धवल टीका थई छे ते हालमां हींदिमां प्रसिध्ध थाय छे, तेना छ भाग छपाईने बहार पडी गया छे. ते उपरांत
श्री जयधवल तथा श्री महाधवल शास्त्रो छे तेमांथी श्री जयधवल छपाई प्रसिध्ध थतुं जाय छे, तेनो पहेलो
भाग छपाईने हमणां ज बहार पड्यो छे.
“दिगंबरना तीव्र वचनोने लीधे कंई रहस्य समजी शकाय छे.” (आवृत्ति पांचमी) पानुं–११५
उपरना शास्त्रमांथी श्री समयसार, आत्मानुशासन गुजरातीमां प्रसिध्ध थया छे अने प्रवचनसार
जैनधर्म कोई व्यक्तिना कथन, पुस्तक, चमत्कार के विशेष व्यक्ति पर निर्भर नथी. ते तो सत्यनो अखंड
करी शकाय नहीं, पदार्थोना स्वरूपनो ते प्रदर्शक छे. त्रिकाळ अबाधित सत्यरूप छे. वस्तुओ अनादि अनंत छे
तेथी तेनुं स्वरूप प्रकाशक तत्त्वज्ञान पण अनादि अनंत छे.
प्रभु दास बीजुं नव मागे, एक आतम ईच्छुं तुम साखे; एवी अंतरनी उंडी अभिलाषे, के तेडा मोकले ७
परम पूज्य अध्यात्मयोगी श्री कानजीस्वामीनो शुभ जन्म वि. सं. १९४६ ना वैशाख सुद बीज ने
मातुश्रीनुं नाम उजमबाई अने पिताश्रीनुं नाम मोतीचंदभाई हतुं. ज्ञातिए तेओ दशा श्रीमाळी वणिक हता.
बाळवयमां तेओश्रीना विषे कोई जोषीए कह्युं हतुं के आ कोई महापुरुष थशे. बाळपणथी ज तेओश्रीना मुख
पर वैराग्यनी सौम्यता अने नेत्रोमां बुद्धि ने वीर्यनुं तेज देखातुं. तेओश्रीए उमराळानी ज निशाळमां अभ्यास
कर्यो हतो. जोके निशाळमां तेम ज जैनशाळामां तेओश्री प्राय: प्रथम नंबर राखता तोपण निशाळमां अपाता
व्यावहारिक ज्ञानथी तेमना चित्तने संतोष थतो नहीं, अने तेमने ऊंडे ऊंडे एम रह्या करतुं के ‘हुं जेनी शोधमां