
रुचि नथी तेने आत्माना ज्ञान भावनी रुचि छे एटले तेने शुभरागना फळ एवां न आवे के जे भोगवता फरी
नवुं बंधन थाय.
शुभ (अशुभथी बचवा पुरतुं) करवुं पडे छे एम अंतरमां ज्ञानीने भान छे. अने कोई भान विना त्यागी
थाय, घरबार छोडीने जंगलमां चाल्यो जाय तो पण तेने अंदरमां पुण्यनी पक्कड छे एटले संसार सुखनी रुचि
छे. अंतरमां जेने ज्ञाता–दष्टा पूर्ण निर्मळ स्वत: स्वभावी आत्मानी रुचि नथी तथा रागना जुदापणानी जेने
खबर नथी ते त्यागी होय के धर्मी नाम धरावतो होय पण ते कर्मने (रागने) पोताना तरीके मानी तेना
फळनी रुचि कर्या वगर रहेशे नहीं.
‘
करवामां सवायो थाय तो कहे के बहु चालाक छे–अने जो छोकरो चोकखुं कही दे के ‘बापु! दगानी वात मारी
अमारा करता सवाया पाप कर! आमां जे छोकरो दगा–प्रपंचनी हा ए हा भणे छे ते पोताना रागने खातर
भणे छे, अने नहींतर चोकखी ना कही दे के आ रागने खातर आटला दगा–प्रपंच? आ देहे केटलो काळ
जीववुं? अने क्यां जवुं? पुण्य हशे तो गमे त्यांथी मळी रहेशे. आयुष्य हशे तो रोटला गमे तेम मळी रहेशे.
अने नहितर रोटला खातां छतां बे कोळीआ वधारे खवाई जशे अने पेट सलोसल थई जशे तो मरी जईश! हुं
तो नीतिसर ज काम करवानो, रागने माटे आ अनीति? नहीं रे नहीं, मारे अनीति न जोईए. एम कहेवाथी
कांई तेनो हक्क चाल्यो जतो नथी.
छप्पनीआना दुष्काळ वखते रांका भीखारा गाम बहार जईने पाणीमां माछलां मारतां होय, अने ज्यारे
गाममां आवे त्यारे पोताना कपाळे साधु जेवुं टीलुं करे अने कहे के “आ संसार असार छे, कोई कोईनुं नथी.”
एम भीखारा पण कहे छे, पण ते जो एम न कहे तो कोई कांई आपे नहीं, तेथी पोताने मळे एवा रागनी
अने पुण्य–पापनी रुचि टळशे नहीं; अने जेने रुचि फरी गई के आ विकार मात्र मारूं स्वरूप नहीं, राग रहित
ज्ञान स्वभाव ते ज हुं एम ज्यां स्वभावनी रुचि थई अने पुण्यनी रुचि टळी पछी ते राजपाट भोगवतां
देखाय छतां अंतरमां तेनी रुचि नथी, भविष्यमां अल्पकाळमां ते त्यागी थई, मुनि थईने पुर्ण केवळज्ञान
लेवानां छे. अने जेने पुण्यनी रुचि छे ते बाह्य आचरण करतां करतां अंतर स्वभाव प्रगट थशे एवी द्रष्टिमां
संसारिक सुखनी रुचि अर्थात् झेरनी रुचि पडी छे. आत्माना ज्ञान स्वभावना भान वगर कदी पौद्गलिक
सुखनी मीठाश खसे नहीं.