Atmadharma magazine - Ank 006
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: ८६ : आत्मधर्म : वैशाख : २०००
महान अज्ञानांधकारनो नाश कराव्यो हतो, तेना जेवो नाश अनंत सूर्योद्वारा त्रणे काळमां थवो सर्वथा अशक्य छे.
भगवान महावीर स्वामीना जन्म कल्याणकना महोत्सवनुं वर्णन बीजा संसारी प्राणीओना
जन्मोत्सवथी सर्वथा लोकोत्तर अनुपम अने असाधारण छे अने प्राणी मात्रना कल्याणनुं ते कारण छे.
सम्यग्द्रष्टिने एटलेके आत्म सन्मुख भाव राखनार जीवने ज्यारे पोताना स्वरूपमां स्थिर रही शके नहि
अने धर्मानुरागमां कर्तृत्वभाव विना जोडावानुं थाय छे त्यारे कोईने तीर्थंकर नाम पदनी पुण्य प्रकृतिनो बंध
अवांछितवृत्तिथी थाय छे, जगतमां ए सर्वोत्तम पुण्य छे. पुण्यनुं कोई पद तेनाथी उंचुं नथी. तेवा पुण्यवाळा
जीवना माता पिता पण उंचा पुण्यवाळा होय छे. तेवा पुण्यवाळा जीवना गर्भकल्याणक जन्म कल्याणक सर्वोत्कृष्ट
रीते उजवाय ते न्यायसर छे. सौधर्मना ईन्द्र तथा बीजां घणा देवो सम्यग्द्रष्टि होय छे. तेओ भरतखंडमां
केवळज्ञाननो सूर्य हवे थोडावखतमां उगवानो छे एम जाणतां तेमने धर्म रुचि होवाथी, आवा महान धर्मीजीवना
कल्याणको पोताना लाभ माटे उजवे छे. सम्यग्द्रष्टि पूर्ण वीतराग न थाय त्यांसुधी तेने सत् देव–सत्गुरु अने
सत्धर्म तरफ आवो राग आव्या विना रहे नहि, अने ते रागथी पोताने धर्म थशे एम कदी माने नहि.
• • • नश्चय व्यवहरन स्वरूप • • •
ोर् निश्चय–स्वावलंबी भाव व्यवहार–परावलंबी भाव
मुमुक्षुओ विचारो के–बेमांथी कयो भाव आत्माने सुखनुं कारण थाय––एकज उत्तर होई शके के
परावलंबी भावथी आत्माने लाभ थाय नहि, अने स्वावलंबीथी आत्माने सुख थया वगर रहे नहि.
पुर्व भवना ज्ञानोनुं भगवाने चालु रहेवुं
भगवान तेमनी माताना गर्भमां आवे त्यारे तेओ सम्यग्द्रष्टि होय छे, अने तेमने सुमति, सुश्रुत अने
सुअवधि एम त्रण ज्ञानो होय छे, अने जन्मे त्यारे पण ते त्रणे ज्ञानो सहित जन्मे छे.
भगवाना शरीरनी रचना
भगवानना शरीर उपर १००८ उत्तम चिह्नो होय छे. तेमना शरीरमां बाळक, तरुण के वृद्धपणुं होतुं
नथी. बाळकनी माफक अज्ञानता, युवाननी माफक मदान्धपणुं अने वृद्धनी माफक जिर्ण देह होता नथी; आखी
जिंदगी तेमना शरीरनुं अत्यंत सुंदररूप अने अतुल बळ रहे छे. तेमनुं शरीर पसीनो, लाळ वगेरे रहित होय
छे. जो के केवळज्ञान पामतां सुधी अशनपान होय छे तो पण जन्मथी निहार होतो नथी. तेमनी माताने
ऋतुश्राव होतो नथी.
भगवाना जन्मना दश अतिशयो
भगवानने चोत्रीश अतिशयो होय छे, तेमां दश जन्मना अतिशयो छे, दश केवळज्ञानथी उपजता
अतिशयो होय छे, अने चौद देवकृत होय छे. तेमांथी जन्मना दश अतिशयोनां नाम नीचे प्रमाणे छे.
(१) मळमूत्रनो अभाव. (२) पसीनानो अभाव (३) धोळुं लोही (४) समचतुरस्र संस्थान, (५)
वज्र रूषभनाराच संहनन (६) सुंदर रूप (७) सुगंधी शरीर (८) सुलक्षणता (९) अतुलबळ (१०)
हितमिष्टवचन.
सम्यग्दर्शननी भूमिकामां तीर्थंकर कर्म प्रकृति बंधाय एवो भाव आवे छे, ते शुभभाव छे. तेने
सम्यग्द्रष्टि पोतानां गुणनी हानि माने छे, पुण्यथी धर्म थाय एम माननारने सम्यग्दर्शन प्रगटे नहि, ए
मुमुक्षुओए लक्षमां राखवानी जरूर छे. पुण्यनुं आ कथन पुण्यनुं स्वरूप समजवा माटे शास्त्रोमां आप्युं छे.
आत्माने तेथी लाभ थाय छे एम मनाववा माटे आप्युं नथी.
भगवानी बाल्यावस्था
तीर्थंकर पोताना काळमां सर्वोकृष्ट होय छे, तेओ गृहस्थ अवस्थामां ते पदना गृहस्थोमां सर्वोत्कृष्ट होय
छे; तेमनो पुरुषार्थ हंमेशा आत्मा तरफ वळतो होय छे. आठमे वरसे तेमणे परावलंबन वृत्ति पुरुषार्थथी
एटली तोडी होय छे के तेओने पंचम गुणस्थाननी शुद्धि प्रगटे छे; अने शुभभावमां बारव्रतनुं ग्रहण प्रगटे छे.
तेमने सम्यग्ज्ञान पूर्वकनो वैराग्य होय छे. भगवान शुद्धने लक्षे धर्म भावनामां तल्लीन रहेता,