Atmadharma magazine - Ank 006
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: ९८ : आत्मधर्म : वैशाख : २०००
आ बाबतनुं सर्वथी प्राचीन साहित्य “षट्खंड आगम” श्री भूतबली तथा श्री पुष्पदंत मुनि कृत छे. ते उपर
धवल टीका थई छे ते हालमां हींदिमां प्रसिध्ध थाय छे, तेना छ भाग छपाईने बहार पडी गया छे. ते उपरांत
श्री जयधवल तथा श्री महाधवल शास्त्रो छे तेमांथी श्री जयधवल छपाई प्रसिध्ध थतुं जाय छे, तेनो पहेलो
भाग छपाईने हमणां ज बहार पड्यो छे.
आ शास्त्रो संबंधे श्रीमद्राजचंद्र नीचे मुजब कहे छे:–
“दिगंबरना तीव्र वचनोने लीधे कंई रहस्य समजी शकाय छे.” (आवृत्ति पांचमी) पानुं–११५
उपरना शास्त्रमांथी श्री समयसार, आत्मानुशासन गुजरातीमां प्रसिध्ध थया छे अने प्रवचनसार
गुजरातीमां प्रसिध्ध करवानी योजना थई गई छे.
तत्त्वज्ञानना रसिक जीवोए आ शास्त्रोनो तटस्थपणे अभ्यास करवानी जरूर छे.
जैनधर्म कोई व्यक्तिना कथन, पुस्तक, चमत्कार के विशेष व्यक्ति पर निर्भर नथी. ते तो सत्यनो अखंड
भंडार, विश्वनो धर्म छे. अनुभव तेनो आधार छे, युक्तिवाद तेनो अत्मा छे. ए धर्मने काळनी मर्यादामां केद
करी शकाय नहीं, पदार्थोना स्वरूपनो ते प्रदर्शक छे. त्रिकाळ अबाधित सत्यरूप छे. वस्तुओ अनादि अनंत छे
तेथी तेनुं स्वरूप प्रकाशक तत्त्वज्ञान पण अनादि अनंत छे.
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भरतना चंदाजी तमे जाजोरे तमे जाजोरे महा विदेहना देशमां,
त्यां सीमंधर तातने केजो एटलडुं केजो एटलडुं जईने केजो के तेडा मोकले
जंबु भरते छे दास तुमारो, ए झंखी रह्यो छे दीनरातो; त्यां कोण छे एने आधारो के तेडा मोकले
वीर प्रभु थया छे सिध्ध, आतमनी घटी छे रिध्ध; नहि आचार्य मुनीना जुथ्थ, के तेडा मोकले
जेम मात विहुणो बाळ, अरहो परहो अथडाय; पछी आकुळ व्याकुळ थाय, के तेडा मोकले
धन्य धन्य विदेहना आतमा, जेणे होंसे सेव्या परमात्मा; हुं भळुं प्रभु ए भातमां, के तेडा मोकले
प्रभु संयम लई रहुं साथे, निज स्वरूप स्थिरतानी गाढे; एवो अवसर झट मुने आपे, के तेडा मोकले ६
प्रभु दास बीजुं नव मागे, एक आतम ईच्छुं तुम साखे; एवी अंतरनी उंडी अभिलाषे, के तेडा मोकले ७
भरतक्षेत्रे भव्यजीवोनी भीड भांगवा माटे भगवाने भोमियो मोकल्यो छे
भेटशो, कोई भेटशो, अरे! कोई भेटशो?

परम पूज्य अध्यात्मयोगी श्री कानजीस्वामीनो शुभ जन्म वि. सं. १९४६ ना वैशाख सुद बीज ने
रविवारना दिवसे काठियावाडना उमराळा गाममां स्थानकवासी जैन संप्रदायमां थयो हतो. तेओश्रीनां
मातुश्रीनुं नाम उजमबाई अने पिताश्रीनुं नाम मोतीचंदभाई हतुं. ज्ञातिए तेओ दशा श्रीमाळी वणिक हता.
बाळवयमां तेओश्रीना विषे कोई जोषीए कह्युं हतुं के आ कोई महापुरुष थशे. बाळपणथी ज तेओश्रीना मुख
पर वैराग्यनी सौम्यता अने नेत्रोमां बुद्धि ने वीर्यनुं तेज देखातुं. तेओश्रीए उमराळानी ज निशाळमां अभ्यास
कर्यो हतो. जोके निशाळमां तेम ज जैनशाळामां तेओश्री प्राय: प्रथम नंबर राखता तोपण निशाळमां अपाता
व्यावहारिक ज्ञानथी तेमना चित्तने संतोष थतो नहीं, अने तेमने ऊंडे ऊंडे एम रह्या करतुं के ‘हुं जेनी शोधमां