Atmadharma magazine - Ank 010-011
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २००० : पर्युषण अंक : १७३ :
आत्माना भान पछी स्थिरता पहेलांं वच्चे शुभभाव आवे ते पण झेर! ते बधाथी रहति आत्माना
स्वरूपमां स्थिरता ते ज अमृत छे. शुभभावने झेर कह्यां तेथी अज्ञानीने शुभ छोडीने अशुभमां जवानुं कहेतां
नथी, पण शुभभावमां धर्म मानवानी ना पाडे छे. ज्ञानीने पण शुभभाव आवे, पण तेनाथी धर्म नथी; ते झेर
छे. आत्मा त्रिकाळ
सहज अतीन्द्रिय आनंदनी मूर्ति छे तेना भानमां समकीति ज्ञानीने चोथे–पांचमे–छठ्ठे गुणस्थाने जे शुभ
विचारणा आवे ते बधां झेर छे. ‘खोटी श्रद्धा छोडुं–कुदेवादि तरफनुं लक्ष छोडुं अने साचा देवगुरुनी श्रद्धा करूं’
एवो विकल्प पण झेर छे.
श्री समयसारमां कह्युं छे के:–
पडिकमणं पडिसरणं पडिहरो धारणा णियत्ती य।।
णिंदा गरहा सोही अट्ठविहोहोदि विसकुंभो” ।। ३०६।।
प्रतिक्रमण, प्रतिसरण, परिहार, धारणा, निवृत्ति, निंदा, गर्हा अने शुद्धि ए आठे प्रकार झेर छे.
१–प्रतिक्रमण:– अशुभथी पाछा फरीने शुभमां आववुं ते.
२–प्रतिसरण:– सम्यक्त्वादि गुणोमां प्रेरणा थवी, मिथ्याश्रद्धा छोडुं अने सम्यक्श्रद्धा करूं एवी भावना थवी ते.
३–परिहार:– मिथ्यात्वादि दोषोनुं निवारण करवानो विकल्प.
४–धारणा:– नमस्कार मंत्रोनो जाप, प्रतिमा वगेरे बाह्य द्रव्यना अवलंबनवडे चित्तनी स्थिरता करवानो विकल्प.
प–निवृत्ति:– विषय–कषायादिनी ईच्छामां वर्तता मनने पाछुं वाळुं एवो विकल्प.
६–निंदा:– आत्म साक्षीए दोषने प्रगट करूं, दोषनी निंदा करूं एवो भाव.
७–गर्हा:– गुरुसाक्षीए दोषने प्रगट करूं एवो–भाव.
८–शुद्धि:– दोष थया होय तेनुं प्रायश्चित लईने विशुद्धि करूं एवो भाव.
उपरना आठे बोल ते झेर छे. ज्ञानीनी अंतरद्रष्टिमां बधा रागनो नकार करीने वच्चे (अस्थिरतामां)
जे शुभ विकल्प आवी जाय ते झेर छे.
प्रश्न:– शरूआतमां तो शुभभावथी लाभ थाय ने?
उत्तर:– शुभभावथी आत्माने लाभ थाय ज नहीं. पहेलेथी ज शुभभाव बधो झेर छे. महाव्रत
पाळवाना विकल्प सुधीना बधा शुभभाव त्रणलोकना तीर्थंकरदेवथी मांडीने बधा ज्ञानीने पण झेर छे,
अज्ञानीनी तो अहीं वात ज नथी. शरूआतमां पण शुभराग मददगार छे एम माने तो ते महापापी छे.
श्री योगसारमां कह्युं छे के:–
पुण्य पुण्यने सौ कहे, पाप कहे सौ पाप;
पंडित अनुभवी जन, कहे पुण्य पण पाप.
पुण्यने पुण्य तो बधा कहे छे, तथा पापने बधा पाप कहे छे; पण ज्ञानीओ निश्चयथी तो शुभभावने
पण पाप कहे छे. शुभभावथी आत्माने परंपराए लाभ थाय एम मान्युं ते निश्चयथी निगोद गति ज छे.
प्रश्न:– शास्त्रोमां तो सम्यग्द्रष्टिना शुभभावने धर्मनुं परंपरा कारण कह्युं छे ने?
उत्तर:– त्यां एवी अपेक्षाए वात छे के–आत्माना अंतर स्वरूपना भानमां ज्ञानीने सर्व शुभाशुभनो
नकार वर्ते छे, त्यां वर्तमान अस्थिरताना कारणे, अशुभने छेदवा माटे शुभराग छे, पण द्रष्टिमां तेनो नकार
वर्ते छे, तेथी अल्पकाळमां स्थिरताद्वारा ते शुभने छेदीने वीतराग थई जवानो छे, ते अपेक्षाए शुभने
परंपराए धर्मनुं कारण कह्युं छे. ‘परंपरा’ नो अर्थ ‘क्रमेक्रमे तेनो छेद करीने’ एवो छे; समकितीने शुभभावनी
कर्तापणानी बुद्धि नथी, छतां वच्चे आवे छे ते अस्थिरता छे माटे झेर छे, ते शुभने स्थिरता द्वारा छेदशे त्यारे
‘शुभनो अभाव स्थिरतामां कारणरूप थशे’ ‘शुभने परंपराए कारण कह्युं होय त्यां उपर प्रमाणे समजवुं.
निश्चयथी शुभभाव पण झेर छे, आत्माना गुणने रोकनार छे. आत्माना गुणने रोके ते भावने भलो
मानवो ए महापाप छे. वच्चे शुभ के अशुभ भाव आवे ते बन्नेनो ज्ञानीने नकार वर्ते छे. जे शुभभावने
पोतानुं कर्तृत्व माने–मददगार माने तेने महापापी कह्यो छे, त्यां पछी अशुभभाव