जाणे तो तेना ख्यालमां आवे के हुं स्वपणे छुं अने परपणे नथी. हुं स्वपणे– मारा पोताना द्रव्ये, क्षेत्रे, काळे
अने भावे छुं एटले हुं परने लाभ–नुकसान करी शकुं नहीं के पर मने करी शके नहीं. हुं पोते ज मारा भला–
भूंडानो करनार छुं; मने दोष माराथी थाय छे छतां परनो दोष काढवो ते ऊंधाई छे माटे दरेक जीवे ते स्वरूप
समजी ऊंधाई टाळवी जोईए; एवो उपदेश आ भंगोद्वारा भगवाने आप्यो छे.
शाळाओमां पण ते उपदेश ओछे के वधारे अंशे मळे छे; हवे जो तेने भगवाने धर्म कह्यो होय तो भगवानने
लौकिक पुरुष गणवा जोईए; पण भगवानने तेमनुं अनंत वीर्य प्रगट्या पछी जे दिव्यध्वनि प्रगट थाय छे
तेमां तो एवो उपदेश होय छे के, आ लौकिक मान्यता खोटी छे; कोई कोईनी हिंसा करी शके नहीं, पण हिंसाना
विकारी भाव जीव करी शके अने ते रीते जीव पोतानी हिंसा अनादिथी करी रह्यो छे. भगवाने अहिंसानुं स्वरूप
नीचे जणाव्या मुजब कह्युं छे:–
समिति तरफथी थशे. उमेदवारे नीचेना सरनामे लखवुं.
कहेवातो नथी. जे जीवो उक्त अहिंसानुं सर्वथा पालन करी शके ते जेटले अंशे ते साची अहिंसाने पाळी शके
तेटले ज अंशे अहिंसक छे अने शेष अंशे हिंसाना भागी छे. ए ध्यान राखवानी वात छे के “ (जेटले अंशे)
वीतराग भाव छे ते ज अहिंसा छे, अने शुभराग पण हिंसा छे.” आ अहिंसा ते महावीरे परूपेल छे.
भगवान अलौकिक आत्मा हता तेथी तेमणे बतावेली अहिंसा पण अलौकिक होय ते ज न्यायसर छे.
जगजाहेर थतुं हतुं, त्यारे शासनना भक्त देवो दुदुंभिना नादथी तेने वधावी लेता हता.
शुभमां रहेता; कोई जीवनी हिंसा करवानो भाव ते पापभाव होवाथी तेवा भावो तेमणे टाळ्या. जेओ स्वरूप
न समज्या पण स्वरूप समजवानी रुचिवाळा थया तेओए पण हिंसाना तीव्र अशुभ भावने टाळ्या. जेओने
स्वरूप समजवा तरफ वलण न थयुं तेओ मंदकषाय तरफ प्रेराया अने तेथी तेओए पण अशुभ भाव केटलेक
अंशे छोडया. व्यवहारी (अज्ञानी) लोकोनी भाषामां–परजीवोनी हिंसा ते कारणे अटकी ते कार्यने अहिंसा
वधी–जीवो बच्या–एम कहेवानो रूढ प्रसिध्ध व्यवहार छे; तेथी ‘भगवानना उपदेशथी पर जीवोनी हिंसा
अटकी’ एम लौकिक रीते कही शकाय, पण शब्द प्रमाणे कोई तेनो अर्थ करे तो भगवान परना कर्ता ठरे–के जे
असत्य छे.