चैत्र : २००० आत्मधर्म : ६९ :
विकारी अवस्था हुं नहीं, परिपूर्ण अविकारी स्वभाव ते ज हुं’ एवी द्रष्टि ते मोक्षमार्ग; तथा पूर्ण शुद्ध अविकारी
पर्यायनुं प्रगटपणुं ते मोक्ष छे. मोक्षमार्ग बहारमां के पुण्यादिमां नथी, पण अरूपी आत्मामां ज छे.
वस्तु तो त्रिकाळी शुध्ध ज छे, मोक्ष वस्तुनो थतो नथी, पण अवस्थामां थाय छे. जे विकारी पर्याय हती
तेनो नाश थईने शुद्ध अविकारी पर्याय थई तेनुं नाम मोक्ष.
• मोक्ष केम थाय! •
परिपूर्ण शुद्धदशा [–मोक्ष] सम्यक्चारित्र वगर थाय नहीं; सम्यक्चारित्र ते सम्यक्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञान
वगर थाय नहीं; सम्यक्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञान तत्त्वनो निर्णय सर्वज्ञना आगमना निर्णय वगर थाय नहीं;
सर्वज्ञना आगमनो निर्णय सर्वज्ञनी सत्ताना निर्णय वगर थाय नहीं.
• संसार अने मोक्ष •
आत्मामां जे एक समयपूरती विकारी अवस्था ते संसार अने अविकारी अवस्था ते मोक्ष; विकारी
अवस्था ते मारी छे–मारा स्वरूपनी छे एवी मान्यता ते चोराशीना जन्म–मरणनो मार्ग छे; पुण्य पापनी वृत्ति
जेटलो हुं एम मान्युं तेने संसार–पर्याय छे. क्षणिक विकारी अवस्था ते हुं नहीं, हुं तो एक समयमां आखो
चैतन्य आनंदघन स्वभावे छुं एवुं भान ते सम्यकदर्शन–ज्ञान–चारित्रनो मार्ग अथवा मोक्षमार्ग; अनेपरिपुर्ण
निर्मळ दशानुं प्रगटपणुं ते मोक्ष. मोक्ष अर्थात् पुर्ण दशा सम्यकचारित्र वगर प्रगटे नहीं स्वरूपनी रमणता ते ज
चारित्र छे, बहारनी क्रियामां के पुण्य–पापमां चारित्र नथी.
• जन दशन अटल! •
वस्तु अनादि अनंत छे, धर्म ते वस्तुनो स्वभाव छे, तेथी धर्म अनादि छे कोई व्यक्तिए धर्म उत्पन्न
कर्यो नथी; दरेक वस्तु पोताना स्वभावे परिपूर्ण छे तेनो प्रदर्शक ते जैनधर्म; जैनधर्म एटले विश्वधर्म; आत्मानो
स्वभाव त्रिकाळी छे तेमां जे एक समय पूरती विकारी पर्याय तेनुं लक्ष गौण करीने अखंड परिपुर्ण स्वभावनुं
दर्शन कराववुं ते जैनदर्शन. एक समय पुरतो विकार स्वरूपमां नथी. तत्त्वनो निर्णय आगमज्ञान वगर होय
नहीं; अने आगमज्ञान सर्वज्ञने जाण्या वगर होय नहीं. एकेक आत्मा सर्वज्ञ स्वरूप छे अने सर्वज्ञ थई शके छे;
• सर्वज्ञ एटले! •
एकेक आत्माना अनंतगुण, तेमां ज्ञान गुणनी एक समयनी एक पर्यायमां त्रणकाळ–त्रणलोकना अनंत
पदार्थो तेमना गुण पर्याय सहित एक साथे जाणे ते सर्वज्ञ. ते सर्वज्ञना मुखथी नीकळेली वाणी ते आगम, ते
आगम द्वारा तत्त्वनो निर्णय थाय, ते तत्त्वना निर्णय द्वारा सम्यक्दर्शन–सम्यक्ज्ञान थाय अने सम्यक्दर्शन–
ज्ञानद्वारा चारित्र थाय अने चारित्र द्वारा मोक्ष थाय.
आ वात समज्या वगर कदी मोक्ष थाय नहीं; सम्यग्ज्ञान सिवाय मोक्षनो उपाय नथी. माणसो कहे याद
केटलुं राखवुं? पैसाथी धर्म थतो होय तो पांच लाखनी मूडीमांथी पचास हजार आपी दे एटले धर्म थई जाय
अने बाकीना साडाचार लाखथी संसार पण चाले! एटले संसार अने मोक्ष बन्ने साथे! पण पैसाथी कदी धर्म
थाय नहीं. धर्म तो आत्मानो स्वतंत्र स्वभाव छे; परावलंबने धर्म नथी. वस्तुनुं स्वरूप सर्वज्ञ मुख द्वारा
नीकळेली वाणी (आगम) द्वारा जणाय. बधा सर्वज्ञोनुं कथन एक ज प्रकारे होय, एक सर्वज्ञ करतां बीजा जुदुं
कहे एवुं कदी बने नहीं
‘एक होय त्रणकाळमां परमारथनो पंथ.’
त्रणेकाळना सर्वज्ञोनुं कथन एक ज प्रकारे होय छे.
सर्वज्ञना निर्णय वगर आगमनो निर्णय थई शके नहीं;
आगमना निर्णय वगर तत्त्वनो निर्णय थई शके नहीं.