: १२२ : आत्मधर्म २००० : जेठ :
त्रा. स. नुं
साम्राज्य
लेखांक ३ जो ले:– रा. मा. दोशी
पहेलो मित्र–बीजा त्रासो केम टळे.
बीजो मित्र:–रोग शरीरमां थाय छे, शरीर ते रजकणोनुं बनेलुं छे. रजकणो अजीव जड पुद्गल छे. हुं
जीव छुं शरीर पर होवाथी ते बगडे सुधरे तेथी मारुं कांई बगडे सुधरे नहि. जीवनुं शरीर तो ज्ञान शरीर छे, ते
सदा अचळ छे, सदा निराकुळ छे. तेथी रोगनी वेदना मने होई शके नहि; ज्ञान स्वरूपनो ज हुं भोगवटो
करनारो छुं पुद्गलथी थयेली रोगरूप अवस्था ते वेदना ज नथी तेथी साची समजण करनारने वेदनानो भयज
नथी. ए प्रमाणे साची समजणनी द्रढता वडे वेदनानो त्रास नाश पामे छे. आ सिवाय बीजो कोई उपाय नथी.
पहेलो मित्र–अरक्षानो त्रास केम जाय?
बीजो मित्र–हुं एक स्वतंत्र चैतन्य वस्तु छुं, तेथी मारा पोताथी ज रक्षित छुं. पर मारुं रक्षण करी शके
नहि. हुं एवी वस्तु नथी के बीजाओ वडे रक्षा करवामां आवे तो रहुं, नहि तो नष्ट थई जाउं; आ ज्ञानने खूब
घूंटवाथी अरक्षानो त्रास जाय.
पहेलो मित्र–पुण्य तो जीवनो “रखोपीयो” (रक्षण करनार) खरो ने?
बीजो मित्र:–पुण्य क्षणिक छे के त्रिकाळी?
पहेलो मित्र:–पुण्य तो क्षणिक उत्पन्नध्वंसी छे.
बीजो मित्र:–तो ते क्षणिक भाव त्रिकाळी आत्मानो रक्षक केम थई शके?
पहेलो मित्र–केटलाको कहे छे के आ कोई समजी जशे तो पुण्य नहि करे.
बीजो मित्र–‘माणसो साचुं समजे तो ऊंधा चालशे’ एम मान नारा तेवुं कही शके. साचुं समजनार
पुण्यमां नहि जोडाय त्यारे शुद्धतामां जोडाईने बधां विकारो टाळी सर्व त्रासोथी मुक्त थशे. जेम विकार वधे तेम
त्रास टळे एम तो थाय ज नहि. अज्ञानीनो पुण्यनो भाव परथी पोताने सगवड थाय ए मान्यता उपर
रचाएलो छे. ज्ञानी शुद्धमां न रही शके त्यारे अशुभ टाळवा शुभ भावमां जोडाय पण तेथी धर्म मानता नथी,
तेथी तेमने अवांछक वृति होवाथी उंचा पुण्यो थाय छे.
पहेलो मित्र–बीजाओ तेवो उपदेश केम आपता नथी?
बीजो मित्र–दरेक जीव पोताने ठीक लागे तेवो उपदेश आपे. जीज्ञासुए तेनी परीक्षा करवी जोईए. दरेक
व्यापारी पोतानो माल उंचो छे एम कहे छे जीवोने पुण्यनो एटले के भेदरूप व्यवहारनो पक्ष तो अनादि
काळथी ज छे. अने तेनो उपदेश पण बहुधा सर्व प्राणीओ परस्पर करे छे पण तेनुं फळ संसार छे.
पहेलो मित्र–तेनुं फळ संसार शा माटे छे?
बीजो मित्र–पुण्य क्षणिक छे. उत्पन्न ध्वंशी छे, ते विकारी छे, तेथी तेनुं फळ संसार छे, बीजी रीते कहीए
तो ते वधे छे, [पुद्रूप थाय छे] अने वीखराई जाय छे. [गळरूप थाय छे] तेथी पुद्गल भाव छे, तेनुं फळ
पण पुद्गल वस्तुनो संयोग छे. विकारनुं फळ साचुं सुख होई शके नहि अने विकारथी त्रास टळे नहीं.
पहेलो मित्र–तमारा कहेवा उपरथी एम जणाय छे के– जे पोताना आत्माने जाणे तेने अरक्षा भय न
रहे केमके आत्माने कोई नुकसान पहोंची शके नहीं, ते पोते पोताथी ज रक्षक छे.
बीजो मित्र–हा तेमज.
पहेलो मित्र–त्यारे ए रीते ते परथी गोपाएलो ज छे तेथी तेने जे गुप्ति भय राखवा खरेखरूं कांई
कारण नथी ए खरूं?
बीजो मित्र–सम्यक् द्रष्टिने तेवीज मान्यता होय छे, अने तेज कारणे मरण भय के आकस्मिक भय होतो
नथी–ते जाणे छे. जीव मरतो नथी, तेम अकस्मात कदी थतो ज नथी. आ दशा असंयत सम्यग्द्रष्टिनी होय छे.
(विशेष हवे पछी)
दर महिने एक नवुं ग्राहक वधारी आपी आत्मधर्मनी प्रभावना करो.