: १२० : आत्मधर्म २००० : जेठ :
कर्मनो खोटो वांक काढी ऊंधा पुरुषार्थमां न रोकातां
पोतानी स्वतंत्रतानुं भान करी लेवुं एज मुक्तिनो उपाय छे.
जड अन चतन
संग्राहक हरिलाल
जगतमां सर्वज्ञ भगवाने छ द्रव्यो जोयां छे, ते छए द्रव्यो पोतपोताथी स्वतंत्र संपूर्ण स्वाधीन छे. ते छ
द्रव्योमां आत्मा चेतन अर्थात् ज्ञान गुण सहित छे, बाकीना पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश अने काळ ए पांचे
द्रव्यो जड छे, तेनामां ज्ञानगुण नथी; आ पांचमां पुद्गल सिवायना चार तो अरूपी अने शुद्ध ज छे तेथी ते
चार द्रव्यो संबंधी आ जग्याए कांई कहेवानी जरूर नथी. हवे बाकी रह्या जीव अने पुद्गल. जीव चेतन छे,
पुद्गल जड छे, बन्ने स्वतंत्र छे. ‘स्वतंत्र द्रव्यने बीजा द्रव्यनो आश्रय (मदद) होय नहीं.’ एवो त्रिकाळ
अबाधित सिद्धांत छे.
उपरना सिद्धांतना आधारे, आत्मा जडनुं कांई करी शके नहीं अने जड आत्मानुं कांई करी शके नहीं. जीव
पोतानी अवस्था पोते स्वतंत्रपणे करे छे. अनादिथी जीवनी संसार अवस्था छे, ते संसार अवस्था जड करावतुं
नथी; कर्म पण जड छे. जड कर्म आत्माने संसारमां रोकता नथी. पण आत्मा पोते पोताना गुणनी ऊंधाईथी
संसारमां रोकायो छे. जेम आत्माने संसारमां रखडावनार पर नथी. तेम मोक्ष थवामां पण पर वस्तु आत्माने
मददगार नथी.
प्रश्न:– वृषभनाराच संहनन होय तो ज आत्माने केवळज्ञान थाय एटले के वृषभनाराच संहनन वाळुं
शरीर [के जे जड छे ते] आत्माने केवळ थवामां मदद करे छे ने?
उत्तर:– त्रणकाळ त्रणलोकमां आत्माने कोई पर द्रव्य मदद करी शके नहीं. केवळज्ञान वखते वृषभनाराच
संहनन होय तेथी कांई वृषभनाराच संहननथी आत्माने केवळज्ञान थयुं छे, अगर केवळज्ञान थवामां तेणे मदद
करी एवुं नथी. एक द्रव्यनी अवस्था वखते बीजा द्रव्यनी हाजरी होय तेथी कांई ते द्रव्ये पहेला
द्रव्यनी अवस्था करी नथी, के अवस्था थवामां मदद पण करी नथी. अवस्था थती वखते बीजा
द्रव्यनी तेना कारणे मात्र हाजरी हती. तेम केवळज्ञान वखते वृषभनाराच संहनन वाळा शरीरनी हाजरी
छे ते जडना कारणे छे; तेनी हाजरी छे, माटे ते मददगार छे एम कही शकाय नहीं.
वळी जो केवळज्ञान थवामां आत्माने वृषभनाराच संहनननी मददनी जरूर पडती होय, तो जड अने
आत्मा बन्ने पराधीन बने छे; केमके जो वृषभनाराच संहनन शरीरने आधारे केवळज्ञान प्रगटतुं होय तो
आत्माने पोताना केवळज्ञान माटे जडमां पुरुषार्थ करवो पडे एटले जडनी अवस्था आत्मा करे एवो प्रसंग
आवे त्यां जड पराधीन बने छे, अने आत्माने पोताना केवळज्ञान माटे जडनी अवस्थानी राह जोवी पडे तो
आत्मा पराधीन थयो, एटले के तेनी अवस्थानो ते स्वतंत्र पणे कर्ता न रह्यो; पण कोई द्रव्यनी अवस्था बीजा
द्रव्यने आधारे नथी. तेथी आत्माने केवळज्ञान वखते वृषभनाराच संहनननी ‘जरूर’ नथी छतां केवळज्ञान
वखते जडमां पोताना स्वतंत्र कारणे वृषभनाराचसंहनन
अविरत सम्यग्द्रष्टि ज्ञानी छे.
अविरत सम्यग्द्रष्टिने पण अज्ञानमय रागद्वेष मोह होता नथी. मिथ्यात्व सहित रागादिक
होय तेज अज्ञानना पक्षमां गणाय छे. सम्यक्त्व सहित रागादिक अज्ञानना पक्षमां नथी.
सम्यग्द्रष्टिने निरंतर ज्ञानमय ज परिणमन होय छे. तेने चारित्रनी नबळाईथी जे
रागादि थाय छे तेनुं स्वामीपणुं तेने नथी. रागादिकने रोग समान जाणीने ते प्रवर्ते छे अने
पोतानी शक्ति अनुसार तेमने कापतो जाय छे. माटे ज्ञानीने जे रागादिक होय छे ते विद्यामान
छतां अविद्यमान जेवां छे; तेओ आगामी सामान्य संसारनो बंध करता नथी, मात्र अल्प
स्थिति अनुभागवाळो बंध करे छे. आवा अल्प बंधने गौण करी बंध गणवामां आवतो नथी.