: ४८ : आत्मधर्म : फागण : २००० :
‘मारो आत्म स्वभाव के गुण मने कोई बीजा आपी दे अथवा बीजो मद करे तो उघडे’
एवी मान्यता तेज बंधन अने ते ज पराधीनता छे
परम पूज्य श्री सद्गुरुदेव कानजी स्वामीना मागशर वद १४ रविार ता. २६ – १२ – ४३
ना व्याख्यान उपरथी
बंधन एटले शुं? के जे भावे आत्मानी स्वाधीनता हणाई जाय–पराधीनता थाय तेवा भावने बंधन
कहे छे. आत्मामां जे पराधीन भाव ते ज आत्माने नुकसाननुं कारण छे. आत्मा अनादि अनंत ज्ञान मूर्ति छे,
तेने जाण्या विना कोईपण जातना पुण्य–पापना भाव थाय ते बधा आत्माने बंधन कर्ता छे. आत्माना गुणने
नुकसान कर्ता छे.
जीवे अनंत काळथी संसारनी वातो सांभळी छे, पण आत्मानुं स्वरूप शुं अने आत्माने बंधन शुं, ते
वात कदी जाणी नथी. अज्ञानीने तो संसारनुं बंधन–दुःख ज लागतुं नथी.
शरीरना परमाणुओ आदि वस्तुओ छे तेम आत्मा पण एक वस्तु छे; शरीर मूळ वस्तु नथी पण ते
घणा परमाणुओनो जथ्थो छे. झीणी माटी छे. परमाणुनी हालत बदलाय पण ते परमाणुंपणे तो कायम रहे.
शरीर ते आत्मा नथी–पण शरीरमां रहेलो शरीरथी जुदो एक आत्मा छे. आत्मा वस्तु छे–जगतनी अनादि
अनंत चीज छे, तेमां अनंत गुणो छे; जाणवुं–मानवुं आदि आत्माना गुणो छे. एवा आत्मानुं स्वरूप न जाणे
अने ‘हुं शरीर, पुण्य–पाप मारां, पुण्यथी मने धर्म थाय’ एवो भाव ते बंधन कर्ता छे, ते आत्माना गुणनी
शक्तिने हणे छे.
आत्मा एक वस्तु छे, शरीर आदि तेनाथी पर [जुदा] छे; माताना उदरमां आव्यो त्यारे साथे लाव्यो
न हतो, ते पिंड तो माताना उदरमां जड–रजकणोनो बंधायो हतो.
आत्मा ज्ञानस्वभावी छे; कोई वस्तु गुण वगरनी होय नहीं, जो वस्तुमां गुण न होय तो ओळखाय
कई रीते? आत्माने कया गुण वडे ओळखवो? ज्ञान गुण वडे आत्मा ओळखाय छे. आत्मामां ज्ञानादि अनंत
गुणो छे. हुं जाणवावाळो शुद्ध ज्ञानस्वभावी आत्मा छुं एवुं पोतानुं स्वरूप भूली जईने ‘पुण्य पाप ते हुं.
शरीरादि ते हुं’ एम मानवुं ते ज अज्ञान छे–बंधनुं कारण छे.
आत्मा शुं चीज छे? के जाणनारो ज्योत अखंड ज्ञान स्वभावी छे; जाणवुं ए ज तेनुं स्वरूप छे; ते
पोताना जाणनार [ज्ञायक] स्वभाव तरफ न वळतां ‘मारो आत्म स्वभाव के गुण मने कोई बीजा आपी दे
अथवा बीजो मदद करे तो उघडे’ एवी मान्यता ते ज बंधन अने ते ज पराधीनता छे. कोई श्राप के आशीर्वाद
आपे तो मारुं भलुं भुंडुं थाय एम जे परथी भलु बुरुं मानी रह्यो छे ते आत्माना स्वतंत्र स्वभावनी हिंसा
करी रह्यो छे, तेने आत्मानी स्वतंत्रतानो भरोसो नथी; जो भरोसो होय तो ख्याल होवो जोईए के ‘हुं अनादि
अनंत स्वतंत्र वस्तु छुं,’ पराधीनता मारामां नथी.’
प्रश्न:– तो आत्मामां बंधन केम थाय छे?
उत्तर:– कारण के–पोताना वस्तु स्वभावनी खबर नथी. तेथी परथी लाभ माने छे एटले के मारामां तो
शक्ति छे ज नहीं एम माने छे. ते ज पराधीन भाव छे अने ते ज आत्माना धर्म स्वभावने अधर्मरूप एटले
बंधनरूप करी नांखे छे.
प्रश्न:– बंधन कोने कहेवुं?
उत्तर:– आत्माना गुणने जे भाव रोके ते बंधन छे. जे भावे आत्माना गुणनी शक्ति रोकाय ते बंधन
भाव छे. आत्मा एक पदार्थ छे, कोई वस्तु गुण वगर न होय. आत्मानो स्वभाव–आत्माना गुण आत्माने
विषे ज छे; कोई परथी आत्माना गुण नथी. जो आत्माना गुण कोई परथी थाय तो आत्मामां गुण नथी एम
ठरे अने जो गुण न ज होय तो कोई कारणे प्रगट थाय नहीं, अने जो छे तो कोई परनी मददनी जरूर रहे नहीं.