Atmadharma magazine - Ank 007
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: ११२ : आत्मधर्म २००० : जेठ :
सत्यनो आदर ने अज्ञानो त्याग ए ज प्रथमां प्रथम धर्म छे.
परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी मुनिनुं व्याख्यान महा सुद १३ ता. ६–२–४४
धर्म कोनो?
आत्मा ज्ञानमूर्ति वस्तु छे, शरीरथी जुदुं तत्त्व छे. शरीर अने आत्मा एक जग्याए भेगा रह्या तेथी बे
वस्तु एक थई गई नथी, बन्नेना गुण जुदा जुदा छे. बे जुदी वस्तुनां लक्षण पण जुदा ज छे. कोईना गुण
कोईमां जाय नहीं. आत्माना ज्ञानादि गुण के तेनी कोई अवस्था शरीरमां जाय नहीं अने शरीरना रंगादि कोई
गुण के तेनी अवस्था आत्मामां आवे नहीं. बन्ने वस्तु ज अनादि–अनंत जुदी छे. माटे जेने आत्मानो धर्म
करवो छे तेने प्रथम तो आत्मानो धर्म आत्माना गुण आत्माना आधारे ज छे, अने कोई विकार के शरीरादिना
आधारे आत्मानो गुण के धर्म नथी एम नक्की करवुं पडशे.
धर्म क्यां छे?
आत्मा स्वतंत्र वस्तु छे. तेनो धर्म कहो के गुण कहो ते आत्माने ज आधारे छे–रागादिने आधारे
आत्मानो धर्म नथी. धर्म अंदरथी थाय छे. बे वस्तु जुदी छे. तेना गुण अने पर्याय पण जुदा ज होय माटे
ज्ञानी जाणे छे के मारो धर्म पांच ईन्द्रियो के पुण्य–पापनी वृत्तिओना आधारे नथी. आवी श्रद्धा तेनुं नाम धर्म
अने ते ज निर्जरा. अने जेने आवुं भान नथी तेने कदी आत्मानो गुण के धर्म थाय नहीं.
आत्मानो धर्म आत्माना आधारे छे.
आत्मानो स्वभाव ज्ञान–एटले जाणवुं; जाणवानो स्वभाव
[धर्म] कोईने आधारे नथी, तथा
जाणवामां जे दयादि के हिंसादिना शुभ–अशुभ विकार ते आत्माना आधारे नथी. आवा भान सहित ज्ञानीने
क्षणे क्षणे पुण्य–पाप टळे छे ते ज निर्जरा छे.
धर्मनुं स्वरूप.
धर्मनुं स्वरूप अनादिथी एक सेकन्ड पण समज्यो नथी. धर्म एटले आत्मानो गुण; गुण गुणीने आधारे
रहेलो छे. कोई मन, वाणी के देहादि परचीजने आधारे आत्मानो कोई गुण नथी. पोताना धर्मस्वरूप स्वभावनी
जेने प्रतीति नथी ते परने आधारे धर्म माने छे, केम जाणे धर्म बहारथी प्रगटतो होय! तेम माननारने पोताना
धर्मस्वभावनो भरोसो नथी–विश्वास नथी.
आत्मा अनादि अनंत, सर्व परथी भिन्न वस्तु छे. परमाणु पण जुदी चीज छे. एक जुदी वस्तुनो धर्म
कोई पर वस्तुना आधारे होय नहीं. आत्माना ज्ञान, दर्शन वगेरे गुणो आत्मामां ज छे, पण तेनी खबर नथी–
प्रतीत नथी एटले परमां मानी बेठो छे, तेज संसार छे; अने आत्मा अखंड ज्ञानमूर्ति तेना आधारे पुण्य–
पापनी पक्कड अने ममतानो त्याग एनुं नाम धर्म.
आत्मानो धर्म शरीरादि कोई परने आधीन नथी.
शरीर, मन, वाणी तथा चक्षु आदि पांच ईन्द्रियो ते बधा आत्माथी पर छे. ते सारा रहे के न रहे तेने
आधारे आत्मानो धर्म नथी. शरीर सारुं होय तो धर्म थाय के पांच ईन्द्रियो बराबर होय तो धर्ममां सहाय करे
एम जे परने आधारे आत्मानो धर्म माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. रसना ईन्द्रिय (जीभ) सारी होय तो
भगवानना गुणगान सारां गवाय एवी जडनी पक्कड ज्ञानीने होती नथी. जीभ तो परमाणुओनो लोचो छे,
तेना आधारे आत्मानो धर्म नथी. कदाच जीभ अटकी जाय तो पण धर्म अटकी जतो नथी. शरीर युवान हो के
वृद्ध हो तेने आधारे धर्मी जीव धर्म मानतो नथी. ‘शरीर वृद्ध थयुं, शरीरमां पक्षघात थयो, हवे मारे धर्म शी
रीते थशे? ’ एम अज्ञानी माने छे, ते खोटुं छे. शरीर गमे तेम रहे तेमां तारे शुं? तुं तो जाणनार छो! तुं
तारामां रहेने! एक तरफ शरीर तरफना रागनो कर पक्षघात, अने बीजी तरफ अंतरमां सिद्धस्वभावने जाण
तेनुं नाम धर्म.
आत्मा पोते ज धर्म स्वरूप छे
जेने आवा स्वरूपनी खबर नथी ते पुण्य, पाप, शरीर, ईन्द्रियो आदि परना आधारे धर्म माने छे. पण
पर द्रव्य