एम लोको बोले खरा, पण जो ते जडना सुखनी रुचि खरेखर टळी गई होय तो जे भावे ते
संसारना सुख सामग्री मले छे एवा पुण्य भावनी रुचि पण टळवी ज जोईए, अने जे भावे ते रुचि टळे ए
भाव सेववो जोईए. जे ‘साधु’ ‘के धर्मी’ एवुं नाम मात्र धरावे छे, पण पुण्य–पाप रहित आत्माना
स्वरूपनी खबर नथी तेने पुण्यनी रुचि रहे छे. अहीं पुण्य करवां छोडी दो एम नथी कहेवुं, पापथी बचवा
पुरता पुण्य बराबर छे, पण तेनी रुचि न होवी जोईए; जेने पुण्यनी रुचि छे तेने जडमां सुख बुद्धि छे
एटले जडनी रुचि छे.
जडनां सुख ईच्छनारानां लक्षण.
जेने पांच ईन्द्रियोनां–जडनां नाशवान सुख रुचे छे तेनुं लक्षण शुं?
आत्मानुं सुख जडमां नथी. आत्मामां जे शुभराग थाय ते जो रुचे तो समजवुं के तेने संसार–सुखनी
जडना सुखनी रुचि छे, पछी भले ते त्यागी कहेवातो होय के मुनि कहेवातो होय! अने जे गृहस्थ दशामां बेठो
होय छतां ‘मारो स्वभाव पुण्य–पापना विकारी भावोथी रहित अविकारी छे’ एवा आत्मभान सहित जेने
पुण्य–पापना भावनी रुचि नथी त्यां समजवुं के तेने संसार सुखनी पौद्गलिक सुखनी रुचि नथी–ईच्छा नथी
अने आत्मानी रुचि छे.
गोला राजानी सेवा करे तेमां तेने ‘राजा केम रीझे!’ तेनी ज रुचि छे, तेने निस्पृह रहेवानो भाव ज
नथी, प्रथम ज रुचि राजाने राजी करवानी छे. एवी रीते जीवने बाह्यक्रिया करतां जे रागनो विकल्प ऊठे छे तेने
जे सारो माने छे तेने प्रथम ज संसारिक सुखनी ईच्छा छे, अने तेनी रुचि छे. जीव जे पुण्य के पापना राग
भाव करे छे तेमां पाप तो दुःखनुं कारण छे ज तेनी तो वात