: १५० : आत्मधर्म २००० : श्रावण :
पाप टाळवानो साचो उपाय शुं?
बतावनार: – रामजीभाई माणेकचंद दोशी
प्रसंग पहेलो.
पहेलो मित्र–तमे एकवार कहेता हता के पुण्यथी धर्म थाय ए लौकिक मान्यतामां ज पुण्यथी धर्म न थाय
एम अव्यक्त रीते आवे छे ते शी रीते?
बीजो मित्र–पुण्यथी धर्म थाय ए मान्यतामां पाप छोडवा जेवुं छे एवी मान्यता आवी के केम?
(‘मान्यता’) शब्द ए माटे वापर्यो छे के– ‘मान्यता’ थतां ज चारित्र एकदम प्रगटतुं नथी, पण ते ज वखते
अंशे प्रगटे छे अने क्रमे क्रमे पूरुं थाय छे.)
पहेलो मित्र–पाप छोडवुं ज जोईए एवी मान्यता तो आवी ज.
बीजो मित्र–त्यारे कहो के महापाप तो तुरत ज टाळवुं जोईए, के ते महापाप उभुं राखो!
पहेलो मित्र– महापाप प्रथम ज टाळवुं जोईए.
बीजो मित्र–त्यारे कहो–के महापाप कयुं छे?
पहेलो मित्र–मिथ्यादर्शन ए महापाप छे.
बीजो मित्र–ते मिथ्यादर्शन जेने तमे महापाप कहो छो–तेनां बीजां नामो आपशो.
पहेलो मित्र– हा, तेने स्वरूपनी अणसमजण, अज्ञान, अविद्या, चिदाभास पण कहेवामां आवे छे.
बीजो मित्र–त्यारे कहे के
पाप टाळवुं ज जोईए एवी जेनी मान्यता छे तेणे मिथ्यादर्शनरूपी
महापाप टाळवुं ज पडशे. जो जीव सम्यग्दर्शन प्रगट करे तो ज ते टळे ए वात साची के केम?
पहेलो मित्र–हा, तेम ज.
बीजो मित्र–त्यारे तो सम्यग्दर्शनथी मिथ्यादर्शनरूप महापाप टळे तेम आव्युं, अने सम्यग्दर्शन कहो के
धर्मनी शरूआत कहो–साची समजण कहो, के साचुं (सम्यक्) ज्ञान कहो–ते एकज अथवा साथे रहेनारां छे–
तेथी एम थयुं के शुद्धभावनी शरूआत थतां महापाप टळी शके छे. केम ते बराबर छे?
पहेलो मित्र–हा, ते तद्रन व्याजबी छे. खरेखर पुण्यभावथी धर्म नथी थतो छतां पुण्यथी धर्म थाय एम
लोको माने छे तेनुं कारण शुं?
बीजो मित्र–सामान्यरीते लोको आ बाबतमां विचार करता नथी. नानपणथी पोते सांभळ्युं होय छे के
पुण्यथी धर्म थाय छे, पोताना मोटेराओ पासेथी पण तेवुं ज सांभळे छे अने धर्मस्थानकमां पण मोटे भागे तेवुं
ज संभळाववामां आवे छे. ए मान्यता पोताने अनादिथी चाली आवे छे अने जेम जेम ते उंमरे वधतो जाय
छे तेम तेम तेनुं पोषण मळतुं जाय छे. तेनुं परिणाम ए आवे छे के कोई कहे के पुण्यथी धर्म थाय नहि–महापाप
टळे नहि तो तेने विजळी जेवो आंचको ‘Electric Shock’ लागे छे. ए सांभळवा तरफ अरुचि थाय छे. पण
तटस्थ थई शांतपणे तेनां बधां पडखांओ विचारे तो आ वात तुरत समजी जाय.
पहेलो मित्र–त्यारे आनां बीजां पडखांओ शुं छे ते आपणे हवे पछी चर्चशुं.
बीजो मित्र–बहु सारुं. (बन्ने छुटा पडे छे)
प्रसंग बीजो
पहेलो मित्र–पुण्यनां बीजां पडखां छे एम तमे कहेता हता ते आजे कहो.
बीजो मित्र–जुओ पुण्यना ईच्छक जे वखते पुण्य करवा मागे छे ते ज वखते पाप बंधाय तेम ईच्छे छे?
पहेलो मित्र– जे पुण्य करवा मागे ते ते ज वखते पाप पण लागतुं होय, तो ते पुण्यनो ईच्छक केम
कहेवाय? न ज कहेवाय.
बीजो मित्र–तमे ए स्वीकार्युं; त्यारे हवे तमने पुछुं छुं के–तमे ए तो जाणो छो ने के शुभभाव (पुण्य
भाव) करती वखते, जेने आत्म स्वरूपनुं ज्ञान न होय तेने साचा ज्ञान–साची प्रतीति–साचा चारित्र अने वीर्य
हणाय छे अने तेथी तेनां आवरण बंधाय छे अने ते बधां पाप छे?