छे. ज्ञानी अज्ञानी बन्नेनी बहारनी क्रिया सरखी देखाय, पण अंदर आसकित भावमां घणो फेर छे. बिलाडी
तेनां बच्चाने मोढेथी पकडे छे अने ऊंदरने पण मोढेथी ज पकडे छे छतां बच्चां उपर वहाल छे अने ऊंदरने
मारी नांखवा माटे पकड्यो छे, एम बाह्यमां सरखुं होवा छतां अंदर “पक्कड पक्कड में फेर है.”
वच्चेनो आंतरो मुमुक्षुने जणाया वगर रहेशे नहीं. सगी माता अने धाव माता बन्ने पुत्रनुं पालन सरखी
रीते करे छतां अंतरमां आंतरा छे, एकने तेमां उपर खरो प्रेम छे ज्यारे बीजी पैसा माटे करे छे, ते समजे छे के
“आ छोकरो मारो नथी; कमाईने मने आपवानो नथी.” तेम ज्ञानी एटले धर्म बुद्धिवाळाने ‘आ शरीरादि
मारा घरनी चीज नथी; तेम ज आ पुण्य–पापना कोई पण भाव मारा स्वभावथी आवता नथी माटे मारा
नथी.’ एम अंतर द्रष्टिमां ज्ञानीने परनो नकार वर्ते छे; अने अज्ञानी परना संयोगमां लाभ–नुकसान मानी
रह्यो छे. एटले परने पोतानुं मानी रह्यो छे. बन्नेनी द्रष्टिमां मोटुं अंतर छे........ कह्युं छे के:– ‘
स्वभाव जे धर्म ते पण अनादि अनंत छे. ‘
चाल्यो आवे छे. अनादिथी चाल्या आवता धर्मनो सत्पुरुषोए प्रकाश पाडयो छे
अर्थात् धर्मने समजाव्यो छे–कर्यो नथी. विचार द्वारा कोईए उपजावी काढ्यो नथी, पण
जेम छे तेम सर्वज्ञ भगवाननी वाणी द्वारा जणायो छे.
वस्तु टकीने बदलती होवाथी अखंड एकरूप वस्तु प्रत्ये लक्ष जाय तो शुद्धता प्रगटे छे,
अवस्था प्रत्ये लक्ष जाय तो अशुद्धता प्रगटे छे. वस्तु अने तेनो धर्म अभिन्न होवाथी
(शुद्धता रूपी) धर्म अंतरमांथी प्रगटे छे. बहारथी आवतो नथी (शक्तिरूपे) छे ते
व्यक्त थाय छे. धर्म प्रगटवा माटे मात्र अंदरना स्वभावनी प्रतीति अने प्रतीति
प्रमाणे स्वरूपस्थिरतानी ज जरूर छे.
१–तद्न अज्ञानी मात्र वेषने ज जुए छे.
२–बीजा नंबरना अज्ञानी बाह्य प्रवृत्ति
वस्तु छे, तेमां द्रष्टिनी ऊंधाईथी ज बंधन थाय छे. प्रश्न:– ऊंधी मान्यतानुं लक्षण शुं? उत्तर:– एक आत्मा
सिवाय कोईपण पर चीज मने लाभ नुकसान करे एम मान्युं ते ज परने पोतानुं मानवारूप ऊंधी मान्यता छे;
नथी. ज्यां सुधी संयोगोमां मीठाश वर्ते छे त्यां सुधी असंयोगी आत्माना स्वतंत्र सुख स्वभावनी वात बेसती
नथी, तेथी प्रथम ‘पात्र थवा सेवो सदा, ब्रह्यमचर्य मतिमान.’ एम श्रीमदे कह्युं छे.