Atmadharma magazine - Ank 009
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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२०००: श्रावण: आत्मधर्म : १५५ :
परना कर्तृत्वना महाअहंकाररूप अज्ञानांधकार एवो जे अज्ञानीनो प्रतिभास ते
‘व्यवहर’
प्रश्न:– शास्त्रोमां ‘व्यवहार’ शब्द घणे ठेकाणे वापरवामां आवे छे तेनो अर्थ शुं छे?
उत्तर:– ‘व्यवहार’ शब्दना घणा अर्थ थाय छे; तेमां ‘अज्ञानीनी परना कर्तृत्त्वनी खोटी मान्यता
(प्रतिभास) ते व्यवहार’ एवो एक अर्थ थाय छे.
प्रश्न:– व्यवहारनो जे अर्थ कर्यो ते बराबर समजाय ते माटे विशेष स्पष्ट करो.
उत्तर:– खरेखर जीवनी प्रवृत्ति (क्रिया) अने जड पदार्थोनी प्रवृत्ति (क्रिया) भिन्न–तद्न जुदी छे; पण
जीव साचुं ज्ञान प्रगट न करे त्यां सुधी ते स्थुळ द्रष्टिथी जुए छे अने तेथी तेमनी प्रवृत्ति जुदी जुदी होवा छतां
एक जेवी देखाय छे. अज्ञान दशामां जीवने जीव अने जड पदार्थोनुं भेदज्ञान [साचुं ज्ञान] नहि होवाथी
उपलक द्रष्टिए उपरछलुं जेवुं देखाय तेवुं (ऊंडो विचार कर्या वगर) ते मानी ले छे, अने तेथी ते एम माने छे
के जीव जडकर्मने करे छे अने भोगवे छे; श्रीगुरु भेदज्ञान करावी जीवनुं साचुं स्वरूप बतावीने अज्ञानीना ए
प्रतिभासने “व्यवहार” कहे छे.
प्रश्न:– अज्ञान दशामां जीव कर्तापणाना संबंधमां शुं अने कयारथी माने छे?
उत्तर:– आ जगतमां अज्ञान दशामां जीवोनो “परद्रव्यने अथवा तेनी अवस्थाने हुं करूं छुं.” एवा
परद्रव्यना कर्तृत्वना महा अहंकाररूप अज्ञानांधकार (के जे अत्यंत अनंत पुरुषार्थथी टाळी शकाय छे ते)
अनादि संसारथी चाल्यो आवे छे.
प्रश्न:– एक वस्तु (जीव) पर वस्तु (जड) नुं कांई केम न करी शके? ए समजावो.
उत्तर:– दरेक वस्तु पोताथी पोताना वस्तुपणे (द्रव्ये), पोताथी पोताना प्रदेशपणे (क्षेत्रे–आकारे,)
पोताथी पोतानी अवस्थापणे (काळे), अने पोते पोताथी पोताना गुणपणे (भावे) छे; अने ते वस्तु
परवस्तुना द्रव्ये–क्षेत्रे–काळे अने भावे नथी. हवे जे एक वस्तु बीजी वस्तुमां द्रव्ये–क्षेत्रे–काळे अने भावे नथी ते
बीजाने शुं करी शके? कांई ज न करी शके ए स्पष्ट छे.
जे जे वस्तुओ छे ते ते सर्वथा भिन्न ज छे, प्रदेशभेदवाळी ज छे. बन्नेना क्षेत्रो भिन्न ज रहे छे. आ
प्रमाणे स्वक्षेत्रे दरेक द्रव्य त्रिकाळी भिन्न छे तेथी, तथा स्वद्रव्ये दरेक द्रव्य त्रिकाळी भिन्न छे तेथी, तथा स्वकाळे
दरेक द्रव्य त्रिकाळी भिन्न छे तेथी, तथा स्वभावे दरेक द्रव्य त्रिकाळी भिन्न छे तेथी कोई द्रव्य–कोई गुण के कोई
पर्याय परनुं कांई करी शके नहीं.
प्रश्न:– त्यारे जीव परद्रव्यनुं कांई करी शके एम मानवुं ते महाअहंकार छे?
उत्तर:– हा, तेम ज छे. पोते परनुं कांई करी शकतो नथी छतां करुं छुं एम माने छे तेथी तेने ‘अहंकार’
कहेवामां आवे छे, अने ते खोटी मान्यता अनंत संसारनुं [दुःखनुं] कारण छे, अने तेने टाळवा माटे अनंत
पुरुषार्थनी जरूर छे तेथी तेने ‘महा’ कहेवामां आवे छे.
प्रश्न:– आ महा अहंकारने अज्ञान अंधकार केम कहेवामां आवे छे?
उत्तर:– कारण के पोते पोतानुं साचुं ज्ञान कर्युं नहीं अने महान भूल करी तेथी तेने महा अहंकाररूप
अज्ञान अंधकार कहेवामां आवे छे.
प्रश्न:– त्यारे तो एम थयुं के महा अहंकाररूप अज्ञानांधकारने अज्ञानीनो प्रतिभास अने ते प्रतिभासने
‘व्यवहार’ कहेवामां आवे छे एम ठर्युं–ए खरूं?
उत्तर:– हा, तेम ज छे.
प्रश्न:– आ बाबतमां जे शास्त्राधार होय ते जणावो!
उत्तर:– हा, शास्त्राधार छे. श्री समयसारनी गाथा ८४ थी ८६ तेनी टीका भावार्थ अने कलश ५१ थी
५६ (पानां–१२३ थी १२८ सुधी) वांचीने विचारवाथी वस्तुनुं स्वरूप यथार्थपणे समजी शकाशे.
प्रश्न:– आ महा अहंकारने टाळवानो उपाय शुं छे?
उत्तर:– आ महा अहंकाररूप अज्ञानांधकार ते अज्ञानीनो प्रतिभास छे, तेथी तेने व्यवहार कहेवामां
आवे छे. माटे व्यवहारने जेम छे तेम जाणी तेनो आश्रय छोडवाथी अने एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई करी शके
नहीं एम नक्की करी पोताना त्रिकाळी धु्रव स्वभावनो आश्रय लेवाथी