: १५२ : आत्मधर्म २००० : श्रावण :
आवे छे; एम पण बने छे, के शुभ करवानो विचार करतां होईए, त्यां एकदम अशुभ भाव डोक्यिां मारे छे.
बीजो मित्र–शुभभाव–अशुभभावनी माफक क्षणिक छे, उत्पन्न ध्वंसी छे, विकारी छे. ते बन्ने
मोहराजानी फोजना सरदारो छे. शुभ ते मोहराजानी कढी छे अने ते Supercially [उपलकद्रष्टिए] मीठी
मधुरी लागे छे. माटे पुण्यना हिमायतीए प्रथम तेनुं यथार्थ स्वरूप समजी लेवुं जोईए. वखत थयो छे माटे
आपणे छुटा पडीए. [बन्ने छुटां पड्यां]
प्रसंग चोथो : – पुण्यनुं स्वरूप
पहेलो मित्र–पुण्यनुं स्वरूप तो नानुं छोकरूंए समजे छे, तेमां समजवा जेवुं शुं छे?
बीजो मित्र–त्यारे नानुं छोकरूं शी रीते समजे छे ते कहो.
पहेलो मित्र–कोई जीवनो प्राणघात करवो ते पाप, असत्य बोलवुं ते पाप, चोरी करवी ते पाप–
अब्रह्मचर्य ते पाप, परिग्रही थवुं ते पाप, कोई जीवने दुःखी देखी दान देवुं, सेवा करवी, बचाववो, अन्न पाणी
देवा ए विगेरे पुण्य.
बीजो मित्र–ठीक छे. आ अभिप्राय बराबर छे के केम ए आपणे विचारीए. पण ते विचारतां पहेलांं ए
जाणवानी जरूर छे के आ मान्यता बाळकनी ज छे के मोटाओनी पण छे?
पहेलो मित्र– मोटानी पण ते ज मान्यता छे. तेमां फेर एटलो छे के मोटा जोरशोरथी ए मान्यतानी
घोषणा करे छे–तेनुं अनुकरण करवा बीजाने प्रेरे छे अने तेमनी लागवगथी के उपदेशथी लोको दान दीए छे
एम पण देखाय छे–
बीजो मित्र–त्यारे कहो के–एक माणसने मारवा कोईए बंदुक मारी. पण जे माणसने मारवो हतो ते
बची गयो. तो बंदुक फोडनारने पाप खरुं के केम?
पहेलो मित्र–हा. पाप तो खरुं.
बीजो मित्र–शा माटे? माणस मरी तो नथी गयो तो पाप शा माटे?
पहेलो मित्र–मारी नांखवानो भाव हतो माटे.
बीजो मित्र–तमारा पोताना जवाबथी तो एम नक्की थयुं के–जीवने मारी नांखवानो भाव कर्यो
तेथी पाप थयुं–नहीं के सामो जीव जीव्यो के मर्यो तेथी? जीव मरे के न मरे ते साथे पापनी उत्पत्तिने
संबंध नथी. पाप तो जीवमां थाय छे. माटे जीवनो तीव्र (आकरो) कषायभाव ते पाप छे. हिंसा तो–पोताना
भाव उपरथी जणाय एम नकी थयुं.
पहेलो मित्र–पण तमे तो जीव बच्यो तेनो दाखलो दीधो. जीव मरे तेनो लीओने!
बीजो मित्र–भले, तेवो लईए. एक माणस दुःखी छे, तेने भूख लागी छे, अने भूख टाळवा तमे तद्न हलकुं,
पचे तेवुं, सादुं जमवानुं आप्युं. पण ते तेने न पच्युं, विपरीत थयुं, अने ते कारणे मरी गयो–कहो तमोने पुण्य के पाप?
पहेलो मित्र–ए तो पुण्य छे, एमां पाप केम कही शकाय. जमवानुं आपनारनो भाव तो तेने सगवड
आपवानो हतो–माटे पुण्य कहेवाय.
बीजो मित्र–त्यारे माणस जेवुं प्राणी मरी गयुं ते केने खाते मांडशो?
पहेलो मित्र–विचारतां तो एम मालुम पडे छे के प्राणी जीवे के मरे ते साथे पुण्य–पापने संबंध नथी.
पोताना भावनी साथे संबंध छे. अने ते ज नियम–सत्य असत्य, विगेरेने लागु पडे छे.
बीजो मित्र–ठीक त्यारे कहो छे–छोकरूं पण पुण्य स्वरूप समजे छे एम तमे कहेता हता ते खरूं छे?
पहेलो मित्र–ते मान्यता साची नथी. जीव शुभभाव करे (पछी सामा प्राणीने लाभनुकसान गमे ते
थाय) तो पुण्य अने अशुभ भाव करे (पछी सामा प्राणीने लाभ नुकसान थाय, गमे ते थाय) तो पाप गणाय.
बीजो मित्र–तमारी वात बराबर छे. पण सवाल उठे छे, के
जैन कोण?
१ रागद्वेष उपर जीत मेळवी, स्वरूपने मेळवनार ते जैन.
२ जैन एटले वीतरागतानी मूर्ति.
३ पोताना गुणना जोर वडे जे अवगुणने जीते [नाश करे] ते जैन.
४ जैन एटले मोक्षनो अभिलाषी.
प जैन एटले वीतरागतानो सेवक.