: जेठ : २००० आत्मधर्म : ११९ :
चोमासुं पूरु करी जिनपालितनी साथे पुष्पदन्त आचार्य वनवास–देशमां गया, अने भूतबलि भट्टार्क
द्रमिलदेशमां गया–त्यारपछी पुष्पदंत आचार्ये जिनपालितने दीक्षा आपी, वीस परुपणागर्भित सत्परुपणानां
सूत्रो बनावी अने जिनपालितने ते भणावी तेने भूतबलि आचार्य पासे मोकल्या. भगवान भूतबलीए
जिनपालितनी पासे वीश परुपणावाळा सत्परुपणानां सूत्रने दीठुं अने जिनपालित पासेथी पुष्पदंत आचार्यनुं
अल्प आयु छे एम जाण्युं, अने तेथी महाकर्म प्रकृति प्राभृतनो विच्छेद थई जशे एवी बुद्धि उत्पन्न थवाथी
तेओए द्रव्य प्रमाण अनुगमथी शरू करी ग्रंथ रचना पूरी करी. एवी रीते ‘षट् खंडागम’ ना कर्ता भूतबलि
तथा पुष्पदंत आचार्यो छे.
ए प्रमाणे ‘षट्खंडागम’ नी रचना पुस्तकारुढ करीने जेठ सुद प ना रोज चतुर्विध संघनी साथे ते
पुस्तकोने उपकरण मानी भूतबलि आचार्ये श्रुतज्ञाननी पूजा करी, अने तेथी श्रुतपंचमी तिथिनी प्रख्याति
जैनोमां आज सुधी चाली आवे छे, अने ते तिथिए जैनो श्रुतनी पूजा करे छे. आ तिथि संबंधे ईन्द्रनन्दि
श्रुतावतारमां नीचे प्रमाणे कह्युं छे:–
ज्येष्ट सितपक्ष पंचभ्यां चातुर्वर्ण्य संघ समवेतः।
तत्पुस्तकोपकरणै र्व्यधात् क्रियापूर्वकं पूजाम्।। १४३।।
श्रुत पंचमीतितेन प्रख्याति तिथिरियं परामाप।
यद्यापि येन तस्यं श्रुत पूजां कुर्वते जैनाः।। १४४।।
अर्थ:– जेठना शुक्लपक्षनी पांचमे चातुर्वर्णी संघ सहित ते पुस्तकने उपकरण मानी क्रिया पूर्वक पूजा करी
तेथी ते तिथि श्रुतपंचमी तरीके सारी रीते प्रख्याति पामी छे; अने आजे पण जैनो ते रोज श्रुत पूजा करे छे.
पछी भूतबलि आचार्ये ते षट् खंडागम पुस्तकोने जिनपालित द्वारा पुष्पदंत आचार्य पासे मोकल्या.
तेओ तेने देखीने पोते चिंतवेलुं कार्य सफळ थयुं जाणी अत्यंत प्रसन्न थया अने पछी तेओए चातुर्वर्ण संघ
सहित सिद्धांतनी पूजा करी.
आ शास्त्रनी रचना विक्रम संवतनी पहेली शताब्दि लगभगमां थई छे तेथी ए घणुं प्राचीन शास्त्र छे.
आ शास्त्रमां भरेला भाव घणा गंभीर होवाथी तेने श्री वीरसेन आचार्ये स्पष्ट करी श्री धवला नामनी टीका
रची. ते टीका ७२ हजार श्लोक प्रमाण छे. तेने रचतां दर वरसे ३ हजार श्लोकने हिसाबे २४ वर्ष लागेला होवां
जोईए. तेनी समाप्ति संवत ८७१ (शक ७३८) ना कारतक सुद १३ ई. स. ८१६ नी ता. ८ अकटोबर
बुधवारना रोज प्रातःकाळे थई हती.
आ टीका सहित मूळ आगम मुडबिद्रिमां ताडपत्र उपर लखेलुं साचववामां आव्युं छे. भाविक जीवो त्यां
जई मात्र तेनां दर्शन करी शकता. हालमां महानभाग्ये ते मूळ आगम टीका अने तेना हींदी अनुवाद सहित
छपाई प्रसिद्ध थाय छे; तेना छ भाग बहार पडी चुकया छे.
उपरना कारणे जेठ सुद प श्रुतपंचमीनो दिवस मुमुक्षु जीवोने माटे महामांगळिक छे, माटे ते रोज भक्ति
भावे श्रुत पूजा करी, श्रुत ज्ञाननी रुचि वधारी धर्मनी वृद्धि करवी योग्य छे.
मफतमां कांई पण मलतुं नथी.
वर्तमानमां तने जे जे संयोग मळे छे ते बधानी पूर्व काळे तें किंमत भरी छे
(पूर्वे तें एवा भाव कर्या छे) अने तेनो ज बदलो तने वर्तमानमां यथायोग्य मळी
रह्यो छे. तारी ईच्छा होय के न होय पण तें जेनी किंमत भरी दीधी छे तेनो बदलो तो
तने मळवानो ज! मळवानो. माटे जे जे संयोग मळे ते बधाने जाणी लेजे.