: ९६ : आत्मधर्म : वैशाख : २०००
भगवान महावीर विश्व–उपकारक अने महान तीर्थना प्रर्वतक तीर्थंकर महापुरुष हता तेथी तेमना
निर्वाण कल्याणक माटे अगणित प्रदिपोनी हारो थाय ए योग्य ज छे. जन समूह भगवानना निर्वाण दिवसनी
समाप्ति माटे ‘दिवाळी’ उजवे ए स्वाभाविक छे.
भगवाना शासनी हालनी स्थिति
भगवाननुं शासन २१०४२ वर्ष सुधी चालवानुं छे; तेमांथी मात्र २५०० वर्ष थयां छे, एटले हजु
लांबो वखत चालवानुं छे. ते बतावे छे के:–सम्यग्दर्शन जीवो पामे तेवो आ वखत छे.
छतां आ काळे भगवानना तत्त्वज्ञानना अभ्यास तरफ अरुचि जैन समाजमां जोसबंध प्रवर्ते छे अने
ते प्राप्त करवानो उपदेश पण वीरल जीवो ज करे छे. केटलोक भाग बाह्य क्रिया उपर वजन आपनारो छे,
ज्यारे बीजा भागनुं वलण व्यवहारिक केळवणी तरफ विशेष छे. जैन–समाजनी वर्तमान स्थिति श्रीमद्राजचंद्रे
नीचे मुजब होवानुं जणाव्युं छे; ते केटले दरज्जे सत्य छे तेनो वांचकोए ज निर्णय करी लेवो घटे छे.
श्रीमद्राजचंद्र नीचे मुजब कहे छे:–
१–आश्चर्यकारक भेद पडी गया छे. २–खंडित छे.
३–संपूर्ण करवानुं कार्य दुर्गम्य देखाय छे. ४–ते प्रभावने विषे महत अंतराय छे.
प–देश, काळादि घणा प्रतिकूळ छे. ६–वीतरागोनो मत लोक प्रतिकूळ थई पड्यो छे.
७–रूढीथी जे लोको तेने माने छे तेना लक्षमां पण ते प्रतीत जणातो नथी; अथवा अन्य मतने
वीतरागनो मत समजी प्रवर्त्ये जाय छे.
८–यथार्थ वीतरागोनो मत समजवानी तेमनामां योग्यतानी घणी खामी छे.
९–द्रष्टिरागनुं प्रबळ राज्य वर्ते छे.
१०–वेषादि व्यवहारमां मोटी विटंबना करी मोक्षमार्गनो अंतराय करी बेठा छे.
११–तूच्छ पामर पुरुषो विराधक वृत्तिना धणी अग्रभागे वर्ते छे.
१२–किंचित् सत्य बहार आवतां पण तेमने प्राणघात तुल्य दुःख लागतुं होय तेम देखाय छे.
(पा. ७०२)
नोट:–तेथी जिज्ञासुए निरुत्साह थवानुं नथी, पण सत्य पुरुषार्थ काळजीपूर्वक करवानुं आ कारण छे
एम समजवुं.
सद्गुरुनो संसर्ग होवो दुर्लभ छे
सद्गुरुना संसर्गनी जरूरियात
सद्गुरु यथार्थ ज्ञानरूपी नेत्रना धारक छे, संपूर्ण प्राणीओमां ते दया करे छे, ते लाभनी के सत्कार–
पुरस्कारनी अपेक्षा राखता नथी; चतुर्गतिओमां हजारो यातनाओ भोगवे छे ते देखीने तेमना अंतःकरणमां
दयानो प्रवाह वहे छे, “अहो! आ अज्ञजन मिथ्यादर्शनादि अशुभ परिणामोथी गतिओ उत्पन्न करवावाळा
कर्मोनो बंध करी रह्या छे, ए कर्मोथी छूटवानो उपाय तेओ जाणता नथी तेथी ए दीन प्राणी दुःखरूपी समुद्रमां
प्रवेश करी दुःख भोगवी रह्यां छे.” एवो विचार सद्गुरु करे छे. एवा सद्गुरुनो संसर्ग होवो दुर्लभ छे.
ज्ञाननी प्राप्ति विना साची देवपूजा वगेरे नथी; जीव जो सद्गुरुनी सेवा नथी करतो तो तेने ज्ञाननी
प्राप्ति थती नथी; ज्ञानविना आत्मानुं हित करवावाळी देवपूजा, स्वाध्याय वगेरे कार्योनुं स्वरूप जाणवामां
आवतुं नथी अने तेथी मोक्षनी प्राप्ति थती नथी.
सत्पुरुषनो उपदेश सांभळवो
दैवयोगथी सत्पुरुषनो सहवास पण प्राप्त थयो–पण तेमनी पासेथी हितनो उपदेश न सांभळ्यो तो
तेनो सहवासनो फायदो जीवने मळतो नथी एम ज समजवुं.