Atmadharma magazine - Ank 005
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: ७६ : आत्मधर्म चैत्र : २०००
मोक्ष मेळवा माटे
सम्यक्दर्शनी भावना करो
: संग्राहक : रा. मा. दोशी
सम्यग्दर्शन संपूर्ण दुःखनो
नाश करे छे माटे हे जीव, तुं एमां
प्रमादी न था.
शंका–सम्यग्दर्शनथी सर्वे
दुःखोनो नाश केवी रीते थाय छे?
उत्तर–सम्यग्दर्शन ते ज्ञान,
चारित्र, वीर्य अने तपनो आधार
छे, तेथी ते संपूर्ण दुःखनो नाश करे
छे एम समजवुं.
शंका–परिणाम परिणामि
द्रव्यना आधारथी रहे छे, तेथी
अन्योन्य आधार होय नहीं, छतां
आप सम्यक्त्व परिणाम ज्ञानादि
परिणामोनो आधार छे एम केम
कहो छो?
उत्तर–जेम परिणामशील
द्रव्य विना (आत्मा विना)
ज्ञानादिक रहेतां नथी, तेम ज्ञान,
चारित्र, वीर्य, अने तपने
सम्यक्पणुं सम्यग्दर्शन विना प्राप्त
थतुं नथी, तेथी सम्यग्दर्शनने
आधार मान्यो छे.
जेम नगरमां प्रवेश
करवानो उपाय दरवाजो छे, तेम
ज्ञान, चारित्र, वीर्य अने तपनो
आत्मामां प्रवेश थवाने माटे
सम्यग्दर्शन दरवाजा समान छे;
अर्थात् ज्यारे आत्मामां
सम्यक्त्वनी उत्पत्ति थाय छे, त्यारे
तेमां ज्ञानादिकोनो प्रवेश थाय छे.
सम्यग्दर्शन विना सम्यग्ज्ञान,
सम्यग्तप, सम्यग्चारित्रादिनी
प्राप्ति थती ज नथी. सम्यग्दर्शननी
प्राप्ति नहीं थवाथी, जीवने अवधि
वगेरे विशिष्टज्ञान यथाख्यात चारित्र,
कर्मनी अतिशय निर्जरा करनारूं तप
प्राप्त थतुं नथी. मोढाने आंखोथी
जेम सुंदरपणुं प्राप्त थाय छे, तेम
ज्ञानादिकोमां सम्यग्दर्शनथी
सम्यक्पणुं प्राप्त थाय छे. जेम झाडने
मूळथी द्रढता आवे छे तेम
ज्ञानादिकोमां स्थिरता अगर द्रढता
सम्यग्दर्शनथी प्राप्त थाय छे.
जे जीव सम्यग्दर्शनथी भ्रष्ट
छे तेने ज भ्रष्ट समजवा. दर्शनभ्रष्ट
जीवने मोक्षनी प्राप्ति थती नथी.
चारित्र भ्रष्ट जीव मुक्तिनी प्राप्ति
करी शके छे, परंतु दर्शन भ्रष्ट जीवने
मुक्तिलाभ थतो नथी.
जे जीव सम्यग्दर्शनथी भ्रष्ट
छे तेने भ्रष्टतम कहेवामां आवे छे.
चारित्रभ्रष्ट जीव दर्शनथी भ्रष्ट
मानवामां आवतो नथी. अर्थात्
चारित्र भ्रष्ट जीवथी दर्शन भ्रष्ट जीव
अतिशय भ्रष्ट छे. जे चारित्रथी भ्रष्ट
थाय छे, पण सम्यग्दर्शनथी च्युत
नथी थता तेने संसार पतन नथी.
शंका–असंयमथी उत्पन्न
थएल पापना भारथी जीवने
संसारमां भ्रमण करवुं पडे ज छे,
छतां चारित्र भ्रष्ट जीवने संसार
पतन नथी एम आप केम कहो छो?
उत्तर–चारित्र भ्रष्ट जीव चारे
गतिओमां भ्रमण करता नथी. तेनो
संसार अल्प रहे छे, तेथी तेने संसार
नथी एम कहेवामां आवे छे, जेम
कोईनी पासे थोडुं धन होय तो ते
धनी कहेवातो नथी, परंतु
दर्शनभ्रष्ट मनुष्य अनंतकाळ
संसारमां भ्रमण करे छे तेथी ते
अत्यंत निकृष्ट छे.
शंका–कांक्षा, वगेरे
अतिचारोथी रहित, अविरत
सम्यग्द्रष्टिने पण तीर्थंकर नाम
कर्मनो बंध थाय छे.
अप्रत्याखानावरणी क्रोध मान–
माया अने लोभना उदयथी थता
परिणामोमां हिंसादिकथी विरकतता
उत्पन्न न थवा छतां पण एकला
निरतिचार सम्यग्दर्शन धारण
करवावाळा मनुष्यने, तीर्थंकर नाम
कर्मनो बंध थाय छे.
शंका–विनय संपन्नता वगेरे
अन्य कारणोथी पण तीर्थंकरत्वनी
प्राप्ति थाय छे, सम्यग्दर्शनमां ज
थाय एवी शुं विशिष्टता छे?
उत्तर–सम्यग्दर्शन होय तो
विनय संपन्नतादिक तीर्थंकर
कर्मबंधनुं कारण थाय छे, नहीं तो
तेमां (विनयसंपन्नतादिमां)
कारणता नथी. मात्र सम्यग्दर्शननी
सहायताथी ज श्रेणीक राजा
भविष्य काळमां अर्हंत थया छे.
शंका– श्रेणीक राजा
भविष्य काळमां अर्हंत थवाना छे
तेने अर्हंत अवस्था प्राप्त
थई चूकी नथी, छतां ते अर्हंत
थई गया एम केम कहो छो?