त्यारे भगवाने तेम करवानी ना पाडी. ते वखते तेमनी उमर ३० वर्षनी हती. भगवाने अवधिज्ञान वडे जोयुं
तो पोतानुं आयुष्य ४२ वर्षनुं बाकी छे एम मालुम पड्युं. अने तेथी भाव साधुपणुं तुरत प्रगटाववा निर्णय
कर्यो. भगवानने ३० में वर्षे क्षायिक सम्यग्दर्शन प्रगट्युं. (–पुराण पानुं १३४.)
सूर्यनो प्रकाश करवा विनवे छे. ते रीते भगवान महावीरनी पासे लोकांतिक देवो संबोधन माटे आव्या
भगवाने दिक्षा ग्रहण करवा निश्चय कर्यो तेथी चारे प्रकारना देवोने आनंद थतां ते उत्सव उजववा माटे आ क्षेत्रे
आव्या, अने भगवाने मागसर वदी १० ना रोज साधुपणुं ग्रहण कर्युं. अने केश लुंचन कर्युं अने पछी साधुपणे
विचरवा लाग्या.
ईन्द्रिय उपरनी आसक्ति होती नथी, तेथी शरीरने ढांकवानी वृत्ति आवती नथी त्यां निष्परिग्रह दशा होवाथी
यथाजात स्वरूपमां भगवान अने दरेक भाव साधु होय छे, ते कारणे भगवानने वस्त्र के पात्र होई शके नहि.
रूपाळी जाणी कोई वनचर लई गयो अने कौशम्बी नगरीमां वृषभसेनने त्यां आपी. तेने एक सुभद्रा नामे
स्त्री हती, तेने झेर (द्वेष) आवतां चन्दनाने बंधनमां राखी दुःख देवा लागी. त्यां पण चंदना धर्म ध्यानमां
रहेती. एकवार एम बन्युं के भगवान आहारने माटे गाममां पधार्या. त्यां प्रभुना दर्शन चन्दनाने थतां,
पुण्यना उदये शरीरना बधां बंधन त्रुटी गयां, चन्दनानो तमाम शोक चाल्यो गयो अने चित्तमां परम उल्लास
(प्रभु– अहीं आहार माटे पधारो एम त्रण वखत कह्युं.) त्यां जे छाश अने कोदरानो आहार हतो ते खीरनां
चोखापणे थई गयो, अने माटी पात्र हतुं, ते सोनानुं थयुं. भगवाननी नव प्रकारे विधिपूर्वक तेणीए पूजा करी
पछी प्रासुक आहार प्रभुने आप्यो. तेथी स्वर्ग लोकमां देवोने आश्चर्य लाग्युं अने तेओए रत्नादिकोनी वर्षा
करी. चंदनाए आगळ जतां अर्जिकापद धारण कर्युं.
ध्यान राखवुं जोईए के जे जीवने गुण प्रगट्यो होय ते बीजाने जणायज एम न बने, बीजाने गुण न पण
जणाय. तेनी चौभंगी नीचे प्रमाणे छे:–