ATMADHARMA Regd No. B. 4787
प्रश्नोत्तर
प्रश्न–संसारमां राज्य कोनुं वर्ते छे?
उत्तर–पोताना स्वरूपनी भ्रमणानुं.
प्रश्न–संसारमां बहुमती कोनी?
उत्तर–स्वरूपनी भ्रमणावाळा जीवोनी.
प्रश्न–ते भ्रमणामां आगेवान कोण?
उत्तर–द्रव्यलिंगी मुनि; तेने संसार तत्त्व कहेवामां आवे छे.
प्रश्न–द्रव्यलिंगी परजीवनी हिंसा करे?
उत्तर–बिलकुल नहि; ते छकाय जीवनी दया पाळे छे, अतिचार वगरनुं अहिंसाव्रत ते पाळे छे.
प्रश्न–द्रव्यलिंगी मुनि असत्य बोले, चोरी करे, मैथुन सेवे के परिग्रह राखे?
उत्तर–बिलकुल नहि; अतिचार रहित ते बधां व्रत पाळे छे.
प्रश्न–आटलुं करवा छतां धर्म केम न थाय?
उत्तर–स्वरूपनी भ्रमणा होवाथी धर्म न थाय ए देखीतुं ज छे.
प्रश्न–त्यारे शुं जीवदया न पाळे, असत्य बोले, चोरी करे, अब्रह्मचर्य सेवे अने परिग्रह राखे तो धर्म
थाय?
उत्तर–तमारो प्रश्न अधिराई अने आडाई बतावे छे, तमे कह्युं ते तो बधुं पाप छे, तेथी धर्म थाय ज
नहीं एम तो आर्यावर्तनुं नानुं बच्चुं पण समजे छे.
प्रश्न– त्यारे धर्म क्यारे थाय?
उत्तर–पोताना स्वरूपनी यथार्थ ओळखाण करवी अने भ्रमणा टाळवी ते धर्मनी शरूआत छे, ते
स्वरूपमां स्थिर रहेवुं ते साधकदशा छे, अने संपूर्ण स्थिरता थवी ते धर्मनी पूर्णता छे.
प्रश्न–द्रव्यलिंगी मुनि भव्य होय के अभव्य होय?
उत्तर–भव्य पण होय–अभव्यय पण होय.
प्रश्न–आ जीव द्रव्यलिंगी मुनि पूर्वे कोईवार थयो हशे?
उत्तर–हा, अनंतवार.
प्रश्न–द्रव्यलिंगी मुनिने संसार तत्त्व कहेवामां आवे छे तेनो कांई आधार छे?
उत्तर–हा. श्री प्रवचनसारमां ३६२ मा पाने नीचे प्रमाणे कह्युं छे:–“हवे ए पांचमांथी प्रथम ज संसार
तत्त्वने कहे छे–
ये अयथागृहितार्था एते
तत्त्वमिति निश्चता समये।
अत्यन्त फल समुद्धं भ्रमन्ति,
ते अतः परं कालम्।।७१।।
अर्थ:–जैनमतमां कहेली द्रव्यलिंग अवस्था तो धारण करी छे पण पदार्थोनुं स्वरूप जाणी लीधुं छे तेवुं ज
स्वरूप छे एवी मिथ्या मान्यता जे जीव करी बेठो छे ते श्रमणाभास मुनि छे अने ते अनंत भ्रमणरूपी फळथी
समृद्ध थई अनंतकाळ सुधी भटके छे.
भावार्थ:– जे अज्ञानी मुनि मिथ्या बुद्धिथी पदार्थोनी श्रद्धा करतो नथी–अन्यनी अन्य कल्पना करे छे
अने सदा मोहमल्ल (मिथ्यादर्शन) ना कारणे चित्तनी मलिनताथी अविवेकी छे, तेणे जो के द्रव्यलिंग धारण कर्युं
छे तोपण परमार्थ (साचा) मुनिपणाने ते प्राप्त थयो नथी. मुनि जेवो ते मालुम पडे छे तोपण ते अनंतकाळ
सुधी अनंत परावर्तन करी भयानक कर्मफळ भोगवतो भटके छे, तेथी ते श्रमणाभास मुनिने संसार तत्त्व
जाणवुं. बीजो कोई संसार नथी पण जे जीव मिथ्या बुद्धिवाळो छे ते ज संसार छे.
प्रश्न–बहारना लिंग उपरथी मुनिपणुं के ज्ञानीपणुं नक्की थई शके के केम?
उत्तर–न ज थई शके; ते उपर आवी गयुं छे.