एवी छे एम तेओश्री कहे छे. भगवान कुंदकुंदाचार्यनां घणां शास्त्रो पर तेमने अत्यंत प्रेम छे. ‘भगवान
कुंदकुंदाचार्य देवनो अमारा पर घणो उपकार छे, अमे तेमना दासानुदास छीए’ एम तेओश्री घणी वार
भक्तिभीना अंतरथी कहे छे. श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्य महा विदेह क्षेत्रमां सर्वज्ञ वीतराग श्री
सीमंधरभगवानना समवसरणमां गया हता अने त्यां तेओश्री आठ दिवस रह्या हता ए विषे महाराजश्रीने
अणुमात्र शंका नथी. तेओश्री घणी वार पोकार करीने कहे छे: ‘कल्पना करशो नहि, ना कहेशो नहि, ए वात
एम ज छे; मानो तो पण एम ज छे, न मानो तो पण एम ज छे. यथातथ्य वात छे, अक्षरश: सत्य छे,
प्रमाणसिध्ध छे.’ श्रीसीमंधरप्रभु प्रत्ये गुरुदेवने अपार भक्ति छे. कोई कोई वखत सीमंधरनाथना विरहे परम
भक्तिवंत गुरुदेवनां नेत्रोमांथी अश्रुनी धारा वहे छे.
कंताननो समन्वय करवाना प्रयत्न जेवो वृथा छे. दिगंबर जैन धर्म ते ज वास्तविक जैन धर्म छे अने आंतरिक
तेम ज बाह्य दिगंबरता विना कोई जीव मोक्ष पामी शके नहि एम तेमनी द्रढ मान्यता छे. तेओश्रीनी मारफत
समयसार, प्रवचनसार, पंचाध्यायी, मोक्षमार्ग प्रकाशक वगेरे अनेक दिगंबर पुस्तकोनो घणो घणो प्रचार
काठियावाडमां थई रह्यो छे. सोनगढना प्रकाशन खातामांथी गुजराती समयसारनी २००० नकलो छपाई ने
तुरत ज खपी गई. ते सिवाय समयसार गुटको, समयसार हरिगीत, गणेशप्रसाद वर्णीजी नां पत्रो,
अनुभवप्रकाश वगेरे घणां पुस्तको त्यां छपायां अने काठियावाडमां फेलायां. ते उपरांत आत्मसिद्धिशास्त्रनी
हजारो प्रतो त्यांथी प्रकाशित थई प्रचार पामी छे. गुजरात–काठियावाडना अध्यात्मप्रेमी मुमुक्षुओने गुजराती
भाषामां आध्यात्मिक साहित्य सुलभ थयुं छे. काठियावाडमां हजारो मुमुक्षुओ तेनो अभ्यास करता थया छे.
केटलाक गामोमां पांच दश पंदर मुमुक्षुओ भेगा थईने गुरुदेव पासेथी ग्रहण करेला रहस्य अनुसार
समयसारादि उत्तम शास्त्रोनुं नियमित वांचन–मनन करे छे. आ रीते परम पूज्य गुरुदेवनी कृपाथी परम
पवित्र श्रुतामृतना धोरिया काठियावाडना गामे गाममां वहेवा–लाग्या छे. अनेक सुपात्र जीवो ए जीवनोदकनुं
पान करी कृतार्थ थाय छे.
नथी, तो पछी देहादिनी क्रिया आत्माना हाथमां क्यांथी होय?
कर्तृत्व छोडवानो महा पुरुषार्थ दरेक जीवे करवानो छे. ते कर्तृत्वबुद्धि ज्ञान विना छूटशे नहि. माटे तमे ज्ञान
करो.’ –आ तेओ श्रीना उपदेशनो प्रधान सूर छे. ज्यारे कोई श्रोताओ कहे छे के ‘प्रभु! आप तो मेट्रीकनी ने
एम. ए. नी वात करो छो; अमे हजु एकडियामां छीए. अमने एकडियानी वात संभळावो,’ त्यारे गुरुदेव कहे
छे: ‘आ जैन धर्मनो एकडो ज छे. समजण करवी ते ज शरूआत छे. मेट्रीकनी ने एम. ए. नी एटले के
निर्ग्रंथदशानी ने वीतरागतानी वातो तो आघी छे. आ समजण कर्ये ज छुटको छे. एक भवे, बे भवे, पांच भवे
के अनंत भवे आ समज्ये ज मोक्षमार्गनी शरूआत थवानी छे. ’
खीली. अमृतकळशमां जेम अमृत घोळातां होय तेम गुरुदेवना परम पवित्र अमृतकळश स्वरूप आत्मामां
तीर्थंकरदेवनां वचनामृतो खूब घोळायां घुंटायां. ए घुंटायलां अमृत कृपाळुदेव अनेक मुमुक्षुओने पीरसे छे ने
न्याल करे छे. समयसार, प्रवचनसार वगेरे ग्रंथो पर प्रवचन करतां गुरुदेवना शब्दे शब्दे एटली गहनता,
सूक्ष्मता अने नवीनता नीकळे छे के ते श्रोताजनोना उपयोगने पण सूक्ष्म बनावे छे अने विद्वानोने
आश्चर्यचकित