शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
वर्ष १ जेठ
अंक ७ २०००
स्मरणमां राखवा योग्य नियमो
१. जे परिणमे छे (अवस्थाबदले छे) ते कर्ता छे. परिणमनारनुं जे परिणाम (अवस्था) छे ते कर्म छे
अने जे परिणति छे ते क्रिया छे; ए त्रणेय वस्तुपणे भिन्न नथी. ए त्रणेय एक द्रव्यनी अभिन्न अवस्थाओ
छे, प्रदेशभेद रूप जुदी वस्तुओ नथी.
२. (दरेक) वस्तु सदा एक ज परिणमे छे, एकनां ज सदा परिणाम थाय छे, अने एकनीज परिणति––
क्रिया थाय छे. अनेकरूप थवा छतां एकज वस्तु छे. भेद नथी.
३. बे द्रव्यो एक थईने परिणमतां नथी, बे द्रव्योनुं एक परिणाम थतुं नथी अने बे द्रव्योनी एक
परिणति–क्रिया थती नथी. कारण के अनेक द्रव्यो छे ते अनेक ज छे, पलटीने एक थई जतां नथी.
४. बे वस्तुओ छे ते सर्वथा भिन्नज छे, प्रदेशभेद वाळी ज छे. बन्ने एक थईने परिणमती नथी, एक
परिणामने उपजावती नथी अने तेमनी एक क्रिया होती नथी एवो नियम छे.
प. जो बे द्रव्यो एक थईने परिणमे तो सर्व द्रव्योनो लोप थई जाय.
६. एक द्रव्यना बे कर्ता न होय, वळी एक द्रव्यनां बे कर्म न होय अने एक द्रव्यनी बे क्रिया न होय,
कारण के एक द्रव्य अनेक द्रव्यरूप थाय नहि.
७. आत्मा तो सदा पोताना भावोने करे छे, अने पर द्रव्य परना भावोने करे छे; कारण के पोताना
भावो छे ते तो पोते ज छे. अने परना भावो छे ते परज छे (ए नियम छे.)
८. पोताने अज्ञानरूप के ज्ञानरूप करतो आत्मा पोताना ज भावनो कर्ता छे. पुद्गलना के परना
भावोनो कर्ता तो कदी नथी.
९. आत्मा ज्ञान स्वरूप छे. पोते ज्ञानज छे; ते ज्ञान सिवाय बीजुं शुं करे? आत्मा परभावनो कर्ता छे
एम मानवुं ते व्यवहारी जीवोनो मोह (अज्ञान) छे.
१०. परनुं हुं कांई करी शकुं ए कर्तापणानुं मूळ अज्ञान छे.
११. आत्मा समस्त वस्तुओना संबंधथी रहित शुद्ध चैतन्य धातुमय छे.
१२. तोपण अज्ञानने लीधे ज सविकार अने सोपाधिक करायेलां चैतन्य परिणाम वाळो होवाथी ते
प्रकारना पोताना भावनो कर्ता प्रतिभासे छे.
१३. क्रोध–मान–माया–लोभ–पुण्य–पाप वगेरे विकारी भावोने सविकार चैतन्य परिणाम कहेवामां आवे छे.
१४. हुं पर द्रव्य छुं–परद्रव्यनुं हुं करी शकुं छुं ए विकारी भावोने सोपाधिक चैतन्य परिणाम कहेवामां आवे छे.
१प. ते विकारी भाव अनित्य छे, क्षणिक छे तेथी पोताना त्रिकाळी ध्रुव स्वरूप शुद्ध चैतन्यने आश्रये ते
विकारी भावनो नाश करी शकाय छे.
१६. आत्मामां थता अज्ञानमय परिणामोने चिदाभास, चिद्विकार कहेवामां आवे छे.
१७. मिथ्यात्व सहित ज्ञान ज अज्ञान कहेवाय छे.
१८. मिथ्यात्व सहित रागादिक होय ते ज अज्ञानना पक्षमां गणाय छे.
१९. परना अने पोताना एकत्व (अविशेष) नी मान्यताने मिथ्यात्व कहेवामां आवे छे.
२०. परना अने पोताना अविशेष ज्ञानने अज्ञान कहेवामां आवे छे.
२१. परनी अने पोतानी अविशेष लीनताने अविरती कहेवामां आवे छे.
२२. ज्ञाननुं फळ विरती––एटले स्वरूप स्थिरता
१––जे पोताथी कदी थई शकतुं नथी तेनुं कर्तापणुं माने छे, अने जे पोताने करवानुं छे अने पोताथी थई शके छे ते
२––जे सुख पोतामां भरेलुं छे तेने जाणतो के भोगवतो नथी अने परवस्तु के जेमां कदी पण पोतानुं सुख नथी
तेमांथी सुख भोगववानी व्यर्थ महेनत