: फागण : २००० : आत्मधर्म : ६३ :
– अनुसंधान टाईटल पान ४६ थी –
क्षेत्रे बीजा पात्र जीवोने तेमनो उपदेश निमित्तपणे मळे अने ते ते पात्र जीव पोतानी लायकातथी ते
उपदेश सांभळी पोतानुं यथार्थ स्वरूप नक्की करी यथार्थ धर्म (स्वभाव) मां प्रवेशे छे; क्रमे क्रमे उन्नतिमां
वधता जता तेवा पुरुष जे भावे संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करे ते भाव बतावे छे तेथी तेने ‘तीर्थंकर’ एटले के
‘तरवानो रस्तो बतावनार’ कहेवामां आवे छे. भरतक्षेत्रे धर्मनो प्रवाह केटलोक काळ अटकेलो पण त्यार पछी
श्रीमान् ऋषभदेव आदि चोवीश तीर्थंकरो थया. तेमना उपदेशथी हाल भरतक्षेत्रमां यथार्थ धर्मनुं प्रवर्तन छे;
तीर्थंकरो ज्ञान अने पुण्य बन्नेमां पूर्ण होय छे, तेओ ईच्छाने टाळी वीतराग थया पछी सहज रीते (तेमनी
ईच्छा वगर) वचन वर्गणा (वचनना रजकणो) सर्वांगे छूटे छे तेने दिव्यध्वनि कहेवामां आवे छे अथवा ओम्
पण कहेवामां आवे छे. तेमनी धर्मसभामां आवेला देव–देवीओ, मनुष्य–मनुष्यीणी, तिर्यंच तिर्यंचीणी पोते
पोतानी भाषामां समजी ले छे. आ दिव्यध्वनिने उपचारथी तीर्थंकरनो उपदेश कहेवामां आवे छे.
सौराष्ट्रनो जैन धर्म प्रत्येनो फाळो.
आ सौराष्ट्रमां आवेला गीरनार पर्वत उपर बावीसमां तीर्थंकर श्री नेमनाथ भगवानना त्रण कल्याणक
१ दिक्षा २ केवळज्ञान अने ३ मोक्ष थया हता. तेमना ज वखतमां तेमना ज कुटुंबी श्रीकृष्ण वासुदेव अने श्री
बळभद्र श्लाका पुरुषो थया हता. गीरनार पर्वत जैनोनुं जाणीतुं तीर्थ छे, आ गीरनार पर्वतनी गुफामां
श्रीमान् धरसेन मुनि बिराजता हता. तेओए पोतानुं दिव्यज्ञान श्रीमान् भूत बळी अने श्रीमान पुष्पदंत
मुनिओने आप्युं, अने ते मुनिओए आगामि बुद्धिनी मंदता जाणी ‘षट्खंड आगम’ रच्यां, ते हाल छपाईने
टीका सहित बहार पडतां जाय छे. आ षट्खंड आगम हालना जैन साहित्यमां सर्वथी प्राचीन छे. जैनोमां
‘तत्त्वार्थसूत्र’ सर्वमान्य छे ते पण सौराष्ट्रमां श्री उमास्वामी आचार्ये रच्युं हतुं. परमागम श्री समयसार
गुजराती भाषामां पण आ देशमां हालमां प्रसिद्ध थयुं छे [सने १९४० मां]
शेत्रुंजय ए जैनधर्मना तीर्थना एक क्षेत्र तरीके प्रसिद्ध छे, त्यां श्री पांडवो वगेरे घणा केवळज्ञान पाम्या
छे, अने मोक्षनी प्राप्ति करी हती.
तरीके प्रसिद्ध छे. हालमां ज तेमनुं महान स्मारक ववाणीआमां खुल्लुं मूकायुं छे. तेओए काठियावाड अने
गुजरातमां जैनधर्मनी अध्यात्म विद्याना बीजडां रोपी तेनो प्रचार कर्यो छे. जैनधर्मना यथार्थ स्वरूपने समजावता
तेमणे शिष्यो उपर लखेला पत्रो, हाथनोंध वगेरे प्रसिद्ध थयां छे, अने मुमुक्षुओ तेनो यथाशक्ति लाभ ले छे.
– छेवट –
‘हुं जुवान छुं,’ ‘वृद्ध छुं,’ ‘शुरवीर छुं,’ ‘पंडित छुं,’ ‘सर्वमां श्रेष्ठ छुं,’ ‘दिगंबर छुं,’ ‘बोद्धमतनो
आचार्य छुं,’ अथवा ‘हुं श्वेतांबर छुं.’ वगेरे शरीरना भेदोने मूर्ख पोताना माने छे, ए भेद जीवना नथी.
(परमात्म प्रकाश गाथा ८२ पानुं ८७–८८)
जीव बोद्धनो आचार्य नथी. दिगंबर नथी, श्वेतांबर नथी, कोई वेशनो धारी नथी, अर्थात् एकदंडी
त्रिदंडी, हंस, परमहंस, संन्यासी, जटाधारी, मुंडित, रुद्राक्षनी माळा, तिलक, कुलक, घोष वगेरे वेशोमांथी कोई
पण वेशधारी नथी, ते एक ज्ञानस्वरूप छे. (परमात्म प्रकाश गाथा ८८ पानुं९२–९३)
जीव ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के शुद्र नथी, पुरुष स्त्री के नपूंसक नथी, ते तो ज्ञानस्वरूप होवाथी समस्त
वस्तुनो जाणकार छे.
ए रीते जैनधर्मनो अर्थ, जैन तत्त्व संक्षेप, जैन धर्मना शास्त्रोनी कथन पद्धति, जैन दर्शननी अनादि
अनंतता अने सौराष्ट्रनो जैनधर्म प्रत्येनो फाळो एम पांच विभागथी आ कथन पूरुं करवामां आवे छे.
ता. ७–१२–४३ राजकोट सदर
मुद्रक:– चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय विज्यावाडी, मोटा आंकडिया काठियावाड.
ता. २१–२–४४
प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ, वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, विज्यावाडी,
मोटा आंकडिया काठियावाड.