: ६० : आत्मधर्म : फागण : २००० :
ज नथी तेनी रुचि तो एक बाजु रहो (न ज होय) पण जे शुभरागनी रुचिपूर्वक कर्मरजने सेवे छे तो ते कर्म
पण तेने सुख उत्पन्न करनार भोगो आपे छे; एटले के रागनी क्रिया करती वखते शुभरागनी जेने रुचि छे ते
शुभरागना फळमां भविष्यमां तेने अनुकूळ सामग्री मळशे अने तेने रागनी रुचि छे, तेथी रागमां रंजित थईने
ते सामग्रीओने भोगवशे अने पाप बांधी नरकादिमां जशे.
रागनी व्याख्या अने तेनुं फळ
आत्मा ज्ञानमूर्तिमां कांई करवा–मूकवानो भाव ते राग छे, तेमां अशुभ राग तो छोडवा जेवो छे ज;
पण क्रिया वखते शुभरागने जेने सारो मान्यो तेने भविष्यमां एवा पौद्गलिक संयोगो मळशे के ते रागथी
भोगवी जाशे, नरकमां! आ रीते तेने (शुभ रागनी रुचि वाळाने) नथी धर्म वर्तमानमां के नथी भविष्यमां!
साचा सुखना (पुण्य–पाप रहित) उपायनो अने पौद्गलिक सुखना उपाय (पुण्य) नो विवेक प्रथम ज जोईशे.
साचा सुखना कामीने पुण्यनी रुचि ज न जोईए;–पुण्य–पाप बन्ने राग ज छे. जेने राग करती वखते
तेनी रुचि छे–तेमां सुख बुद्धि छे, अने तेमां धर्म माने छे; तथा शुभ क्यां थाय छे. अने धर्म क्यां थाय छे तेनी
खबर नथी ते पुण्यमां सुख मान्या वगर रहेशे नहीं.
जे पुरुषने ज्ञाता द्रष्टां स्वरूप भूलीने क्रियाटाणे थता शुभरागनी रुचि छे, तेने भविष्यमां नाशवान
एवा राज्यादि मेळववानी रुचि छे के जेनी पाछळ नरकादि छे. अहीं पुण्य छोडी देवानी वात नथी. पण पुण्य
तरफ तारी रुचि न होवी जोईए. राग वगर बाह्य क्रिया थाय नहीं. जो अंतरस्वरूपनी रुचि मूकीने
बाह्यक्रियामां थता रागनी रुचि करी तो तेने पुद्गलनी रुचि छे, एम समजवुं.
माखण चोपडनारनुं दृष्टांत.
जेम ते ज पुरुष (गोलो) आजीविका अर्थे राजाने सेवतो नथी तो ते राजा पण तेने सुख उत्पन्न
करनारा भोगो आपतो नथी. कारणके ‘हा जी हा’ करे अने माखण चोपडे तो राजा प्रसन्न रहे छे. माखण केवी
रीते चोपडे ते उपर दृष्टांत कहे छे.
कोई एक वहीवटदार हतो, तेणे एकवार नोकरने कह्युं के ‘जा! पांच रूपिया भार घी लई आव.’ नोकर
गयो अने घी लईने आव्यो त्यारे वहीवटदारे पूछयुं ‘केटलुं लाव्यो?’ घी लावनार कहे ‘नवटांक’ हवे
वहीवटदार साहेबने तो पांचभार अने नवटांक ए सरखुं ज छे एवुं भान नहीं एटले खीजाईने कह्युं ‘में
पांचभार कह्युं हतुं ने नवटांक केम लाव्यो?’ त्यारे पासे बेठेलो बीजो हजुरीयो (माखण चोपडवा वाळो) कहे
‘बराबर साहेब, सालाए भूल करी’ त्यारे घी लावनार पण हा जी हा करवावाळो पोतानी भूल नथी छतां कहे
के ‘हा साहेब, भूल थई’ आम माखणीयानी द्रष्टि राजाने राजी राखवानी ज होय छे.
सिद्धांत
एम अज्ञानी पुण्य क्रिया करतां तेना रागनी जो रुचि करे अने सारो माने तो ते राग रहित स्वभावने
जाणतो नथी. रागनी रुचिमां तेने संसारिक जडपदार्थो मलवानां, अने ते पण रागथी भोगवी नरकादि गतिमां
चाल्यो जवानो छे. गोल–गोलीने खबर नथी के निस्पृहपणे रहीश तोय आपवुं हशे तेटलुं आपशे, राजाने खरूं
कहेनार पोसाय नहीं, अने माखण नहीं चोपडीए तो कांई मळशे नहीं एम मान्युं छे. अहीं तो आचार्य देव कहे
छे के हा–जी–हा करवावाळाने थाळ आदि मळशे खरा, पण खरी मूडी नहि मळे! एटले के आत्मानी रुचि
छोडीने जेने शुभरागनी रुचि छे अने तेने सारुं माने छे, ते जो कषायमंद करशे तो पुण्य बांधशे पण आत्मानुं
खरुं सुख तेने मळशे नहीं.
धर्मीने रागनी रुचि नथी.
धर्मीने पोताना आत्मामां ज संतोष वर्ते छे. नोकरीमां ५०–१०० जे कांई पगार होय तेटलो ज ले, तेमां
कांई वधारे मळे ए हेतुए ते कोई दिवस दगो करो नहीं, तेम धर्मी जीव ज्यारे जे क्रिया करे छे त्यारे ते वखते ज
तेने शुभरागनी रुचि नथी. सुख बुद्धिए ते कर्म रजने सेवतो नथी, नबळाईना कारणे उदास भावे शुभमां
जोडावा छतां अंतरमां तेनी रुचि नथी.
आत्मानी जेने खबर नथी तेने रागनी रुचि छे.