Atmadharma magazine - Ank 008
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २००० : आत्मधर्म : १३९ :
आप्यो, अने तेथी अपूर्व धर्मप्रभावना थई. ए प्रमाणे धर्मनुं स्वरूप तेओश्रीए समजावतां ‘भावशुद्धि’ नुं
उत्तम प्रकारे सिंचन थयुं अने लोकोनी धर्मभावना जाग्रत थई अने वृद्धि पामी.
(२८) सम्यग्दर्शनथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे, तेथी सम्यग्दर्शन उपर खास वजन तेओश्रीना
व्याख्यानमां आवे छे. आ उपदेशमां अनेक न्यायो आपी सम्यकत्वनुं माहात्म्य दर्शाववामां आवे छे. तेमनी
अद्भुत प्रभावशाळी अने कल्याणकारिणी वाणी अनेक जीवोने आकर्षे ए स्वाभाविक छे. भाईओ, बहेनो,
वृद्धो, युवानो, केळवायेला, वकीलो, डोकटरो, अमलदारो तवंगरो, गरीबो, जैनो, जैनेतरो ते सांभळवा आवता
अने तेनो लाभ लेता.
(२९) हालमां ‘श्री आत्मधर्म मासिक’ बहार पडे छे, तेमां तेओश्रीना व्याख्यानो अने चर्चा दरम्यान
तेओश्रीए जणावेला तत्त्वज्ञानना ऊंडा न्यायो तथा बीजा तत्त्वना विषयो आवे छे, ए रीते समाजनुं ध्यान
‘भाव’ उपर हाल खास खेंचायुं छे.
(३०) चार ज्ञानना धणी श्री गणधर देव पण निर्विकल्प ध्यानमां न रही शके त्यारे साक्षात् तीर्थंकर
प्रभुनो उपदेश वारंवार सांभळे छे; भगवाननो उपदेश सवारे, बपोरे अने सांजे एम त्रण वखत छ छ घडी
चाले छे एटले कुल १८ घडी (लगभग ७ कलाक) तेओ हंमेशांं उपदेश सांभळे छे. माटे सामान्य शक्तिना
माणसोए तत्त्वज्ञानना श्रवण वांचनमां बने तेटलो लांबो वखत रहेवुं ज जोईए; अने तत्त्वज्ञाननी द्रढता माटे
रुचि वधारवी ज जोईए. तत्त्वज्ञानना आ कार्यक्रमथी घणा भाईओ अने बहेनोनी धर्म तरफनी रुचि वधी छे.
(३१) तत्त्वज्ञान प्रचार अने प्रकाशनो
(१) समयसार (२) प्रवचनसार (३) पंचास्तिकाय (४) पद्मनंदि (प) नियमसार (६)
पंचाध्यायी (७) अष्टपाहुड (८) समयसार टीका (९) समयसार नाटक (१०) समयसार कलशा (११)
अर्थ प्रकाशिका (१२) राज वार्तिक (१३) द्रव्य संग्रह–मोटुं (१४) द्रव्यसंग्रह नानुं (१प) छहढाला (१६)
भगवती आराधना (१७) गोमट्टसार (१८) श्री धवल (१९) श्री जयधवल (२०) मोक्षमार्ग प्रकाशक
(२१) श्री जैनसिद्धांत दर्पण (२२) श्री परमात्म प्रकाश वगेरे तत्त्वज्ञानना हिंदी पुस्तको मोटी संख्यामां
वेचाया छे. (२३) गुजराती समयसार–प्रत २००० (२४) समयसारनुं हरिगीत बे आवृत्ति–प्रत ३०००
(२प) समयसार गूटका बे आवृत्ति ३००० (२६) आत्मलक्ष्मी १००० (२७) आत्म प्रभा–१००० (२८)
सर्व सामान्य प्रतिक्रमण आवश्यक १००० (२९) अनुभव प्रकाश १००० (३०) आत्मसिद्धि पर प्रवचनो
१००० वगेरे प्रकाशनो सोनगढथी प्रसिद्धि पाम्यां छे. (३१) आत्मसिद्धि पर प्रवचनोनी एक आवृत्ति खपी
गई छे अने बीजी आवृत्ति १००० छपाईने बहार पडी गई छे. (३२) सत्ता स्वरूप गुजरातीमां प्रत १०००
आ सालना चैत्र सुद–१३ ना रोज प्रसिध्ध थयुं छे, अने तेनो लगभग त्रीजो भाग खपी गयो छे. (३३)
कलोलथी प्रसिध्ध थयेल ‘श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक’ नी प्रथम आवृत्ति वेचाई गई छे, नवी आवृत्ति थोडा
वखतमां बहार पडशे. (३४) श्री प्रवचनसार गुजरातीमां छपाववानुं कार्य शरू थई गयुं छे. (३प) ‘श्री
अपूर्व अवसर’ उपरना प्रवचनो छपाय छे. अने ते थोडा वखतमां प्रसिध्ध थशे. (३६) “श्रीमद् राजचंद्र”नी
आवृत्तिओ मोटी संख्यामां वेचवामां आवी छे. (३७) “श्री समयसार पर प्रवचनो” चार वोल्युममां बहार
पडशे, तेनो पहेलो भाग प्रत २००० छपाय छे. (३८) स्तवन मंजरी (३९–४०) आध्यात्मिक पत्रावली
भाग १–२. (४१) समवसरण स्तुति (४२) पूजा संग्रह (४३) जैन सिध्धांत प्रवेशिका (४४) द्वादशानुप्रेक्षा
(४प) श्री जिनेन्द्र स्तवनावली ए प्रमाणेना पुस्तको प्रसिद्धि पाम्यां छे. (४६) श्री बेचरलाल काळीदास
जसाणी तरफथी नानी डायरीना आकारनी श्री आत्मसिद्धि छपाववामां आवी छे, अने ते मुमुक्षु भाई–
बहेनोने स्वाध्याय माटे भेट आपवामां आवे छे. (४७) ‘श्री आत्मधर्म मासिक’ बहार पडे छे, तेमां
तत्त्वज्ञानना विषयो प्रसिध्ध थाय छे, ते घणुं लोकप्रिय थयुं छे, अने तेना ग्राहको लगभग १००० थई गया
छे. (४८) श्री आत्मधर्म मासिकना ग्राहकोने ववाणीआना देसाई व्रजलाल वलमजी अने चंदुलाल वलमजीए
तेमना पिताश्री देसाई वलमजी रामजीना स्मरणार्थे परम पूज्य सद्गुरु देवना श्री समयसारजी गाथा ११
उपरना प्रवचनोनुं ‘संजीवनी’ नामनुं पुस्तक भेट आप्युं छे. (४९ थी प१) श्री धवळ, श्री जयधवळ तथा
श्री त्रिलोक प्रज्ञप्ति पण घणी खपी छे.