Atmadharma magazine - Ank 005
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: ७४ : आत्मधर्म चैत्र : २०००
रागना कारणे तेना तरफथी सगवड मळती ते बंध पडी ते कारणे, के पोतानो वंश नहीं रहे तेवा कारणे, के
भविष्यमां ते मारी सेवा करत ते लाभ जतो रह्यो एवी कोई मान्यताने कारणे त्रास थाय छे; वळी जो ज्ञानथी
त्रास थाय तो जेणे जेणे जाण्युं ते बधाने त्रास थाय, मा अने बाप बन्नेने ते खबर पडे छे छतां मा वधारे
रोवुं–कूटवुं करे अने बाप ओछुं करे अगर बाप वधारे करे अने मा ओछुं करे ए केम बने?
पहेलो मित्र:–त्यारे में कही ते कहेवतनुं शुं?
बीजो मित्र–अज्ञानीओए ते जोडी काढी छे, तेओ पोते पण ते साची मानता नथी केमके जो साची
मानता होय तो पोते पोताना धंधामां थता लाभ नुकसानथी शा माटे जाणीता रहेवा मागे छे? तेमना दीकराने
शा माटे भणावे छे? शुं तेमने सुख व्हालुं नथी? जो तेओ ते कहेवत साची मानता होय तो तेम करेज नहीं.
पहेलो मित्र–त्यारे आ बाबत कोई खरी कहेवत छे?
बीजो मित्र–हा, Knowledge is power एवी कहेवत छे तेनो अर्थ ‘ज्ञान ए बळ छे’ एवो छे.
पहेलो मित्र–ते कहेवत तो खोटी लागे छे; केमके घणा केळवणी पामेला जगतमां अक्कलवाळा अने डाह्या
गणाता माणसो नबळा होय छे अने अक्कल वगरना शरीरे ‘तगडा’–बळवान होय छे, ते अक्कलवाळा
डाह्याओने धक्को मारे तो गडथोलां खवडावी दे.
बीजो मित्र–तमे कहेवतनो अर्थ समज्या ज नथी.
पहेलो मित्र–त्यारे खरो अर्थ शुं छे?
बीजो मित्र–तमे तो तमारा दाखलामां जीव अने शरीर एक मान्या तेथी तमे साचो अर्थ समज्या नथी.
पहेलो मित्र–तमे ते वात साबित करो तो अमे मानीए. कारणो जाण्या विना परीक्षा कर्या विना न
मानवुं एम तमे ज कह्युं छे; माटे कारणो आपो.
बीजो मित्र–तमे कारणो मागो छो ते व्याजबी छे, कारण के अंध श्रद्धा शून्यवत् छे. आपणे ते कारणो
हवे पछी चर्चीशुं.
हिंसानुं स्वरूप
आगम ग्रंथमां हिंसाना विषयमां लख्युं छे के: –
रागी, द्वेषी अथवा मूढ बनीने आत्मा जे कार्य करे छे ते हिंसा छे. प्राणीना प्राणोनो तो वियोग थयो,
परंतु रागादिक विकारोथी आत्मा ते समये मलिन न थयो तो तेथी हिंसा नथी थई एम समजवुं – ते अहिं सक
ज रह्यो छे.
अन्य जीवना प्राणोनो वियोग थवाथी ज हिंसाथाय छे एवुं नथी अथवा तेना प्राणोनो वियोग न
थवाथी अहिंसा थाय छे एम न समजवुं. परंतु आत्मा ज हिंसा छे अने आत्मा ज अहिंसा छे एम मानवुं
अर्थात् प्रमाद परिणामवाळो आत्मा ज स्वयं हिंसा छे अने अप्रमत्त आत्मा ज अहिंसा छे.
आगमां पण कह्युं छे के: – आत्मा ज हिंसा छे अने आत्मा ज अहिंसा छे एम जिनागमां निर्णय
कर्यो छे. प्रमादरहित आत्माने अहिंसक कहे छे अने प्रमाद सहित आत्माने हिंसक कहे छे. जीवना परिणामोने
आधीन बंध थाय छे. जीवमरण थाय अथवा न थाय परिणामने वशथयेलो आत्मा कर्मथी बद्ध थाय छे एवी
खरी द्रष्टि वडे बंधनुं टुंकामां स्वरूप कह्युं..
(२)
पहेलो मित्र–
“ज्ञान ते बळ, (सत्ता, अधिकार) छे” ए कहेवतनो अर्थ तमे शुं करो छो?
बीजो मित्र–ज्ञान ते त्रासने जीतनारूं बळ छे. ज्ञान ते कहेवाय के जे खरूं होय अने दोष रहित होय–
साचुं ज्ञान तेज खरेखरूं बळ छे केमके द्रढता थतां जीवने त्रास थतो नथी, तेथी जीवने शांति रहे छे.
पहेलो मित्र–तमे आगळ सात प्रकारना त्रास कह्या हता ते दरेक त्रास शी रीते ज्ञानथी टळे ते समजावो.
बीजो मित्र–आ भवमां जीवन पर्यंत अनुकुळ सामग्री रहेशे के नहि ते आ लोकनो भय छे. आ
भय टाळवानुं साधन ए छे के ज्ञानमां निर्णय करवो जोईए के पर वस्तु मने अनुकुळ, के प्रतिकुळ थई शकेज
नहि. मारी समजणमां दोष ते खरी प्रतिकुळता छे. मारो चैतन्य ज्ञानगुण तेज मारो लोक छे ते नित्य छे,
सर्वकाळे प्रगट छे. ते मारो चैतन्य स्वरूप लोक पर बगाडी शकतुं नथी के सुधारी शकतुं नथी. मारो लोक हुं पोते
चैतन्यरूप