चैतन्य स्वरूप मारामां छे, चैतन्य स्वभाव चूकीने
परमां सारुं मान्युं तेज अनंतु पाप छे. समजण ते ज
धर्म–अने अज्ञान ए ज संसार. दरेक जीव ज्ञानी के
अज्ञानी सौ स्वतंत्र छे. कोईना अभिप्राय फेरवी
शकवा बीजो कोई समर्थ नथी. रुचि तारा स्वभावनी
कर! तारा बेहद स्वभावने कोई पर द्रव्य लाभ–
नुकसान करवा समर्थ नथी.
कांई राग आवतो नथी. रागरहित ज्ञान थई शके छे.
ज्ञान स्वरूप मुक्त छे तेने ज्ञान करवामां कोई द्रव्य–
क्षेत्र–काळ के भाव नडता नथी. मुक्त स्वरूपमां शंका
ते ज संसार छे.
ज्ञानमां रागादि न रह्या. एकला स्वाश्रयना
ज्ञानने टकावी राखवुं तेज केवळज्ञान छे.
तारा ज्ञान स्वभावमां कोई पर कांई करवा समर्थ
नथी. पूर्वना कारणे बाह्यसंयोग के अंदर क्षणिक
रागादि ते स्वभावमां नथी, ज्ञाननो उपाय ज्ञान ज
छे. अनंतकाळे नहीं करेल एवुं साचुं भान करवुं ते ज
अपूर्व छे. अने तेमां ज अनंतो पुरुषार्थ छे. सर्वज्ञ
भगवाने कहेली तारा स्वरूपनी स्वतंत्रता बतावाय
छे.
स्वभावनो नाश करनार छे. कोई परने कांई करी शके
नहीं–आम होवाथी परने मारवा जीवाडवानो के
भोगववानो भाव टळी जवो जोईए. स्वरूपनी रुचि,
भान अने ते प्रकारनुं परिणमन ते ज धर्म छे, आ
समजे नहीं अने पोतानी ऊंधी मान्यता छोडे नहीं;
पूज्य गुरुदेव कहे छे के शुं थाय? सौ स्वतंत्र छे; प्रभु
छे, ऊंधाईमां पण स्वतंत्र छे. खमा, तने खमा! प्रभु
तारी अवस्था तुं ज कर! तारा तर्कनुं समाधान तुं कर
पीटाय छे. ‘तुं प्रभु छो!’
बाळक, सधन–निर्धन, रागी–द्वेषी, माणस–देव
कोई आत्मानुं स्वरूप नथी. स्वरूपनुं भान ए ज
उद्धारना रस्ता छे. अने भान वगर कोई रीते
उध्धारना मार्ग नीकळे तेम नथी;
तेम नथी. माटे स्वभावनुं भान कर अने स्वभावना
जोरे रागादि सामे एकलो झुर! तने कोई नुकसान
करवा समर्थ नथी.
शके नहीं. निमित्तथी मात्र बोलाय के
आपता हशे?
अज्ञान छे. अज्ञानीने नुकसान तेना भावनुं ज छे–
परनुं नहीं. तारी शंकाए तने नुकसान छे अने तारी
ज निशंकताए तने धर्म छे. साची ओळखाण वगर
कदी निशंकता थाय नहि. अहिं उपभोगने भोगव
एम कहेतां परने भोगववानुं कह्युं नथी, पण ज्ञान
स्वभावनी ओळखाण करी तेमां द्रढ रहेवानुं कह्युं छे.
स्वभावनी द्रढता थतां पर संयोग आवीने छूटी जशे
ज्ञानीने कोई पर संयोगनो आदर नथी.
तने नुकसान करवा समर्थ नथी.