Atmadharma magazine - Ank 004
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २००० : आत्मधर्म : ६१ :
कोई एम कहे के अमने स्वर्गादिनी रुचि नथी, अने अमे रुचिवगर पुण्य करीए छीए. तो जेने
आत्मानी निस्पृहतानी खबर नथी–रुचि नथी तेने रागनी रुचि होया वगर रहे ज नहि. अने जेने रागनी
रुचि नथी तेने आत्माना ज्ञान भावनी रुचि छे एटले तेने शुभरागना फळ एवां न आवे के जे भोगवता फरी
नवुं बंधन थाय.
टीका:– जेम कोई फळ अर्थे राजाने जेटलुं माखण चोपडे (रीझवे) तेटलुं फळ तेने राजा आपे. एम जे
जीव शुभ क्रियाने पोतानी माने छे तेने रागनी रुचिनां ज परिणाम छे; हुं शुद्धमां रही शकतो नथी एटले आ
शुभ (अशुभथी बचवा पुरतुं) करवुं पडे छे एम अंतरमां ज्ञानीने भान छे. अने कोई भान विना त्यागी
थाय, घरबार छोडीने जंगलमां चाल्यो जाय तो पण तेने अंदरमां पुण्यनी पक्कड छे एटले संसार सुखनी रुचि
छे. अंतरमां जेने ज्ञाता–दष्टा पूर्ण निर्मळ स्वत: स्वभावी आत्मानी रुचि नथी तथा रागना जुदापणानी जेने
खबर नथी ते त्यागी होय के धर्मी नाम धरावतो होय पण ते कर्मने (रागने) पोताना तरीके मानी तेना
फळनी रुचि कर्या वगर रहेशे नहीं.
जेने आहारादिनी रुचि छे–परमां सुख बुद्धि छे तेने एक ठेकाणे कह्युं छे के:–
मुह मंगलिये उदराणु गीद्धे’ एटले के माखणीयाने ‘मुख मंगलीया’ कह्या छे अने पेटनां गृद्धि एटले
के सारा आहारादि माटे हा ए हा भणनारा छे. बापे कपट करी धन भेगुं कर्युं होय अने छोकरो जो कपट
करवामां सवायो थाय तो कहे के बहु चालाक छे–अने जो छोकरो चोकखुं कही दे के ‘बापु! दगानी वात मारी
पासे न करशो, दगो–प्रपंच करवा हराम छे;’ तो तेने कहे के ‘नमालो,’ अमारा कुळनो दीपक था! एटले के
अमारा करता सवाया पाप कर! आमां जे छोकरो दगा–प्रपंचनी हा ए हा भणे छे ते पोताना रागने खातर
भणे छे, अने नहींतर चोकखी ना कही दे के आ रागने खातर आटला दगा–प्रपंच? आ देहे केटलो काळ
जीववुं? अने क्यां जवुं? पुण्य हशे तो गमे त्यांथी मळी रहेशे. आयुष्य हशे तो रोटला गमे तेम मळी रहेशे.
अने नहितर रोटला खातां छतां बे कोळीआ वधारे खवाई जशे अने पेट सलोसल थई जशे तो मरी जईश! हुं
तो नीतिसर ज काम करवानो, रागने माटे आ अनीति? नहीं रे नहीं, मारे अनीति न जोईए. एम कहेवाथी
कांई तेनो हक्क चाल्यो जतो नथी.
धर्मीनुं स्वरूप
धर्मी जीव राग अर्थे–फळनी भावनाथी पुण्यने सेवतो नथी, ते जाणे छे के ते [शुभभाव] वडे आत्मानी
शांति नथी, एवा भानमां ते पुण्यभाव मारा पणा वडे के रुचि पूर्वक करतो नथी.
संसारी सुखनी रुचि नथी एम बोलवाथी ते रुचि टळे नहीं.
जेने खरा सुखनी रुचि थई होय तेने संसारना सुखनी रुचि टळ्‌या वगर रहे नहीं; मात्र वातो करे के
अमने संसारनी रुचि नथी अने पाछो रुचिपुर्वक राग करे तो तेने खरेखर साचा सुखनी रुचि थई ज नथी.
छप्पनीआना दुष्काळ वखते रांका भीखारा गाम बहार जईने पाणीमां माछलां मारतां होय, अने ज्यारे
गाममां आवे त्यारे पोताना कपाळे साधु जेवुं टीलुं करे अने कहे के “आ संसार असार छे, कोई कोईनुं नथी.”
एम भीखारा पण कहे छे, पण ते जो एम न कहे तो कोई कांई आपे नहीं, तेथी पोताने मळे एवा रागनी
खातर ज ते कहे छे.
तेम कोई कहे के अमने साचा सुखनी रुचि जागी छे तो प्रथम पुण्य–पापनो राग ते आत्मानो नथी
एम राग रहित आत्मानी ओळखाण करी? सुख स्वरूप आत्मानी ओळखाण वगर कदी सुख मळशे नहीं.
अने पुण्य–पापनी रुचि टळशे नहीं; अने जेने रुचि फरी गई के आ विकार मात्र मारूं स्वरूप नहीं, राग रहित
ज्ञान स्वभाव ते ज हुं एम ज्यां स्वभावनी रुचि थई अने पुण्यनी रुचि टळी पछी ते राजपाट भोगवतां
देखाय छतां अंतरमां तेनी रुचि नथी, भविष्यमां अल्पकाळमां ते त्यागी थई, मुनि थईने पुर्ण केवळज्ञान
लेवानां छे. अने जेने पुण्यनी रुचि छे ते बाह्य आचरण करतां करतां अंतर स्वभाव प्रगट थशे एवी द्रष्टिमां
संसारिक सुखनी रुचि अर्थात् झेरनी रुचि पडी छे. आत्माना ज्ञान स्वभावना भान वगर कदी पौद्गलिक
सुखनी मीठाश खसे नहीं.
सत्य त्यगन स्वरूप
अंदर ज्ञाता स्वरूप आत्मानी रुद्धिनी खबर वगर जे त्याग छे. ते दुःखगर्भित अने मोहगर्भित