Atmadharma magazine - Ank 007
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: ११६ : आत्मधर्म २००० : जेठ :
करी शकुं नहीं, एवा प्रथम नियमने–धर्मने–जाणतो ज्ञानी ते परनी पककड केम करे! अज्ञानी पण परनुं कांई करी
शकतो नथी, मात्र माने छे, ज्ञानीने ते मान्यता छुटी गई छे. ज्यां आत्मा ज्ञानमूर्ति स्वतंत्र स्वभावी वस्तु तेने
जडनी के विकारनी कोईपण अवस्था मदद करे एवी अज्ञानरूप मान्यता छुटी गई–त्यां द्रष्टिमां सर्व परनुं
अवलंबन छुटी ज गयुं छे, अर्थात् ज्ञान थतां परथी लाभ के नुकसान मानवारूप मिथ्याभावने (अज्ञानने)
वमी नाख्युं छे. आ रीते धर्मी अत्यंत निस्परिग्रही–तेने परनी भावना नथी.
धर्मनी शरूआत क्यारे थाय!
कोई एम कहे के आत्मा बहारथी देखाय तो मानुं! तो तेनो अर्थ ए के तेने आत्मानी ज प्रथम तो
खबर नथी. शुभराग पण आत्माना गुणने मदद करे ए मान्यता मिथ्याभाव छे. आत्मानो गुणआत्माने ज
आधीन छे. पर वस्तु कोई पण गुण प्रगटाववामां मददगार नथी. देव, गुरु, शास्त्र ते बधां पर छे–तेनुं
अवलंबन द्रष्टिमांथी नीकळी जतां स्वतंत्र आत्मगुणनी ओळखाण थई अने अज्ञान टळ्‌युं ते ज पहेलो धर्म.
सत्यनो आदर अने अज्ञाननो त्याग ए ज प्रथममां प्रथम धर्म छे.
आत्माना ज्ञान स्वभावमां कोई पर चीज गरी गई नथी. राग–द्वेष पण त्रिकाळ स्वभावमां नथी, पण
ते परलक्षे थता संयोगी विकारी भाव छे. ते संयोगथी असंयोगी आत्माने लाभ थाय एवी मिथ्या मान्यता
छुटी जतां अनंतकाळमां कदी न थयेलो एवो अपूर्व धर्म प्रगटे छे.
ऊंधी मान्यता ए ज संसार
अहा! वस्तु! जेनाथी धर्म थाय ते वस्तु अंदर ज पडी छे, पण एनी द्रष्टि नहीं अने पर उपर द्रष्टि गई छे,
जाणे के पोते तो वस्तु ज नथी! केम जाणे परथी धर्म थई जतो होय! ए ऊंधी मान्यता ज अनंत संसारनुं कारण छे.
सत्समागम पामीने पोताथी पोताने ओळखे त्यारे ज ते निमित्त कहेवाय छे, पण सत्समागम कांई आपी देता नथी.
पोते ज पोताथी समजे के अहा! आवी वस्तु! स्वतंत्र ज्ञान स्वभावी छुं, तेमां कोई पण परनुं
अवलंबन मानवुं तेज आत्माना स्वतंत्र गुणनी हिंसा छे, एज अधर्म छे, ए ज संसार छे.
धमन उपय! स्वभव समज्य वगर थय नहीं
आत्मा ज्ञानानंद स्वरूप होवा छतां अवस्थामां पुण्य–पापना भाव, वीतराग थया पहेलांं थाय खरा;
पण आत्माना ज्ञानानंद स्वभावमां तेनी मदद नथी एवी भावना ते ज अहिंसा अने तेज आत्माना उद्धारनो–
जन्ममरणना अंतनो उपाय छे. आत्माना स्वरूपने जाण्या वगर स्थिरता करे क्यां? आत्मानुं चारित्र
आत्मामां ज छे; पण आत्माने जाण्यो नथी अज्ञान टाळ्‌युं नथी त्यां चारित्र होय क्यांथी?
प्रथम तो आत्मानो गुण शुं? अवगुण क्यां थाय छे? वस्तु शुं, स्वभाव शुं? ए जाण्या वगर धर्म थाय नहीं.
ऊंधाईमां पण स्वतंत्र छे, अने समजण करवामां पण स्वतंत्र छे.
अहो! आ समयसारमां भगवान कुंदकुंद आचार्यदेवे सनातन सत्यने जाहेर कर्युं छे के–वस्तु स्वतंत्र छे,
आत्मा चैतन्य ज्योत स्वरूप तेनी ओळखाण पोताथी ज थाय छे, परनी सहायता नथी. जेम ऊंधुं मान्युं ते कोईए
मनाव्युं नथी पण अज्ञान भावे पोते ज मान्युं हतुं; अने सम्यग्ज्ञानना अवलंबन द्वारा आत्मा सिवाय कोई परनुं
जेठ आषाढ
सुद २ बुध २४ मे सुद २ गुरू २२ जुन
,, शनि २७ ,, ,, रवि २प ,,
,, ८ मंगळ ३० ,, ,, ८ गुरू २९ ,,
,, ११ शुक्र जुन ,, ११ रवि जुलाई
,, १४ सोम प ,, ,, १४ बुध प ,,
,, १प मंगळ ६ ,, ,, १प गुरू ६ ,,
वद गुरू ८ ,, वद शुक्र ७ ,,
,, प रवि ११ ,, ,, प सोम १० ,,
,, ८ बुध १४ ,, ,, ८ गुरू १३ ,,
,, ११ शुक्र १६ ,, ,, ११ रवि १६ ,,
,, १४ सोम १९ ,, ,, १४ बुध १९ ,,
,, ०)) मंगळ २० ,, ०)) गुरू २० ,,