Atmadharma magazine - Ank 006
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: १०४ : आत्मधर्म : वैशाख : २०००
छे. समयसारजीनी वात करतां पण तेमने अति उल्लास आवी जाय छे. समयसारजीनी प्रत्येक गाथा मोक्ष आपे
एवी छे एम तेओश्री कहे छे. भगवान कुंदकुंदाचार्यनां घणां शास्त्रो पर तेमने अत्यंत प्रेम छे. ‘भगवान
कुंदकुंदाचार्य देवनो अमारा पर घणो उपकार छे, अमे तेमना दासानुदास छीए’ एम तेओश्री घणी वार
भक्तिभीना अंतरथी कहे छे. श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्य महा विदेह क्षेत्रमां सर्वज्ञ वीतराग श्री
सीमंधरभगवानना समवसरणमां गया हता अने त्यां तेओश्री आठ दिवस रह्या हता ए विषे महाराजश्रीने
अणुमात्र शंका नथी. तेओश्री घणी वार पोकार करीने कहे छे: ‘कल्पना करशो नहि, ना कहेशो नहि, ए वात
एम ज छे; मानो तो पण एम ज छे, न मानो तो पण एम ज छे. यथातथ्य वात छे, अक्षरश: सत्य छे,
प्रमाणसिध्ध छे.’ श्रीसीमंधरप्रभु प्रत्ये गुरुदेवने अपार भक्ति छे. कोई कोई वखत सीमंधरनाथना विरहे परम
भक्तिवंत गुरुदेवनां नेत्रोमांथी अश्रुनी धारा वहे छे.
वीतरागना परम भक्त गुरुदेव कहे छे–‘जैन धर्म ए कोई वाडो नथी. ए तो विश्वधर्म छे. जैन धर्मनो
मेळ अन्य कोई धर्म साथे छे ज नहि. जैन धर्मनो ने अन्य धर्मोनो समन्वय करवानो प्रयत्न रेशमनो ने
कंताननो समन्वय करवाना प्रयत्न जेवो वृथा छे. दिगंबर जैन धर्म ते ज वास्तविक जैन धर्म छे अने आंतरिक
तेम ज बाह्य दिगंबरता विना कोई जीव मोक्ष पामी शके नहि एम तेमनी द्रढ मान्यता छे. तेओश्रीनी मारफत
समयसार, प्रवचनसार, पंचाध्यायी, मोक्षमार्ग प्रकाशक वगेरे अनेक दिगंबर पुस्तकोनो घणो घणो प्रचार
काठियावाडमां थई रह्यो छे. सोनगढना प्रकाशन खातामांथी गुजराती समयसारनी २००० नकलो छपाई ने
तुरत ज खपी गई. ते सिवाय समयसार गुटको, समयसार हरिगीत, गणेशप्रसाद वर्णीजी नां पत्रो,
अनुभवप्रकाश वगेरे घणां पुस्तको त्यां छपायां अने काठियावाडमां फेलायां. ते उपरांत आत्मसिद्धिशास्त्रनी
हजारो प्रतो त्यांथी प्रकाशित थई प्रचार पामी छे. गुजरात–काठियावाडना अध्यात्मप्रेमी मुमुक्षुओने गुजराती
भाषामां आध्यात्मिक साहित्य सुलभ थयुं छे. काठियावाडमां हजारो मुमुक्षुओ तेनो अभ्यास करता थया छे.
केटलाक गामोमां पांच दश पंदर मुमुक्षुओ भेगा थईने गुरुदेव पासेथी ग्रहण करेला रहस्य अनुसार
समयसारादि उत्तम शास्त्रोनुं नियमित वांचन–मनन करे छे. आ रीते परम पूज्य गुरुदेवनी कृपाथी परम
पवित्र श्रुतामृतना धोरिया काठियावाडना गामे गाममां वहेवा–लाग्या छे. अनेक सुपात्र जीवो ए जीवनोदकनुं
पान करी कृतार्थ थाय छे.
परम पूज्य महाराजश्रीनुं मुख्य वजन समजण पर छे. ‘तमे समजो; समज्या विना बधुं नकामुं छे.’
एम तेओश्री वारंवार कहे छे. ‘कोई आत्म–ज्ञानी के अज्ञानी–एक परमाणुमात्रने हलाववानुं सामर्थ्य धरावतो
नथी, तो पछी देहादिनी क्रिया आत्माना हाथमां क्यांथी होय?
ज्ञानी ने अज्ञानीमां आकाश–पाताळना अंतर जेवडो महान तफावत छे, अने ते ए छे के ‘अज्ञानी
परद्रव्यनो तथा रागद्वेषनो कर्ता थाय छे अने ज्ञानी पोताने शुद्ध अनुभवतो थको तेमनो कर्ता थतो नथी. ते
कर्तृत्व छोडवानो महा पुरुषार्थ दरेक जीवे करवानो छे. ते कर्तृत्वबुद्धि ज्ञान विना छूटशे नहि. माटे तमे ज्ञान
करो.’ –आ तेओ श्रीना उपदेशनो प्रधान सूर छे. ज्यारे कोई श्रोताओ कहे छे के ‘प्रभु! आप तो मेट्रीकनी ने
एम. ए. नी वात करो छो; अमे हजु एकडियामां छीए. अमने एकडियानी वात संभळावो,’ त्यारे गुरुदेव कहे
छे: ‘आ जैन धर्मनो एकडो ज छे. समजण करवी ते ज शरूआत छे. मेट्रीकनी ने एम. ए. नी एटले के
निर्ग्रंथदशानी ने वीतरागतानी वातो तो आघी छे. आ समजण कर्ये ज छुटको छे. एक भवे, बे भवे, पांच भवे
के अनंत भवे आ समज्ये ज मोक्षमार्गनी शरूआत थवानी छे. ’
परम पूज्य महाराजश्रीना ज्ञानने सम्यक्पणानी महोर तो घणा वखतथी पडी हती. ते सम्यग्ज्ञान
सोनगढना विशेष निवृत्तिवाळा स्थळमां अद्भुत सूक्ष्मताने पाम्युं; नवी नवी ज्ञानशैली सोनगढमां खूब
खीली. अमृतकळशमां जेम अमृत घोळातां होय तेम गुरुदेवना परम पवित्र अमृतकळश स्वरूप आत्मामां
तीर्थंकरदेवनां वचनामृतो खूब घोळायां घुंटायां. ए घुंटायलां अमृत कृपाळुदेव अनेक मुमुक्षुओने पीरसे छे ने
न्याल करे छे. समयसार, प्रवचनसार वगेरे ग्रंथो पर प्रवचन करतां गुरुदेवना शब्दे शब्दे एटली गहनता,
सूक्ष्मता अने नवीनता नीकळे छे के ते श्रोताजनोना उपयोगने पण सूक्ष्म बनावे छे अने विद्वानोने
आश्चर्यचकित