Atmadharma magazine - Ank 006
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २००० आत्मधर्म : ८७ :
तेथी तेमनो राग अतिमंद थयो हतो.
भगवानो सम्यग्ज्ञान पूर्वकनो त्यागभाव.
कुमार काळथी ज भगवान विलासिपणाथी दूर हतां. अनित्यादि बार अनुप्रेक्षानुं सतत चिंतवन करता.
तेमनां पिता माता द्वारा राजा जितशत्रुनी कन्या जशोदानी साथे भगवाननुं सगपण करवानो विचार जाण्यो
त्यारे भगवाने तेम करवानी ना पाडी. ते वखते तेमनी उमर ३० वर्षनी हती. भगवाने अवधिज्ञान वडे जोयुं
तो पोतानुं आयुष्य ४२ वर्षनुं बाकी छे एम मालुम पड्युं. अने तेथी भाव साधुपणुं तुरत प्रगटाववा निर्णय
कर्यो. भगवानने ३० में वर्षे क्षायिक सम्यग्दर्शन प्रगट्युं. (–पुराण पानुं १३४.)
भगवानुं तप (दिक्षा) कल्याणक
ब्रह्मस्वर्गमां लोकांतिक देवो होय छे. तेओ एकावतारी होय छे. भगवाननी पर्यायनी शुद्धता,
साधुपणानी लायकात माटेनी तैयारी होय छे, त्यारे तेओ भगवान पासे आवी दिक्षा ग्रहण करी केवळज्ञान रूप
सूर्यनो प्रकाश करवा विनवे छे. ते रीते भगवान महावीरनी पासे लोकांतिक देवो संबोधन माटे आव्या
भगवाने दिक्षा ग्रहण करवा निश्चय कर्यो तेथी चारे प्रकारना देवोने आनंद थतां ते उत्सव उजववा माटे आ क्षेत्रे
आव्या, अने भगवाने मागसर वदी १० ना रोज साधुपणुं ग्रहण कर्युं. अने केश लुंचन कर्युं अने पछी साधुपणे
विचरवा लाग्या.
भगवानो पहेलो आहार
सर्वथी पहेलो आहार फूलनगरना राजा फूले भगवानने हस्तपात्रमां आप्यो हतो. जे जीवने सातमुं
गुणस्थान प्रगटी, छठ्ठे अने सातमे गुणस्थाने हजारो वार आवे छे तेओ साचा साधुओ कहेवाय छे. तेओने स्पर्श
ईन्द्रिय उपरनी आसक्ति होती नथी, तेथी शरीरने ढांकवानी वृत्ति आवती नथी त्यां निष्परिग्रह दशा होवाथी
यथाजात स्वरूपमां भगवान अने दरेक भाव साधु होय छे, ते कारणे भगवानने वस्त्र के पात्र होई शके नहि.
चन्दन सत
चेटकराजाने सात दीकरी हती तेमां एक भगवाननी माता त्रिसला बीजी जयेष्ठाने रुद्र वेरे अने त्रीजी
चेलणा ते श्रेणीक राजा वेरे हती. चोथी मशक नामनी हती; पांचमी चंदना हती; ते घणी रूपवान हती. तेने
रूपाळी जाणी कोई वनचर लई गयो अने कौशम्बी नगरीमां वृषभसेनने त्यां आपी. तेने एक सुभद्रा नामे
स्त्री हती, तेने झेर (द्वेष) आवतां चन्दनाने बंधनमां राखी दुःख देवा लागी. त्यां पण चंदना धर्म ध्यानमां
रहेती. एकवार एम बन्युं के भगवान आहारने माटे गाममां पधार्या. त्यां प्रभुना दर्शन चन्दनाने थतां,
पुण्यना उदये शरीरना बधां बंधन त्रुटी गयां, चन्दनानो तमाम शोक चाल्यो गयो अने चित्तमां परम उल्लास
आव्यो, अने हाथ जोडी मस्तक नमावी भगवानने वंदना करी; अने विधि पूर्वक भक्ति भावथी पडगाहन कर्युं,
(प्रभु– अहीं आहार माटे पधारो एम त्रण वखत कह्युं.) त्यां जे छाश अने कोदरानो आहार हतो ते खीरनां
चोखापणे थई गयो, अने माटी पात्र हतुं, ते सोनानुं थयुं. भगवाननी नव प्रकारे विधिपूर्वक तेणीए पूजा करी
पछी प्रासुक आहार प्रभुने आप्यो. तेथी स्वर्ग लोकमां देवोने आश्चर्य लाग्युं अने तेओए रत्नादिकोनी वर्षा
करी. चंदनाए आगळ जतां अर्जिकापद धारण कर्युं.
भगवाने रुद्रे आपेलो उपसर्ग
भगवानने घणां उपसर्गो आवेल पण भगवान डग्या नहि. एक–वखत भगवान छद्मस्थ दशामां
विहार करतां करतां नगरमां पधार्या! त्यां स्मशानमां रुद्रे भगवानने सौथी मोटो उपसर्ग कर्यो. अहीं खास
ध्यान राखवुं जोईए के जे जीवने गुण प्रगट्यो होय ते बीजाने जणायज एम न बने, बीजाने गुण न पण
जणाय. तेनी चौभंगी नीचे प्रमाणे छे:–
• • • नश्चय व्यवहरन स्वरूप • • •
ोर् निश्चय–स्वाश्रितभाव. व्यवहार–पराश्रितभाव.
मुमुक्षुओ विचारो के ए बेमांथी क्यो भाव आत्माने लाभ करे. तेनो एकज जवाब आवशे के
स्वाश्रितभाव प्रगटे अने पराश्रित भाव टळे ते ज लाभदायक होई शके.