जवाब–स्वतंत्रताथी ज
(१) एक जीव गुणी होय ते बीजाने जणाय. (२) एक जीव गुणी होय ते बीजाने न जणाय. (३)
चौभंगीने घणां लोको हाल–एक बाजु मूकी दे छे. उदारताना संबधमां पण आ चौभंगी ज लागु पडे छे. एथी
विरुद्ध मानवुं ते महान दोष छे. आ काळमां आ क्षेत्रे जे मनुष्यो हता तेमां सर्वोत्कृष्ट गुणी भगवान महावीर
हतां छतां रुद्रने तेम न भास्युं; अने भगवान उज्जैन नगरीना स्मशानमां ध्यानमां बेठा हता, त्यां सात्यिक
अंतिम रुद्रे प्रभुने दीठा अने ‘दुष्ट छे’ एम जाणी ते क्षणे ज उपसर्ग कर्यो, पोतानी बळविद्यानो आरंभ कर्यो,
अति विकराळ स्वरूप धारण कयुं, क्षणमां स्थुळ क्षणमां सूक्ष्म थवा मांडयो. क्षणमां गाय, क्षणमां रोवे, नख अने
दांत घणां वधारे, मोढामांथी जवाला काढे पण भगवान अडोल रह्या; त्यारे भयानक सिंहनुं रूप धारण कर्युं,
जोरदार गर्जना करवा लाग्यो. पोतानां हाथने विकराळ शस्त्र बनाववा लाग्यो, वळी फणीन्द्रनागनुं रूप करी
जेम तेम फेण चलावतो, वळी आयुध धारी सेनानो अधिकार बताव्यो, ‘मारुं मारुं’ वगेरे जोरथी बोलवा
होतो नथी’ ए नियमने अनुसरीने भगवानने आहार लेवानी वृत्ति नहि ऊठेली होवाथी आहारनो बाह्य
तेने तप कहेवामां आवे छे. ते प्रमाणे ईच्छानो निरोध थतां, बब्बे दिवसना अंतरे त्रीजे त्रीजे दिवसे आहार
लेवानी वृत्ति आवी तेथी भगवाने छठ्ठने पारणे छठ्ठना उपवासो कर्या एम कहेवामां आवे छे.
रहेला ईन्द्रे विचार्युं तो मालम पड्युं के भगवाननी वाणी झीली शके एवो सर्वोत्कृष्ट पात्र जीव आ सभामां
हाजर नथी. तेवो पात्र जीव ईन्द्रभूति छे एम तेणे पोताना अवधिज्ञानथी नक्की कर्युं; तेथी तेओ नाना
ब्राह्मणनुं रूप धारण करीने ईन्द्रभूति (गौतम) पासे गया. तेमनामां (गौतममां) तीर्थंकर भगवानना वजीर
थवानी एटले के गणधर पदवीनी योग्यता हती; पण ते वखते यथार्थ भान न हतुं. हजारो शिष्योनी वच्चे
तेओ यज्ञ करता हता; त्यां ब्राह्मणना वेशमां जई ईन्द्रे प्रश्न कर्यो के “पांच अस्तिकाय, छ जीव निकाय, पांच
महाव्रत, आठ प्रवचनमाता, बंध अने मोक्षनुं स्वरूप शुं छे अने तेनां केटलां कारणो छे” ए प्रश्न सांभळी
गौतम महावीर प्रभु पासे जवा नीकळ्या; मानस्थंभ पासे पहोंचतां ज तेमनुं मान गळी गयुं, अने भगवानने
वंदना करी त्यारे धर्म पामी पांच महाव्रत लीधा. महाव्रत लीधापछी भगवाननी वाणी छूटी, अने गणधर