: वैशाख : २००० आत्मधर्म : ९७ :
• • • • आत्मधर्मनी प्रभावना करो • • • •
जो आपणे खेतरमां बी न वाव्युं अने वृष्टि थई तो ते वृष्टिथी कांई फायदो नथी, तेम सत्पुरुषनो
उपदेश न सांभळ्यो तो तेनो सहवास व्यर्थ ज थयो एम समजवुं.
श्रोताओए अरुचि छोडवी.
सत्पुरुषोनो उपदेश सांभळवा माटे जईने कोई त्यां सुवे छे अथवा पोतानी पासे बेठेला माणसो साथे
वातो करे छे अथवा तेनी वात सांभळे छे–सत्पुरुषना उपदेश तरफ तेनुं लक्ष जतुं नथी अथवा तेनी अरुचि थई
जाय छे.
वस्तुना स्वरूपनी सुक्ष्मता
सत्पुरुषनां वचन सांभळवां छतां तेनो अभिप्राय ध्यानमां राखवो दुर्लभ छे केमके जीवादि वस्तुओनुं
स्वरूप सूक्ष्म होवाथी तथा पूर्व काळमां कदी सांभळवामां नहीं आववाथी तेनो अभिप्राय मनमां समजवो कठण छे.
श्रध्धा प्रगट करवी दुर्लभ छे.
कदी बुद्धिना उघाडथी जीवादिनुं स्वरूप जाणे–धर्मनुं स्वरूप जाणे तो पण जीवादि स्वरूपमां तथा धर्म
स्वरूपमां श्रध्धा उत्पन्न करवी दुर्लभ छे.
धर्मनुं स्वरूप समजवामां महा पुरुषार्थनी जरूर.
मनुष्यने सत्धर्मनुं स्वरूप महा पुरुषार्थथी समजाय छे. ज्ञान थया पछी धर्ममां प्रवृत्ति करवामां तेनाथी
पण अधिक पुरुषार्थनी जरूर छे. जीवादि तत्त्वनुं स्वरूप जेणे जाण्युं छे एवा मनुष्योए धर्मनुं स्वरूप जाणीने
तेमां स्थिर थवुं जोईए. धर्मनुं आचरण करवामां प्रमादने छोडी देवो जोईए, एक क्षण पण तेनो आश्रय नहीं
करवो जोईए.
तत्त्वज्ञ अने मूढना कायर्क्षेत्रो.
तत्त्वज्ञ मनुष्य, मोक्षनुं मूळ एवा सद्धर्ममां पोतानुं हृदय स्थिर करे छे.
मूढ मनुष्य अहित कार्यमां ज प्रयत्न करे छे अने परमहितकर धर्ममां हंमेशां आळसु रहे छे अने ते
योग्य ज छे. जो एवा मनुष्य ए प्रवृत्ति न करे तो तेनुं संसारमां भ्रमण केम थाय?
साची संल्लेखना – (साचो संथारो)
जेने पोताना रत्नत्रयमां लागेला दोषो दूर करवानी भावना छे तेओ सद्गुरुओनो आश्रय करे छे. जो
रत्नत्रय निर्मळ करवानी भावना ज नथी तो आ साधुनुं लींग व्यर्थ शा माटे धारण कर्युं?
चार प्रकारना आहारनो त्याग करवा मात्रथी संल्लेखना थती नथी, परंतु कषायोना त्याग करवाथी
संल्लेखना थाय छे अने ते संल्लेखना होय तो ज संवर–निर्जरा थाय छे, कषायोथी नवीन कर्मोनुं ग्रहण थाय
छे–बंध थाय छे–स्थिति थाय छे. (भगवती आराधना)
जैन धर्मनुं टूंक स्वरूप
परानुग्रह परम कारुण्य वृत्ति करतां पण प्रथम चैतन्य जिन प्रतिमा था, चैतन्य जिन प्रतिमा था!
(श्रीमद् राजचंद्र)
भगवानना वखतमां धर्म पामेला महान आत्माओनी संख्या:–
केवळी ७०० पूर्वधारी ३०० मनःपर्यवज्ञानी ५०० विक्रियाऋद्धिधारी ९०० अवधिज्ञानी १३०० आचार्य–
४०० उपाध्याय–९९०० श्रावको १ लाख श्राविका ३ लाख अर्जिकाओ–३६००० अने ऋषि (साधु) ओ १४०००.
उपर मुजब भगवान महावीरना वखतमां हता, ए उपरांत सम्यग्द्रष्टि पामेला जीवो घणां हतां.
वीतराग कथनी तीव्रता समजवा माटे हाल प्राप्त साधनो
अनंत तीर्थंकरोए कहेली आत्माना स्वरूपनी तीव्रता समजवा माटेना हाल साधनो; श्री समयसार
परमागम, श्री प्रवचनसार, श्री पंचास्तिकाय, श्री नियमसार, श्री तत्त्वार्थसूत्र, श्री तत्त्वार्थ सार, श्री बृहद् द्रव्य–
संग्रह, श्री पद्मनंदीपंचवीशी, श्री गोमट्टसार, श्री सर्वार्थसिध्धि, श्री राजवार्तिक, श्री लब्धिसार, श्री क्षपणासार,
श्री पुरुषार्थ सिद्धि उपाय, श्री अष्टपाहुड, श्री त्रिलोक प्रज्ञप्ति तथा श्री आत्मानुशासन आदि शास्त्रो छे.