Atmadharma magazine - Ank 009
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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२००० : श्रावण : आत्मधर्म : १५१ :
पहेलो मित्र–तमे कहो छो ते उपरथी मने याद आवे छे के शुभभाव थतां चारे घातीया कर्मनी प्रकृतिओ
बंधाय छे एम ज्ञानीओ जणावे छे. माटे तमारी ए वात साची छे.
बीजो मित्र–कहो त्यारे पुण्यभाव करतां, आत्मस्वरूपना अजाणने आत्माना निज गुण एटले के
सम्यग्दर्शन ज्ञान–चारित्र, वीर्य विगेरे ने हणनारां पाप कर्ममांथी कयुं टळे? अने कयुं न बंधाय?
पहेलो मित्र–एके नहीं.
बीजो मित्र–त्यारे कहो के कया कया शुभभाव करतां करतां आ भवे, आ भवे नहीं तो हवे पछीना भवे,
सम्यकत्वनो गुण प्रगटे?
पहेलो मित्र–एवो ए के शुभभाव नथी के जे करतां करतां अनंत काळ जाय तो पण सम्यकत्व प्रगटे
अने मिथ्यात्वनुं महापाप टळे.
बीजो मित्र–त्यारे कहो के जे–आत्मस्वरूपना अज्ञानी छे तेने तो पुण्य (शुभ) भाव करतां ते ज वखते
अनंतु पाप–संसारने वधारनारूं बंधाय छे, तो पछी ते पुण्यना खरा हिमायती कहेवाय?
पहेलो मित्र–न ज कहेवाय. पण त्यारे प्रश्न ए उठे छे के–पापनो नाश कोण करी शके?
बीजो मित्र–सम्यक्दर्शन थाय ते ज वखते मिथ्यात्व अने अनंत संसारने वधारनारा क्रोध–मान–माया–
लोभ ए पांच महापाप तो बंधातां ज नथी, अने बीजा पापो क्रमेक्रमे तेने नहीं बंधातां, छेवटे पाप बंधथी
रहित ते थई शके छे.
पहेलो मित्र–तमे घणी स्पष्ट वात करी, पण आ विषय बीजी कोई रीते विचारी शकाय तेम छे?
बीजो मित्र– घणां पडखांथी ते विचारी शकाय छे. अने ते बधानुं परिणाम एक ज आवे छे. केमके सत्य
तो सत्य ज रहे छे. पण आपणे हवे ते विषय बीजे वखते लेशुं. (बन्ने मित्रो जुदां पड्यां.)
त्रीजो प्रसंग (बन्ने मित्रो फरी मळे छे.)
स्वरूपनी समजण वगर पुण्य अने पापचक्र चाल्या करे छे.
पहेलो मित्र– कहो, बीजी कई रीते आ वात विचारी शकाय तेम छे?
बीजो मित्र–जेने आत्मस्वरूपनुं लक्ष नथी तेने कषायचक्र चालु रहेतुं होवाथी शुभ पछी तुरत ज अशुभ
आवे छे ए जाणो छो?
पहेलो मित्र–आ वात दाखलो आपी स्पष्ट करो.
बीजो मित्र–जुओ प्रथम आपणे शुभ (पुण्यभाव) शुं–पाप भाव शुं ते विचारीए.
पहेलो मित्र–भले, खुशीथी.
बीजो मित्र–जुओ, आगळ तमने बताव्युं हतुं के पुण्यभाव करनार जीव जेने आत्मस्वरूपनुं साचुं ज्ञान
नथी ते भाव करती वखते ज पाप बांधे छे. पण आ तो तेथी आगळ जवानी वात छे माटे ते लक्षपूर्वक सांभळजो.
पहेलो मित्र– लक्षपूर्वक सांभळी तेनी तुलना करीश.
बीजो मित्र–जुओ एक माणसने तमे दान दीधुं, पछी तमे संसारी धंधा रोजगारमां जोडाओ छो?
पहेलो मित्र–हा.
बीजो मित्र–कहो त्यारे तमारो धंधानो भाव शुभ के अशुभ?
पहेलो मित्र–तेने शुभ केम कहेवाय? ते तो अशुभ भाव कहेवाय.
बीजो मित्र–तो पछी एम थयुं के–शुभभाव मटया पछी–अशुभभाव तो तुरत आवे छे. माटे पुण्यनुं
सळंग चालवापणुं तो न रह्युं. अने पुण्यना खरा हिमायतीए तो चोवीश कलाक पुण्य करवुं जोईए.
पहेलो मित्र–पण ए तो क्यांथी बनी शके?
बीजो मित्र–अज्ञानीथी न बनी शके, पण ज्ञानीनां केटलांक पद एवां छे के जेमां तेम बने छे.
पहेलो मित्र–मने पण विचारतां लागे छे के–शुभभाव सळंग चालु रहेतो नथी; शुभ पूरो थयो के
तरतज कंई अशुभ
जैनशासन
१ जैनशासन एटले वीतरागता. २ अनेकान्त ए जैनशासननो आत्मा.
३ स्याद्वाद ए जैनशासननी कथन शैली. ४ जैनशासन एटले युक्ति अने अनुभवनो भंडार.
प जैनशासन एटले दरेक द्रव्योना स्वरूपने संपूर्ण अने त्रिकाळ स्वाधीन (स्वतंत्र) बतावनार अनादि
अनंत धर्म.