Atmadharma magazine - Ank 005
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : २००० आत्मधर्म : ७५ :
(शरीर–राग द्वेष–पुण्य, पापथी पर) छुं मारो लोक नित्य मारी साथे ज छे. तेने आ लोकमां के परलोकमां त्रास
आपनारी कोई वस्तु नथी, एम जे समजी द्रढ थाय तेने त्रास थाय नहि.
पहेलो मित्र–दोष रहित ते साचुं ज्ञान कहेवाय एम कहो छो तेथी प्रश्न उठे छे के ज्ञानमां दोष केटला?
बीजो मित्र– (१) संदेह (२) ऊंधाई अने (३) अनिर्णय ए त्रण ज्ञानना दोषो छे. जे जीव ए
दोषोने टाळे तेने ज साचुं ज्ञान थाय.
पहेलो मित्र–केटलाको कहे छे के तमे तो ज्यां होय त्यां ‘साचुं ज्ञान–साचुं ज्ञान करवुं’ एम ज कह्या करो
छो?
बीजो मित्र– साचा ज्ञान प्रत्ये जेने अरुचि होय तेने एवा ज भाव आवे; समजवानी रीत तो एवी छे
के, समजवानी बुद्धिथी पूर्वे बांधेली बधी मान्यताओने थोडा वखत माटे एक बाजु राखी, जो जीव सांभळी
खरूं शुं ते नक्की करे तो ज साचो उपाय समजाय. पोते जे मान्यताओ बांधी राखी छे ते साची होय तो
हालसुधी त्रास केम जतो नथी, शांति केम थती नथी? परनी कल्पित सगवडोथी जेने सुख मानवुं होय तेणे
ख्यालमां राखवुं पडशे के परथी कल्पेली सगवडो थोडा वखतमां अद्रश्य थई जशे अने कल्पेली अगवडताना
गंज आवशे. कल्पनाना घोडाओ वडे त्रास टाळी शकाशे नहीं, केमके ते घोडाओ पोते त्रास पेदा करनारा छे,
पहेलो मित्र–ज्ञानथी लाभ थाय तेवी मान्यता संसारमां पण प्रचलित छे अने तेओ तेम वर्ते छे.
जेमके:–
(१) ज्ञान प्राधान्य न होय तो माणसो पोतानी प्रजाने भणावे छे शा माटे?
(२) पेटमां दुःखतां तेना उपाय माटे वैद्यक ज्ञानना शास्त्री पासे शा माटे जाय छे? धारा शास्त्री पासे
केम जतां नथी?
(३) कोई व्यवहारिक काममां घुंच (मुश्केली) लागे तो रस्तो काढवा माटे ते कामना ज्ञाता (जाणकार)
पासे माणसो जाय छे.
(४) सारुं हांडलुं बनाववुं होय तो तेना जाणकार कुंभार पासे जाय छे, पण ते माटे सारा डोकटर, वैद्यके
सारा झवेरी पासे कोई जतुं नथी. ए द्रष्टांतो उपरथी सिद्धांत ए नीकळ्‌यो के लोको पण अगवडो दूर करवानो
उपाय साचा ज्ञानने गणे छे. आम होवां छतां कोई प्रकारनुं दुःख तो ऊभुं ज रहे छे, तेनुं कारण शुं?
बीजो मित्र–आत्माना स्वरूपनुं साचुं ज्ञान शुं ते लोको परीक्षा करी नक्की करतां नथी.
पहेलो मित्र–कल्पेली सगवडो थोडा वखतमां अद्रश्य थई जशे एम तमे कहो छो तेनुं कारण शुं?
बीजो मित्र–परथी सगवडो थाय ते कल्पना पोताना ज्ञाननी विकृत [ऊंधी] अवस्था छे. अने विकृत
अवस्थाओनां पडखां फर्या करे छे.
पहेलो मित्र–केटलाक माणसोने अने राजाओने आखी जिंदगी अमुक प्रकारनी सगवडो तो रहे ज छे,
तेनुं केम?
बीजो मित्र–मारुं कहेवुं तमे बराबर समज्यां नथी. तेथी [वधारे] स्पष्ट करवानी जरूर छे.
परवस्तुथी तो सगवड पण नथी, अगवड पण नथी, परवस्तु मात्र जाणवा लायक [ज्ञेय] पदार्थो छे.
पर वस्तुनी कोई अवस्था पोताने सगवडवाळी छे एम जीव कल्पना करे छे. वळी कोई अगवडतावाळी छे,
एम जीव कल्पना करे छे. परवस्तुनो संयोग एक सरखो कोई जीवने आखी जिंदगी रहे ज नहि; कदी
कोई कोई वस्तुओनो रहे तो पण ते वस्तुनी अवस्थाओ तो बदले ज, ते कारणे परवस्तुथी सगवड अगवडनी
कल्पना करनारा जीवना कल्पनाना घोडाओ बदल्या वगर रहेज नहि.
पहेलो मित्र–त्यारे सुख दुःख तो मननी कल्पना ज लागे छे, खरूं सुख तो लागतुं नथी.
बीजो मित्र–तमे नथी, संसारिक सुख दुःख तो परवस्तुथी सगवड अने अगवडनी कल्पना छे, अने ते
कल्पना कपोळ कल्पित होवाथी मात्र हवाई किल्ला ज छे. वधारे स्पष्ट रीते कहीए तो ते ‘शेखचल्ली’ ना
हवाई किल्ला जेवा छे. पोताना साचा ज्ञाननी द्रढतानुं फळ ते शांतिरूप साचुं सुख छे, ते निश्चळ छे.
पहेलो मित्र–तमे आ लोक अने परलोकनो भय केम मटे ते समजाव्युं. बीजां भयो संबंधीनी चर्चा
आपणे हवे पछी मळीशुं त्यारे राखीशुं?
बीजो मित्र–बहु सारुं.