: १५४ : आत्मधर्म २००० : श्रावण :
तो दुःख न थतां, सुख थयुं, मोक्ष थयो, अविनाशी कल्याण थयुं ए खरूं के केम?
(६) स्कुलमां शिक्षक विद्यार्थी भणे, सुधरे, भविष्यमां सुखी थाय ते हेतुथी तेनाथी तेना पाठो बराबर
तैयार करवा कहे, अने ते विद्यार्थी तेम न करे, अने शिक्षकने खराब कहे ए बने के केम?
(७) भगवानो (ज्ञानीओ) आ जगतमां अनंता थया, तेओए जगतना कल्याण माटे उपदेश आप्यो,
पण तेमना सांभळनारा बधाओ ज्ञानी थया नहीं. जगतना मोटा भागे सुधरवानी ना पाडी, अने केटलाकोए
तेमनी धर्म सभामांथी बहार नीकळी मोटो विरोध कर्यो. एम बने छे के केम?
(८) आ जीव पोते अनंत वखत तीर्थंकर भगवानोनी धर्म सभामां गयो. भगवाननो कल्याणकारी
उपदेश काने पड्यो, पण मोटी उंधाई करी ते उपदेशने नकार्यो, अने केवळी पासे कोरो रही गयो. एम बन्यानुं
तमे सांभळ्युं छे के केम?
(९) एक माणस बीजा माणस ने मारवा गयो. त्यां ते जेने मारवो ते न मर्यो, अने बीजा माणस
एकदम आडो आवी गयो अने मरी गयो, एम बने छे के केम?
(१०) आ सालमां ज बंगाळामां अनाजनी अछत एटली थई पडी के करुणा बुद्धि जीवो अनाज पोताथी
बने तेटला ने पुरुं पाडवा मागता हतां, छतां तेमनी धारणा प्रमाणे पुरुं न पड्युं, एम बन्युं हतुं के केम?
पहेलो मित्र–आ बधां द्रष्टांतो में विचार्या. ते खरां छे, ते उपरथी नीचेना सिद्धांतो नीकळे छे.
१ जीव पोते शुद्ध, शुभ के अशुभ भाव करी शके द्रष्टांतोनो विभाग नीचे प्रमाणे थई शके:–
शुद्ध शुभ अशुभ
१–३–४ २–५–९
७–८ ६–१०
२ परवस्तुनुं परिणमन (अवस्था) आ जीवने आधिन नथी.
३ जे जीवता रह्या तेनुं शरीर अने जीव ते वखते नोखा पडवा लायक न होता.
४ जे मरण पाम्या तेनुं शरीर अने जीव ते वखते नोखा लायक हता.
५ पर उपर कोईनो अधिकार चालतो नथी तेथी पिता–पुत्रने, शिक्षक– विद्यार्थीने के तीर्थंकर केवळी कोई
बीजानुं कांई करी शकता नथी, पण पोते पोतानी अंदर पोताना भावनो पोते पुरुषार्थ करी शके छे.
बीजो मित्र–त्यारे कहो के परनुं बीजो कोई भलुं–भुंडुं करी शके ए मान्यता खरी छे?
पहेलो मित्र–जरा पण नहीं लोकमां चालती मान्यता के हुं परनुं कांई करी शकुं ते खोटी छे अंग्रेजीमां
पण कहेवत छे के:– Man Proposes, God disposes मनुष्य भावना करे, कुदरतना कायदाने अनुसरीने थवुं
होय तेम थाय (अहीं GOD नो अर्थ ‘पदार्थोना नियम’ एम लेवो)
बीजो मित्र–ते खोटी मान्यताने मिथ्यादर्शन कहेवामां आवे छे, कहो ते पाप खरूं के केम? पहेलो मित्र–
जरूर ते पाप छे.
बीजो मित्र–कहो त्यारे पुण्यनी जे मान्यता लोकिकमां छे ते मान्यतापूर्वक थता शुभभावमां आ खोटी
मान्यतानुं पाप साथे आव्युं के नहीं?
पहेलो मित्र–आव्युं, अने ते पुण्यना साचा हिमायतीए टाळवुं ज जोईए.
बीजो मित्र–पण ते महापाप शा माटे तेनो निर्णय कर्यो छे.
पहेलो मित्र–ना–वखत घणो थयो छे. तेथी हवे फरी मळीशुं त्यारे विचारशुं–
बीजो मित्र–बहु सारुं. (बंने मित्रो जुदा पड्या.)
सुख एटले शुं?
आत्मानुं स्वास्थ्य एज सुख. स्वास्थ्य एटले–आत्मानुंःलक्ष परमां न जवुं अने पोतामां टकी रहेवुं–ते
सुख छे. सुखनुं लक्षण (निशानी) आकुळता रहितपणुं छे पोताना सुखस्वरूपनुं भान एज सुख छे.
सुखस्वरूपना भान विना कोई काळे कोई क्षेत्रे कोईने पण सुख होई शके नहीं.
दुःख एटले शुं?
पोतामां पोतानुं सुख छे ते भूलीने परवस्तुमां पोतानी सुखबुद्धि ए ज दुःख छे. आत्माने पोताना सुख
माटे पर वस्तुनी ईच्छा ए ज दुःख छे.
आत्मा पोताना दुःख रहित सुख स्वरूपने जाणतो नथी एटले पोतानुं सुख परथी (परना आधारे)
माने छे ते मान्यता ज दुःखनुं कारण छे.