Atmadharma magazine - Ank 007
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २००० आत्मधर्म : १२३ :
अतरथ सतन हकर वगर धम समजाश नहीं.
[राजकोट ता. २०–२–४४ना रोज सवारना व्याख्यान पछीनी चर्चामांथी मेळवेलुं]
परम सत्य सांभळवा छतां समजातुं नथी तेनुं कारण ‘हुं लायक नथी, मने न समजाय.’ एवी
द्रष्टि ज तेने समजवामां नालायक राखे छे. सत्ना एक शब्दनो पण अंतरथी पहेले धडाके हकार आव्यो ते
भविष्यमां मुक्तिनुं कारण छे. एकने सत् सांभळतां ज अंतरथी ऊछळीने हकार आवे छे अने बीजो ‘हुं लायक
नथी–आ मारे माटे नथी.’ एवी मान्यतानी आड नांखीने सांभळे छे
ते आड ज तेने समजवा देती नथी.
आडी वातो तो दुनिया अनादिनी करी ज रही छे, आजे नवी नथी. अंतरवस्तुना भान वगर बहारमां
त्यागी थईने अनंतवार सूकाई गयो तो पण अंतरथी सत्ना हकार वगर धर्म समज्यो नहीं.
ज्यारे ज्ञानीओ कहे छे के ‘सर्व जीवो सिद्ध सम छे, तुं पण सिद्ध समान छो, भूल वर्तमान एक
समय पूरती छे अने तुं समजीश माटे कहीए छीए.’ एम कहे छे त्यारे आ जीव ‘हुं लायक नथी, मने आ
न समजाय.’ एवी रीते ज्ञानीओए कहेला सत्नो नकार करी सांभळे छे तेथी ज तेने समजातुं नथी.
भूल स्वभावमां नथी, मात्र एक समय पूरती पर्यायमां छे, ते भूल बीजे समये रहेती नथी, जो पोते
बीजे समये नवी करे तो थाय छे. (पहेलांं समयनी भूल तो बीजे समये नाश पामी जाय छे.)
शरीर ते अनंत परमाणुओनुं दळ अने आत्मा चैतन्य मूर्तिशरीर साथे तेने लागे वळगे शुं? एक
द्रव्यनी पर्याय बीजुं द्रव्य उत्पन्न करी शके नहीं एवुं जैनधर्मनुं त्रिकाळी कथन छे ते नहीं मानतां
“माराथी परनी अवस्था थई अथवा थाय” एम माने छे ते ज अज्ञान छे. ज्यां जैननी कथनी पण न माने तो
जैनधर्म तो क्यांथी समजशे? जो परनुं कांई करी शकतो होय तो परनुं न करवानो के परनो त्याग करवानो प्रश्न
आवे ने?
विकार परमां नथी पण पोतानी एक समयनी मान्यतामां छे. बीजे समये विकार नवो करे तो थाय छे.
रागनो त्याग ते नास्तिथी छे, अस्ति स्वरूपना भान वगर रागनी नास्ति करशे कोण? आत्मामां पर कोई
गरी गयां ज नथी तो त्याग कोनो? मफतनुं खोटुं मानी राख्युं छे
–ते मान्यता ज छोडवानी छे.
प्रश्न:– जो साचुं समजे तो वर्तनमां कांई असर न देखाय? अथवा लोको पर तेना ज्ञाननी छाप न पडे?
उत्तर:–
एक द्रव्यनी छाप बीजा द्रव्य उपर त्रणकाळ त्रणलोकमां पडे ज नहीं, दरेक स्वतंत्र छे.
जो एकनी छाप बीजा उपर पडती होय तो त्रिलोकनाथ तीर्थंकर भगवाननी छाप अभवी उपर केम नथी
पडती? ज्यारे पोते पोताथी ज्ञान करी पोतानी ओळखाणनी छाप (पोता उपर) पाडे त्यारे निमित्तनो आरोप
करी बोलाय. बहारथी ज्ञानी ओळखाय नहीं. ज्ञानी होय अने बहारमां हजारो स्त्रीओ होय, अने अज्ञानीने
बहारमां कांई न होय.
ज्ञानीने ओळखवा माटे तत्त्व द्रष्टि होय तो ज ओळखाय. ज्ञान थाय तेथी
बहारमां फेर देखाय के न देखाय पण अंतर द्रष्टिमां फेर पडी ज जाय.
सत् सांभळतां ज एक कहे के अत्यारे ज सत्लाव! एम कहेनार सत्नो हकार लावीने सांभळे छे ते
समजवाने लायक छे. अने बीजो कहे–“हमणा आ नहीं, हमणां मने न समजाय” एम कहेनार सत्ना नकारथी
सांभळे छे तेथी ते समजी शकशे नहीं.
श्री समयसारजीनी पहेली ज गाथामां “हुं अने तुं सिद्ध छीए” एम स्थाप्युं छे. जो ते सांभळतां
पहेल्ले ज धडाके हा आवी तो ते लायक छे–तेनी अल्पकाळमां मुक्ति छे; अने जो तेमां वच्चे नकार आव्यो तो ते
समजवानी आड नांखी छे.
प्रश्न:– सारो सत्समागम होय तो तेनी असर थायने?
उत्तर:– बिलकुल न थाय. कोईनी असर पर उपर थाय ज नहीं. सत्समागम पण पर छे परनी छाप