छे.’ ‘पुरुषार्थ, पुरुषार्थ ने पुरुषार्थ’ ए महाराजश्रीनो जीवनमंत्र छे.
महाराजश्रीना हस्तकमळमां आव्यो. समयसार वांचतां ज तेमना हर्षनो पार न रह्यो. जेनी शोधमां तेओ हता
ते तेमने मळी गयुं. श्री समयसारजीमां अमृतनां सरोवर छलकातां महाराजश्रीना अंतरनयने जोयां. एक पछी
एक गाथा वांचता महाराजश्रीए घुंटडा भरी भरीने ते अमृत पीधुं. ग्रंथाधिराज समयसारजीए महाराजश्री
पर अपूर्व, अलौकिक, अनुपम उपकार कर्यो अने तेमना आत्मानंदनो पार न रह्यो. महाराजश्रीना
अंतर्जीवनमां परम पवित्र परिवर्तन थयुं. भूली पडेली परिणतिए निज घर देख्युं. उपयोग झरणानां वहेण
अमृतमय थयां. जिनेश्वरदेवना सुनंदन गुरुदेवनी ज्ञानकळा हवे अपूर्व रीते खीलवा लागी.
काठियावाडना हजारो माणसोने महाराजश्रीना उपदेश प्रत्ये बहुमान प्रगट्युं. अंतरात्मधर्मनो उद्योत घणो थयो.
जे गाममां महाराजश्रीनुं चातुर्मास होय त्यां बहारगामनां हजारो भाईबेनो दर्शनार्थे जतां अने तेमनी
अमृतवाणीनो लाभ लेतां. महाराजश्री श्वेतांबर संप्रदायमां रह्या होवाथी व्याख्यानमां मुख्यत्वे श्वेतांबर शास्त्रो
वांचता (जो के छेल्ला वर्षोमां समयसारादि पण सभा वच्चे वांचता हता) परंतु ते शास्त्रोमांथी, पोतानुं हृदय
अपूर्व होवाथी, अन्य व्याख्याताओ करतां जुदी ज जातना अपूर्व सिद्धांतो तारवता, विवादना स्थळोने छेडता
ज नहि. गमे ते अधिकार तेओश्री वांचे पण तेमां कहेली हकीकतोने अंतरना भावो साथे मींढवीने तेमांथी एवा
अलौकिक आध्यात्मिक न्यायो काढता के जे क्यांय सांभळवा न मळ्या होय. ‘जे भावे तीर्थंकरनामकर्म बंधाय ते
भाव पण हेय छे........शरीरमां रोमे रोमे तीव्र रोग थवा ते दुःख ज नथी, दुःखनुं स्वरूप जुदुं छे.........व्याख्यान
समता नहि राखुं तो कर्म बंधाशे–एवा भावे समता राखवी ते पण मोक्षमार्ग नथी..........पांच महाव्रत पण
मात्र पुण्यबंधनां कारण छे. ’ आवा हजारो अपूर्व न्यायो महाराजश्री व्याख्यानमां अत्यंत स्पष्ट रीते लोकोने
समजावता. दरेक व्याख्यानमां महाराजश्री सम्यग्दर्शन पर अत्यंत भार मूकता. तेओश्री अनेक वार कहेता के–
‘शरीरनां चामडां उतरडीने खार छांटनार उपर पण क्रोध न कर्यो–
जिज्ञासुने शरण स्थळ क्यां? तत्त्वनी वात क्यां छे?
पूछे कोने पथ पथिक ज्यां आंधळा सर्व पासे.
एवा कंईक प्रभावथी, गगनथी ओ कहान तुं ऊतरे,
जेनो जन्म थतां सहु जगतनां पाखंड पाछां पडे,
जेनो जन्म थतां मुमुक्षु हृदयो उल्लासथी विकसे;
जेना ज्ञानकटाक्षथी उदय ने चैतन्य जूदां पडे,
ईन्द्रो ए जिनसुतना जनमने आनंदथी उजवे.