Atmadharma magazine - Ank 006
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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ज्ञान सम्यक् क्यारे थयुं?
पु. श्री सद्गुरुदेवे ता. २४ – २ – ४ नी रात्रे कहेला अपुर्व न्यायो
आत्मा वस्तु छे. तेमां अनंत गुणो छे; तेमां दर्शननो विषय अभेद–निर्विकल्प छे. ज्ञान विशेष अर्थात्
स्व–परने जाणनारूं छे. शास्त्रमां ज्यारे ज्ञाननी मुख्यताथी अधिकार चालतो होय त्यारे भेदथी कथन आवे. दर्शन
अभेद छे एटले के दर्शन पोताने (दर्शनगुणने) के परने जाणतुं नथी. दर्शननो विषय अखंड द्रव्य छे. एक
समयमां बधा गुणोनो पिंड जे द्रव्य छे ते दर्शननो विषय छे, एक समयना दर्शनना विषयमां आखुं द्रव्य छे.
ज्ञाननी पर्यायमां दर्शनने अने दर्शनना विषयने (अभेद द्रव्यने) जाणतां तेमां (ज्ञाननी पर्यायमां)
आखुं द्रव्य अने बधा संयोगो जणाय छे. ज्ञान अनंत गुणोने अने पोताने जाणे छे तेथी ज्ञाननुं स्व–पर
प्रकाशक सामर्थ्य छे. ज्ञानने नक्की करतां तेनी एक समयनी पर्यायमां आखुं द्रव्य अने द्रव्यना दर्शन वगेरे
अनंत–गुणो आवी जाय छे–जणाय छे.
ज्ञानना एक समयमां पर्याय अने पूर्ण द्रव्य आवी जाय छे; जेवुं केवळज्ञानमां जणाय तेवुं ज ज्ञाननी
एक समयनी पर्यायमां जणाय छे. ज्ञाननी लोक–अलोकने जाणवानी शक्तिने पण एक समयनी ज्ञाननी पर्याये
नक्की करी छे.
एक ज्ञाननी पर्यायमां वस्तुपणे तो कृतकृत्य छुं [पुरुषार्थनी नबळाईना कारणे पर्यायमां क्रम पडे ते
वात गौण छे.] एम नक्की करतुं ज्ञान ते स्व–पर प्रकाशक छे.
दर्शनना स्वभावने नक्की करतुं ज्ञान ते साचुं ज्ञान छे. ज्यां दर्शन प्रधानताथी वर्णन चालतुं होय त्यां ते
पण ज्ञाननो ज विषय छे, कारणके दर्शन पोते पोताथी जणातुं नथी, पण दर्शनने जाणनारुं ज्ञान छे.
दर्शननो विषय नक्की करे ते ज्ञान सम्यक् छे; दर्शननो विषय अखंड छे; ते निमित्त, पर्याय के भेदने
स्वीकारतुं नथी. अने जो ज्ञानमां निमित्तने न माने तो ज्ञाननी भूल थाय छे; छतां पण ज्ञान तो दर्शनने जाणे
छे अने दर्शनमां निमित्त पर्याय के भेदनो नकार छे एम पण जाणे छे. आ रीते बधा गुणोथी वस्तुने नक्की करे
ते ज्ञान सम्यक् छे.
आत्मानुं लक्षण चेतना; चेतनामां बे भेद–१–दर्शन अने २–ज्ञान. (तेने ग्रहण करवुं एकाग्र थवुं– ते
चारित्र छे.)
दर्शनना विषये अभेद वस्तु लक्षमां लीधी छे. अने ज्ञाने दर्शनना आखा विषयने नक्की कर्यो छे, ज्ञाने
दर्शन गुणने नक्की करतां तेमां दर्शनना विषयने पण नक्की कर्यो छे.
‘आ रीते ज्ञाने दर्शनने जाण्युं अने दर्शनना विषयमां आखुं द्रव्य आव्युं छे तेथी ज्ञानमां बधुं आवी
जाय छे. ’
पर्याय के निमित्त ते ज्ञानमां पण गौण थाय छे. पर्याय खीलवानी छे के खीली छे एवा भेदने ज्ञान जाणे
छे, दर्शन तो मात्र ‘निर्विकल्प अस्ति’ छे.
दर्शन जे उपयोग रूप गुण छे तेनो सामान्य विषय छे. तेने [दर्शनने] पण ज्ञाने नक्की कर्युं छे, अने
तेना अभेद विषयने पण ज्ञाने नक्की कर्युं छे. ज्ञान सविकल्प छे.–एटले कांई राग वाळुं नथी, पण तेनुं स्व–
परने जाणवानुं सामर्थ्य छे. ज्ञानमां दर्शनने नक्की करतां दर्शननो अभेद विषय पण नक्की थई जाय छे.
दर्शनना विषयमां तो शुद्ध पर्याय थवी ते छे ज नहीं अने ज्ञानना विषयमां पण पर्याय गौण छे.
आत्मामां जे अनंत गुणो छे, ते बधाने जाणनार तो ज्ञान ज छे. बीजा बधा तो अस्तिरूपे ज छे. ज्ञाने जे
जाण्युं तेमां आखी वस्तु एकज क्षणमां आवी जाय छे. वर्तमान ऊणी पर्याय छे तेने पण ज्ञान जाणे छे अने
ज्ञाननी एक समयनी पर्याय परिपूर्ण द्रव्यने पण जाणे छे; आ रीते ज्ञान द्रव्य–पर्याय बन्नेने जेम छे तेम जाणे छे.
जे समये ज्ञान सम्यक्रूपे परिणम्युं त्यारे पण निमित्त अने रागनुं ज्ञान करवानुं तेनुं सामर्थ्य छे.
(अनुसंधान पान १०८–छेल्लुं)