: वैशाख : २००० आत्मधर्म : १०३ :
क्षमा आपजो.’ आ रीते जेम जेम महाराजश्रीना पवित्र उज्जवळ जीवन तेम ज आध्यात्मिक उपदेश विषे
लोकोमां वात फेलाती गई, तेम तेम वधारेने वधारे लोकोने महाराजश्री प्रत्ये मध्यस्थता थती गई अने घणाने
सांप्रदायिक मोहने कारणे दबाई गयेली भक्ति पुन: प्रगटती गई. मुमुक्षु अने बुद्धिशाळी वर्गनी तो महाराजश्री
प्रत्ये पहेलांंना जेवी ज परम भक्ति रही हती. अनेक मुमुक्षुओना जीवनाधार कानजीस्वामी सोनगढमां जईने
रह्या, तो मुमुक्षुओनां चित्त सोनगढ तरफ खेंचायां, धीमे धीमे मुमुक्षुओनां पूर सोनगढ तरफ वहेवा लाग्यां.
सांप्रदायिक मोह अत्यंत दुर्निवार होवा छतां, सत्ना अर्थी जीवोनी संख्या त्रणे काळे अत्यंत अल्प होवा छतां,
सांप्रदायिक मोह तेम ज लौकिक भयने छोडीने सोनगढ तरफ वहेता सत्संगार्थी जनोनां पूर दिन प्रतिदिन
वेगपूर्वक वधतां ज जाय छे.
परिवर्तन कर्या पछी पू. महाराजश्रीनो मुख्य निवास सोनगढमां ज छे. महाराजश्रीनी हाजरीने लीधे
सोनगढ एक तीर्थधाम जेवुं बनी गयुं छे. बहारगामथी अनेक मुमुक्षु भाईबेनो महाराजश्रीना उपदेशनो लाभ
लेवा सोनगढ आवे छे. दूर देशोथी घणा दिगंबर जैनो, पंडितो, ब्रह्मचारीओ वगेरे पण आवे छे. बहारगामना
माणसोने जमवा तथा ऊतरवा माटे त्यां जैनअतिथिगृह छे. केटलाक भाईओ तथा बेनो त्यां घर करीने कायम
रह्यां छे. केटलाक सत्संगार्थीओ थोडा महिनाओ माटे पण त्यां घर करीने अवारनवार रहे छे. बहारगामना
मुमुक्षुओनां हालमां त्यां चाळीसेक घर छे.
पू. महाराजश्रीए जे मकानमां परिवर्तन कर्युं ते मकान नानुं हतुं, तेथी ज्यारे घणां माणसो थई जतां
त्यारे व्याख्यान वांचवानी अगवड पडती. पर्युषणमां तो बीजे स्थळे व्याख्यान वांचवा जवुं पडतुं. आ रीते
मकानमां माणसोनो समास नहि थतो होवाथी भक्तोए सं. १९९४ मां एक मकान बंधाव्युं अने तेनुं नाम ‘श्री
जैन स्वाध्याय मंदिर’ राख्युं. महाराजश्री हालमां त्यां रहे छे. तेमनी साथे जीवनलालजी महाराज उपरांत बीजा
बे भक्तिवंत साधुओ सत्सगार्थे रह्या छे. त्यां लगभग आखो दिवस स्वाध्याय ज चाल्या करे छे. सवारे तथा
बपोरे धर्मोपदेश अपाय छे. रात्रे धर्मचर्चा चाले छे. धर्मोपदेशमां तथा ते सिवायना वांचनमां त्यां भगवान
कुंदकुंदाचार्यना शास्त्रो. तत्त्वार्थसार, गोमट्टसार षटखंडागम, पंचाध्यायी, पद्मनंदिपंचविंशति, द्रव्यसंग्रह,
मोक्षमार्ग प्रकाशक, श्रीमद् राजचंद्र वगेरे वगेरे पुस्तको वंचाय छे. त्यां आवनार मुमुक्षुनो आखो दिवस धार्मिक
आनंदमां पसार थई जाय छे.
परम पूज्य अध्यात्मयोगी गुरुदेवने समयसारजी प्रत्ये अतिशय भक्ति छे तेथी जे दिवसे स्वाध्याय
मंदिरनुं उद्घाटन थयुं ते ज दिवसे एटले सं. १९९४ ना वैशाख वद ८ ने रविवारना रोज स्वाध्याय मंदिरमां
श्री समयसारजीनी प्रतिष्ठा करवामां आवी छे. श्री समयसारजी प्रतिष्ठाना महोत्सव पर बहार गामथी
लगभग ७०० माणसो आव्या हतां. महाराजश्री समयसारजीने उत्तमोत्तम शास्त्र गणे
पू. गुरुदेवना व्याख्यानमांथी तारवेलुं
१–दरेक द्रव्य उत्पाद, व्यय, धु्रव सहित छे. जो द्रव्यने एकलुं धु्रव मानवामां आवे तो अशुद्ध अवस्थानो
व्यय (नाश) अने शुद्ध अवस्थानी उत्पत्ति केम थशे? वळी जो उत्पाद व्यय मानवामां आवे अने धु्रव न माने
तो पर्याय बदलतां वस्तु त्रिकाळ टकी शकशे नहीं–आ रीते वस्तुमां उत्पाद, व्यय, धु्रव छे ज.
(प्रवचनसार गाथा ९.)
२–निमित्तथी राग नथी, राग करे त्यां निमित्त हाजर होय छे. (समयसार गाथा १३)
३–कार्य जेटलुं करे तेटलुं तेनुं फळ आवे ज; एटले जेटलो पुरुषार्थ करे तेटलुं फळ आवे ज; कोई कर्म तेने
रोकी शकवा समर्थ नथी. (समयसार गाथा–१३)
४–अनादिथी “जाणनारो हुं नहीं–पण–जणाय ते हुं” एवी ऊंधी मान्यता छे तेथी शरीरनी अवस्थाने
पोतानी थती होय तेम माने छे. ते मान्यता अज्ञान ज छे. (समयसार गाथा–१३)
प–परना संयोग वगर एकला आत्मामां जे थाय ते आत्मानो स्वभाव; स्वभाव टळी शके नहीं. पुण्य–
पाप टळी शके छे माटे ते आत्मानो स्वभाव नथी.
जो निमित्तनो संयोग न होय तो एकला आत्मामां विकार थाय नहीं–तेथी एम न मानवुं के निमित्त
शुभाशुभ विकार करावे छे; शुभ अशुभ भावनो कर्ता तो (विकारी) आत्मा पोते ज छे–जे पर वस्तुना लक्षे
विकार करे ते परवस्तुने विकारनुं निमित्त कहेवाय छे. (समयसार गाथा–१३)