: वैशाख : २००० आत्मधर्म : ८५ :
त्यां सम्यग्दर्शन सहित सम्यग्द्रष्टि ना आठ आचारनुं सेवन कर्युं. स्वर्गनां भोगने सडेल तरणां समान गणता,
ए रीते आयुष्य पूर्ण थतां समाधिमरण कर्युं.
तेमना जन्म पहेलां छ मास रत्नो वरसाद
अच्युतस्वर्गना ईन्द्र तरीके भगवाननुं छ मास आयुष्य रह्युं त्यारे सौधर्म स्वर्गना ईन्द्रे कुबेरने जणाव्युं
के भरतक्षेत्रमां सिद्धार्थ राजाने घेर कुंडलपुरमां अंतिम जिनेश श्रीवर्धमान भगवाननो जन्म थवानो छे. माटे
नगरनी शोभा करी अने रत्न वरसावो. कुबेरे ते हुकम माथे उठावी तेनो अमल कर्यो. ए प्रमाणे रत्ननो
वरसाद वरस्यो.
माताजीनां गर्भमां आवुं
छ मास पूरा थतां एकरात्रे पाछले पहोरे अशाड सुद ६ ना रोज जगप्रसिध्ध सोळ स्वप्ना भगवाननां
माताजी त्रिसला देवीने आव्यां. त्यारपछी तेओए सिद्धार्थ राजा पासे आवी पोताने सोळ स्वप्ना आव्यानुं
जणाव्युं अने तेनुं फळ राजाजीने पूछयुं, ते उपरथी राजाजीए दरेक स्वप्नानुं फळ कह्युं, अने जणाव्युं के तमारा
गर्भमां अंतिम जिन आव्या छे, ए सांभळी हर्ष पामी माताजी विदाय थयां. भगवाननो गर्भकल्याणक
उजववा देवो कुंडलपुर आव्या–भगवाननी मातानी सेवामां ५६ देवीओ रह्यां, तेओ भगवाननी माताने धर्म
संबंधी अनेक प्रश्नो अने वार्ताओ करती.
जन्म कल्यणक
चैत्रसुद १३ने दीवसे भगवाननो जन्म थयो. भगवाननुं शरीर दीपायमान तथा उद्योतमान होय छे.
तेमना जन्म वखते आखा विश्वमां प्रकाश थाय छे, अने नारकीना जीव पण थोडा वखत माटे साता अनुभवे
छे. ते वखते चारे प्रकारना देवोना आसन कंप्या अने देवलोकनो अनाहत घंटनो अवाज थयो. सौधर्मनां ईन्द्र
वगेरे देवो अने देवीओ भगवाननो जन्म उजववा माटे आव्यां. भगवानने मेरूपर्वत उपर लई जई जन्म
अभिषेक कर्यो, त्यांथी पाछा आवी भगवानने तेमना माताजी पासे मूकी तेमना माता पितानुं सन्मान करी
सौधर्मईन्द्रे तांडव नृत्य कर्युं.
• • • अजीवन बह्मचयवत • • •
वींछीआमां बीजा त्रण मुमुक्षुभाईओ–शेठ डायालाल करशनजी, शाह भाईचंद कसळचंद,
अने वाणंद घेलाभाई हावा–ए प्रमाणे त्रणेए सां. २००० ना चैत्र सुद २ रविवार [ता. २६–३–
४४] ना रोज सवारे सजोडे आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत परम पूज्य श्री सद्गुरुदेव पासे ग्रहण कर्युं छे.
केटलाक खुलासा
आ बाबतना अपरिचित केटलाक जीवोए आ कथन सांभळ्युं न होय तेथी समजवा माटे विशेष
स्पष्टतानी जरूर छे. आ क्षेत्रमां हाल जे जीवो छे तेओमां लौकिक पुण्यवाळा केटलाक होय छे, तेओए पूर्व
भवोमां आत्मानुं दुर्लक्ष करी कंईक मंदकषाय कर्यो होवाथी तेमने हलका पुण्यना उदयना फळ तरीके सगवडवाळा
बाह्य संयोगो आजे पण जोवामां आवे छे. धनवानोनी पत्नीओ के राणीओना गर्भनी रक्षा करवा माटे
नोकरो, दासीओ, दवा, वैदो वगेरेनी सगवडो जोवामां आवे छे. बाळकना जन्म वखते पण अनेक प्रकारनी
सगवडो जोवामां आवे छे.
साधारण स्थितिना पुरुषने त्यां पुत्र जन्मना अवसरथी शरू करतां एक चक्रवर्तीने त्यां पुत्र जन्मनो
उत्सव उत्तरोत्तर वधवा छतां पण परिपूर्णताने पामतो नथी, जेने त्यां तीर्थंकर पुत्रनो जन्म थाय तेने त्यां ते
उत्सव परिपूर्ण थाय छे.
तीर्थंकरनो जन्ममात्र मनुष्योनेज आनंदित करे छे एम नथी, पण त्रणे लोकनां प्राणीओने (मनुष्यो,
तिर्यंच–देव तथा नारकी सर्वेने) आनंदित करे छे. साथे साथे तेनो जन्म कल्याणक महोत्सव करवा माटे
मोटामोटा चक्रवर्ती अने ईन्द्र वगेरे सर्वे परिवार सहित आवे छे, अने पोताने धन्य माने छे; कारण के
तीर्थंकरनो जन्म संसारना प्राणीओनो उद्धारक निवडे छे. आ काळना चोवीश तीर्थंकरोमांथी चोवीशमा तीर्थंकर
भगवान महावीर स्वामी छे. तेमनो जन्म थतां त्रणेलोकमां शांतिनुं साम्राज्य छवाई गयुं हतुं. जाति विरोधी
प्राणी पण क्षणभरने माटे शांतिमां ओतप्रोत थया हतां.
पूर्वदिशा जेम सूर्यने जन्म आपी अंधकारनो नाश करे छे तेथी पण अन्य प्रकारे घणो ज अधिक, कुंडलपुरना
महाराजा सिध्धार्थनी महाराणी त्रिसला देवी (प्रियकारिणी) ए भगवान महावीरने जन्म आपी संसारना